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________________ सूर्यप्रज्ञप्तिसूत्रे एवमाहुरित्युपसंहरति । २३ ' एगे पुण एवमाहंसु-ता अणुसागरोवमसयसहस्समेव सूरियस ओया अण्णा उप्पज्जइ अण्णा अवेइ एगे एवमाहंसु २४ ' एके पुनरेवमाहु स्तावत् अनुसागरोपमशतसहस्रमेव सूर्यस्यौजोऽन्यदुपपद्यते अन्यदपैति, एके एवमाहुः २४ ॥ - एके पुनश्च - तुर्विंशतिस्थानीयाः कथयन्ति तावद् अनुसागरोपमशतसहस्र मेव-अनुसागरोपमसंख्यायाः लक्षमेव तत्तुल्ये काल एव सूर्यस्यजोऽन्यदुत्पद्यते, अन्यच्चापैति, प्रकाशभेदो भवति, एके एवमाहुरिति, 'एगे पुण एवमाहंसु-ता- अणु उस्सप्पिणि ओसप्पिणिमेव सूरियस्स ओया अण्णा उपज्जइ अण्णा अवेइ, एगे एवमाहंसु २५' एके पुनरेवमाहुस्तावद् अनृत्सर्पिण्यवसर्पिण्येव सूर्यस्यजोऽन्यदुपपद्यते अन्यदपैति, एके एवमाहुः २५ ।। - एके पुनः पञ्चता अनुसागरोवमस्य सहरसमेव सरियस्स ओया अण्णा उप्पज्जइ अण्णा अवेइ एगे एवमाहंसु) २४ | कोई एक इस प्रकार से अपना मत प्रगट करता है कि अनुसागरोपम शत सहस्र काल में सूर्य का ओजस अन्य उत्पन्न होता है एवं अन्य विनष्ट होता है कोई एक इस प्रकार अपना मत कहता है | २४| अर्थात् चोवीसवां तीर्थान्तरीय अपने मत के विषय में कहता है कि अनुसागरोपमशतसहस्र माने कुछ न्यून लक्ष संख्यावाले सागरोपम काल में सूर्य का प्रकाश अन्य उत्पन्न होता है एवं अन्य विनष्ट होता है माने इतने समय में प्रकाश की भिन्नता होती है ऐसा कोई एक अपने मत के विषय में कथन करता है | २४| (एगे पुण एवमाहंसु ता अणुउस्सप्पिणिओसप्पिणिमेव सूरियस्स ओया अण्णा उप्पज्जइ अण्णा अवेह एगे एवमाहंस) २५ कोई एक इस प्रकार से कहता है अनुउत्सर्पिणी अवसर्पिणी काल में सूर्य का प्रकाश अन्य उत्पन्न होता है एवं अन्य विनष्ट होता है कोई एक इस प्रकार से स्वमत का कथन करता है | २५ | कहने का भाव यह है कि कोई एक पचीसवां मतान्तर ५२० ( एगे पुण एवमाहं ता अणुसागरोवमसयसहस्समेव सूरियस्स ओया अण्णा उप्पज्जइ अण्णा अवेइ एगे एवमाहंसु ) २४ मे प्रभा डे - अनुसागरोपमशतसहस्राणभां સૂર્યના પ્રકાશ અન્ય ઉત્પન્ન થાય છે અને અન્યને નાશ થાય છે. કોઈ એક આ પ્રમાણે પેાતાના મત કહે છે, ૨૪! અર્થાત્ ચાવીસમે તીર્થાન્તરીય પેાતાના મતના સંબંધમાં કરે છે કેઅનુસાગરાપમશતસહસ્ર એટલે કે કઈક આછા એક લાખ સખ્યક સાગરે પમકાળમાં સૂર્યના પ્રકાશ અન્ય ઉત્પન્ન થાય છે. અને અન્યના વિનાશ થાય છે, એટલે કે એટલા સમયમાં પ્રકાશની ભિન્નતા થાય છે. આ પ્રમાણે કોઈ પોતાના મત વિષે કથન કરે છે. |२४| (एगे पुण एवमाहंसु ता अणुउस्सप्पिणि ओसप्पिणिमेव सूरियरस ओया अण्णा उप्पज्जइ अण्णा अवेइ एगे एवमाहंसु ) २५ अ ये मे प्रभा डे छे - अनुउत्सर्पिणी व्यवस પિણી કાળમાં સૂર્યના પ્રકાશ અન્ય ઉત્પન્ન થાય છે. અને અન્યના નાશ થાય છે. કેઈ એક આ પ્રમાણે પેાતાના મતનુ કથન કરે છે. ૨પા કહેવાને ભાવ એ છે કે કોઈ એક શ્રી સુર્યપ્રાપ્તિ સૂત્ર : ૧
SR No.006351
Book TitleAgam 16 Upang 05 Surya Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1981
Total Pages1076
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_suryapragnapti
File Size74 MB
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