SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 494
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४८२ सूर्यप्रक्षप्तिसूत्रे परतीथिकानां मूलभूतं स्वशिष्यं प्रत्युपदेशः । अत्रैवोपसंहारमाह-एके एवमाहुरिति प्रथमस्याभिप्रायः ॥१॥ 'एगे पुण एवमाहंसु-ता मेरुसि णं पव्वयंसि सूरियस्स लेस्सा पडिहया आहियाति वएज्जा एगे एवमासु २' एके पुनरेवमाहु स्तावद् मेरौ खलु पर्वते सूर्यस्य लेश्या प्रतिहता आख्याता इति वदेन्, एके एवमाहुः २ ॥ एके पुन द्वितीयाः एवं वदन्ति यद् मेरौ पर्वते खलु सूर्यस्य लेश्या प्रतिहता-परावर्तनशीला भवतीति स्वशिष्येभ्यो वदेत् एके एवमाहुरिति द्वितीयस्याभिप्रायः २ ॥ एवम् एएणं अभिलावेणं भाणियव्वं' एवम् एतेन अभिलापेन भणितव्यम् । एवं-पूर्वोक्तेन प्रकारेण-एके एवमाहुः, एके पुनरेवमाहु रित्यादि रूपेण, एतेन-वक्ष्यमाणेन प्रतिपत्तिविशेषभूतेन आलापकेन शेषप्रतिपत्तिजातं भणितव्यं-सर्वत्र पूर्वापररूपेण पदेन नेतव्यम्, तानेव प्रतिपत्तिविशेषभूतानालापकान् दर्शयति-"एगे पुण एवमाहंसु-ता मनोरमंसि णं पव्वयंसि सूरियस्स लेस्सा पडिहया आहिशील कही है ऐसा शिष्यों को कहे माने उन उन परतीर्थिकों के मूलभूत स्वशिष्यों के प्रति उपदेश है कोई एक प्रथम तीर्थान्तरीय इस प्रकार अपना मत कहता है (१) (एगे पुण एवमाहंसु ता मेरुसि णं पव्वयंसि सूरियस्स लेस्सा पडिहया आहियत्ति वएज्जा एगे एवमाहंसु)२ दूसरा कोई एक अन्यमतवादी इस प्रकार कहता है कि मेरु पर्वत में सूर्य की लेश्या प्रतिहत कही है माने परावतित होती है ऐसा अपने शिष्यों को कहें कोइ एक दूसरा मतवादी इस प्रकार से अपना अभिप्राय दिखलाता है (२) (एवं एएणं अभिलावेणं भाणियव्वं) इस प्रकार कथित अभिलाप से कह लेवें । अर्थात् पूर्वोक्त प्रकार से कोई एक इस प्रकार कहता है इत्यादि प्रकार से वक्ष्यमाण प्रतिपत्ति विशेषरूप आलापकों से अवशिष्ट प्रतिपत्तियां सर्वत्र पूर्वापर रूप पद से कह लेवें उसी पतिपत्ति भूत आलापक विशेष को दिखलाते हुवे कहते हैं-(एगे पुण एवमाहंसु-ता मनोरપ્રતિહત અર્થાત્ પરાવર્તનશીલ કહેલ છે, એ પ્રમાણે શિષ્યોને કહેવું. એટલે કે તે તે પરતીથિકેના મૂળભૂત શિષ્યની પ્રત્યે ઉપદેશ છે, કેઈ એક પહેલે તીર્થાન્તરીય આ પ્રમાણે પિતાને મત દર્શાવે છે. ના (एगे पुण एवमासु ता मेकैसि गं पव्वयंसि सूरियस लेस्सा पडिहया आहियत्ति वएज्जा एगे एबमाहंमु) भीन्न असे अन्यमतवासी २ प्रमाणे ४ छ 3-३५वतमा सूर्यनी લેશ્યા પ્રતિહત થતી કહેલ છે. એટલે કે પરાવર્તિત થાય છે. એ રીતે પોતાના શિષ્યોને કહેવું. કેઈ એક બીજે મતવાદી આ પ્રમાણે પિતાને અભિપ્રાય દર્શાવે છે. રા (gવું एए णं अभिलावेणं भाणियव्य) २ प्रमाणेना अथित मलिदाय विशेषथी ली से अर्थात् પૂર્વોક્ત પ્રકારથી કોઈ એક આ પ્રમાણે કહે છે. વિગેરે પ્રકારથી કચ્છમાન પ્રતિપત્તિ વિશેષરૂપ આલાપથી બાકીની પ્રતિપત્તિ બધે પૂર્વાપર રૂપ પદથી કહી લેવી. એજ પ્રતિપ્રતિભૂત શ્રી સુર્યપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર: ૧
SR No.006351
Book TitleAgam 16 Upang 05 Surya Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1981
Total Pages1076
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_suryapragnapti
File Size74 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy