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________________ ५१८ सूर्यप्रज्ञप्तिसूत्रे पैति - विनश्यतीति विंशति स्थानीयस्य मतमित्येके एवमाहुरित्युपसंहरति || ' एगे पुण एव - मासु-ता- अणुसागरोवममेव सूरियस ओया अण्णा उप्पज्जइ अण्णा अवेइ, एगे एवमासु २१' एके पुनरेवमाहु स्तावद् अनुसागरोपममेव सूर्यस्य जोऽन्यदुपपद्यते, अन्यदपैति, एके एवमाहुः २१ ॥ - एके पुनरेकविंशति स्थानीयाः कथयन्ति तावत् अनुसागरोपममेवसागरोपममनु, अनुसागरोपमम्, सागरोपमसंख्यातः किञ्चिन्यूनसंख्याया नाम अनुसागरोपममिति, तत्संख्यातुल्यकाले सूर्यस्योजोऽन्यदुत्पद्यते अन्यदपैति, एके एवमाहु रित्येकविंशतिस्थानीयस्य मतम् || 'एगे पुण एवमाहंसु - ता - अणुसागरोवमसयमेव सूरियस्स ओया अण्णा उप्पज्जइ अण्णा अवेर एगे एवमा २२' एके पुनरेवमाहुस्तावद् अनुसागरोपमभिन्न विनष्ट होता है इस प्रकार वीसवें मतवादी का कथन है कोई एक इस प्रकार से अपना मत प्रदर्शित करता है | २० | ( एगे पुण एवमाहंसु ता अणुसागममेव सूरियस्स ओया अण्णा उप्पज्जइ अण्णा अवेइ एगे एवमाहंसु ) २१ कोइ एक इस वक्ष्यमाण प्रकार से अपना मत प्रदर्शित करते हुवे कहते हैं कि अनुसागरोपम काल में सूर्य का प्रकाश अन्य उत्पन्न होता है एवं अन्य ही निष्ट होता है कोई एक इस प्रकार से अपना मत कहता है । अर्थात् एकवीसवां तीर्थान्तरीय अपने मत के संबंध में कहता है कि अनुसागरापम काल में अर्थात् सागरोपम में अनु माने न्यून वह अनुसागरोपम माने सागरोपम संख्यक काल में कुछ न्यून काल को अनुसागरोपम कहते हैं । उस संख्या के तुल्य संख्यावाले काल में सूर्य का प्रकाश अन्य उत्पन्न होता है एवं अन्य विनष्ट होता है ऐसा इक्कीसवें मतान्तरवादी का कथन है | २१ | ( एगे पुण एव - माहंसु ता अणुसागरोवमसयमेव सूरियस्स ओया अण्णा उपजइ अण्णा अवेइ एगे एवमाहंस) २२| कोई एक इस प्रकार से अपना मत प्रदर्शित करता है कि એટલે કે એક લાખ પત્યેાપમકાળમાં સૂર્યના પ્રકાશ અન્ય જ ઉત્પન્ન થાય છે અને અન્યને વિનાશ થાય છે, આ પ્રમાણે વીસમા મતવાદીનું કથન છે. કોઈ એક આ પ્રમાણે પેાતાના भत विषे उथन उरे छे, 1201 (एगे पुण एवमाहंसु ता अणुसागरोत्रममेव सूरियस्स ओया अण्णा उप्पज्जइ अण्णा अवेइ एगे एवमाहंस) २१ मे मा वक्ष्यमाणु प्रारथी पोतानो મત બતાવતાં કર્યુ છે કે—અનુસાગરોપમકાળમાં સૂર્યના પ્રકાશ અન્ય ઉત્પન્ન થાય છે અને અન્યને વિનાશ થાય છે, કોઈ એક આ પ્રમાણે પોતાના મત બતાવે છે, અર્થાત્ એકવીસમા અન્યમતવાદી પોતાના મત વિષે કહે છે કે સાગરોપમમાં અનુ અર્થાત્ ન્યૂન તે અનુસાગરોપમ અર્થાત્ સાગરોપમ જેટલા કાળમાં કંઈક આછા કાળને અનુસાગરોપમ કહે છે. એ સંખ્યાની ખાખર સંખ્યાવાળા કાળમાં સૂર્યના પ્રકશ અન્ય ઉત્પન્ન થાય છે. राने अन्य नाश यामे छे. |२१| ( एगे पुण एवमाहंसु अणुसागरोवमसयमेव सूरियस्स ओया अण्णा उपज्जइ, अण्णा अवेइ एगे एवमाहंसु) २२ अर्थ मेड सेवी रीते पोतानो भत શ્રી સુર્યપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર : ૧
SR No.006351
Book TitleAgam 16 Upang 05 Surya Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1981
Total Pages1076
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_suryapragnapti
File Size74 MB
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