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________________ ५०७ सूर्यशप्तिप्रकाशिका टीका सू० २७ षष्ठं प्राभृतम् माहंसु-ता अणुराइंदियमेव सूरियस्स ओया अण्णा उपजइ, अण्णा अवेइ, एगे एवमासु ३' एके पुनरेवमाहुस्तावद् अनुरात्रिंदिवमेव सूर्यस्य ओजः अन्यदुपपद्यते, अन्यदपैति, एके एवमाहुः ३ ॥-तायदिति प्राग्वत् परिभावनीयम् । एके-तृतीयास्तीर्थान्तरीया एवं कथयन्ति यत् अनुरात्रिन्दिवमेव-प्रतिरात्रिन्दिवमेव (रात्रिन्दिवमनु-अनुरात्रिन्दिवम्) सूर्यस्य ओजः-प्रकाशः अन्यदुत्पद्यते अन्यच्च-प्राक्तनभिन्नमेवापैति-विनश्यति । प्रतिक्षणे भिन्नभिन्नस्वरूपक एव सूर्यप्रकाशो भवति, यः पूर्वक्षणे न स वर्तमानक्षणे, यश्चवर्तमानकालिकोऽस्ति न सोऽपरक्षण इत्यर्थः। ___ 'एगे पुण एवमाहंसु-ता-अणुपक्खमेव सूरियस्स ओया अण्णा उप्पज्जइ, अण्णा अवेइ, एगे एवमासु' ४ ॥ एके पुनरेवमाहु स्तावद् अनुपक्षमेव सूर्यस्य ओजोऽन्यदुपपद्यते अन्यदपैति एके एवमाहुः ४ ॥-एके पुनश्चतुर्था मतवादिनः एवं प्रजल्पन्ति यद् अनुपक्षमेवलाप विशेषों को प्रदर्शित करते हुवे कहते हैं (एगे पुण एवमाहंसु ता अणुराइदियमेव सूरियस्स ओया अण्णा उप्पज्जइ, अपणा अवेइ एगे एवमाहंसु) ३ कोइ एक इस प्रकार से कहता है कि प्रति रात्रि दिवस में सूर्य का ओजस अन्य ही उत्पन्न होता है एवं अन्य विनाशित होता है कोइ एक इस प्रकार से कहता है अर्थात् तीसरा कोई अन्य मतवादी कहता है कि प्रत्येक रात्रि दिवस में सूर्य का प्रकाश अन्य ही उत्पन्न होता है एवं अन्य ही माने पूर्व उत्पन्न विनष्ट होते हैं। प्रतिक्षण में भिन्न भिन्न स्वरूपवाला ही सूर्य का प्रकाश होता है, जो पूर्वेक्षण में नहीं होता सो वर्तमानक्षण में होता है एवं जो वर्तमान काल में होता है वह पीछे के क्षण में नहीं होता ऐसा भाव समज लेवे ।३। (एगे पुण एवमाहंसु-ता अणुपक्खमेघ सूरियस्स ओया अण्णा उप्पज्जह अण्णा अवेइ, एगे एवमाहंसु) ४ कोई एक इस प्रकार से कहता है પ્રકારના કામથી બધા પ્રતિપત્તિ સૂચક વાકનો પ્રયોગ કરી લેવું. આ પ્રમાણે આ કથનનો अभिप्राय छे. मे मनिला५ विशेषने तातi ४ छ -(एगे पुण एवमाइंसु ता अणुराइदियमेव सूरियस्स ओया अण्णा उप्पज्जइ, अण्णा अवेइ, एगे पवमासु) ३ ४ ४ આ પ્રમાણે કહે છે કે પ્રત્યેક રાતદિવસમાં સૂર્યને એજ અન્ય જ ઉત્પન્ન થાય છે અને અન્ય વિનષ્ટ થાય છે. કેઈ એક આ પ્રમાણે કહે છે. અર્થાત્ ત્રીજો અન્ય મતાવલંબી કહે છે કે- દરેક રાત્રિ દિવસમાં સૂર્યને પ્રકાશ અન્ય જ ઉત્પન્ન થાય છે અને અન્ય જ એટલે કે પૂર્વોત્પન્ન વિનાશ થાય છે. જે દરેક ક્ષણે જુદા જુદા સ્વરૂપવાળો જ સૂર્યને પ્રકાશ હોય છે. જે પ્રકાશ પૂર્વ ક્ષણમાં નથી હોતે તે વર્તમાન ક્ષણમાં હોય છે. અને જે વર્તમાનક્ષણમાં હોય છે તે પછીની ક્ષણમાં હેત નથી. આ પ્રમાણે અભિપ્રાય સમજ, 13। (एगे पुण एवमाहंसु ता अणुपक्खमेव सूरियस्स ओया अण्णा उप्पज्जइ अण्णा अवेड, एगे एवमासु)४ ७ मे मेवी रीत ४९ छे 3-४२४ पक्षमा सूर्यन प्रा अन्य पान શ્રી સુર્યપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર : ૧
SR No.006351
Book TitleAgam 16 Upang 05 Surya Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1981
Total Pages1076
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_suryapragnapti
File Size74 MB
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