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________________ सूर्यज्ञप्तिप्रकाशिका टीका सू० २५ चतुर्थ प्राभृतम् सर्वबाह्यमण्डलगते सूर्ये तापक्षेत्रसंस्थितेः परिमाणं भणितव्यं-ज्ञातव्यम्, तथैव तत्र-बाह्यमण्डले-सर्वबाह्यमण्डले यत् अन्धकारसंस्थितेः प्रमाणमुक्तं, तदभ्यन्तरमण्डले-सर्वाभ्यन्तरमण्डले गते सूर्ये तापक्षेत्रसंस्थितेः परिमाणं ज्ञातव्यम् । दिग्भेदात् गोलभेदाच्चान्योऽन्य परिस्थितेः परिवर्तनं प्रत्यक्षोपलब्धिरेव प्रमाणमिति ॥ अथात्र दिनरात्रिव्यवस्थां कथयति'जाव तया णं उत्तमकट्टपत्ता उक्कोसिया अट्ठारसमुहुत्ता राई भवइ, जहण्णए दुवालसमुहुत्ते दिवसे भवइ' यावत् तदा खलु उत्तमकाष्ठाप्राप्ता उत्कर्षिका अष्टादशभुहूर्ती रात्रि भवति, जघन्यो द्वादशमुहूत्तों दिवसो भवति ॥ यावत्-पूर्वोक्तानां विशेषणपरिमाणादिवाचकानां सर्वेषां सूत्राणां वाचनं यावद् भणितव्यम् , तद्यथा-'अंतो संकुडा, बाहिं वित्थडा, अंतो वट्टा बाहिं विहुला अंतो अंकमुहसंठिया बाहिं सत्थिमुहसंठिया, उमओ पासेणं ती से दुवे बाहाओ अवटियाओ भवंति, पणतालीसं पणतालीसं जोयणसहस्साई आयामेणं, दुवे य णं तीसे सर्वबाह्यमंडल में सूर्य के होने पर वहां की अन्धकार संस्थिति का समझना । तथा सर्वबाह्यमंडल में जो अंधकारसंस्थिति का प्रमाण कहा है वही प्रमाण सर्वाभ्यन्तर मंडल में सूर्य के होने पर तापक्षेत्रसंस्थिति का कहा गया है। दिशा के भेद से एवं गोल के भेद से अन्योन्य की परिस्थिति का परिवर्तन प्रत्यक्ष से उपलब्धी ही प्रमाण है। अब यहां पर दिवसरात्रि की व्यवस्था को कहते हैं-(जाव तया णं उत्तमकट्टपत्ता उकोसिया अट्ठारसमुहुत्ता राई भवइ जहण्णए दुवालसमुहुत्ते दिवसे भवई) तब उत्तमकाष्ठा प्राप्त उत्कर्षिका अठारहमुहर्त प्रमामवाली रात्रि होती है तथा जघन्या बारह मुहूर्त प्रमाण का दिवस होता है। यहां पर पूर्वोक्त विशेषण एवं परिमाणादि वाचक सभी कथित सूत्रोक्त पदों का कथन कह लेना चाहिये । जो इस प्रकार से है-(अंतो संकुडा बाहिं वित्थडा अंतो वट्टा बाहिं विहुला अंतो अंकमुहसंठिया वाहिं सत्थिमुहसंठिया ભ્યન્તર મંડળમાં સૂર્ય પ્રવર્તમાન હોય ત્યારે જે અંધકારસંસ્થિતિનું પ્રમાણ કહેલ છે. એજ પ્રમાણ સભ્યન્તર મંડળમાં સૂર્ય હોય ત્યારે તાપક્ષેત્રની સંસ્થિતિનું કહ્યું છે. દિશાભેદથી અને ગોળના ભેદથી એક બીજાની પરિસ્થિતિનું પરિવર્તન પ્રત્યક્ષથી ઉપલબ્ધી જ પ્રમાણ છે. હવે અહીંયા દિવસ રાત્રીની વ્યવસ્થાનું કથન કરે છે. (जाव तया ण उत्तमकट्टपत्ता उक्कोसिया अद्वारसमुहुत्ता राई भवइ, जहण्णए दुवा. लसमुहुत्ते दिवसे भवइ) त्यारे उत्तम.tara बि°1 Aढा२ भुत प्रभावाणी रात्री હોય છે, તથા જઘન્ય બાર મુહૂર્ત પ્રમાણને દિવસ હોય છે. અહીંયાં પૂર્વોક્ત વિશેષણ એવું પરિમાણાદિ વાચક બધા કથિત સૂત્રોક્ત પદનું કથન અહીંયાં કહી લેવું જોઈએ. → ! प्रभाएं छ-(अंतो संकुडा बाहिं वित्थडा अंतो वट्टा बाहिं पिहला अंतो अंकमुह संठिया बाहि सत्थिमुहसंठिया उभओ पासेणं तीसे दुवे वाहाओ अवद्वियाओ भवंति) શ્રી સુર્યપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર: ૧
SR No.006351
Book TitleAgam 16 Upang 05 Surya Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1981
Total Pages1076
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_suryapragnapti
File Size74 MB
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