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सूर्यप्रज्ञप्तिसूत्रे पोडशं यावत् सर्वाणि मतान्तराणि एकादि क्रमेण वक्तव्यानि, तद्यथा-'एगे पुण एव माहंसु ता गेहापणसंठिया तावक्खेतसंठिई पण्णत्ता, एगे एवमाहंसु २' एके पुनरेवमाहुः-तावद् गेहावणसंस्थिता तापक्षेत्रसंस्थितिः प्रज्ञप्ता, एके एव माहुः २ ॥ 'एगे पुण एवमाहंसु ता पासायसंठिया तावक्खेत्तसंठिई पण्णत्ता, एगे एवमासु ३' एके पुनरेव माहुस्तावत् प्रासादसंस्थिता तापक्षेत्रसंस्थितिः प्रज्ञप्ता, एके एवमाहुः ३ ॥ 'एगे पुण एव माहंसु-ता गोपुरसंठिया तावक्खेत्तसंठिई पण्णत्ता, एगे एवमाहंसु ४' एके पुनरेवमाहु-स्तावद् गोपुरसंस्थिता तापक्षेत्रसंस्थितिः प्रज्ञप्ता 'एके एवमाहुः ४॥ 'एगे पुण एवमाहंसु-ता पिच्छाघरसंठिया तावक्खेत्तसंठिई पण्णत्ता, एगे एवमासु ५' एके पुनरेवमाहु-स्तावत् प्रेक्षागृहसंस्थिता तापक्षेत्रसंस्थितिः प्रज्ञप्ता, एके एव माहुः ५ ॥ 'एगे पुण एवमाहंसु-ता वलभीसंठिया तावयह नववे का मत है एवं वालाग्रपोतिका यह सोलहवें तीर्थान्तरीय का मत है अतः नववें से लेकर सोलहवें मतान्तर वादी पर्यन्त के सभी मतान्तर वादीयों के मतान्तर एकादि क्रम से कह लेना चाहिये। जो इस प्रकार से हैं-(एगे पुण एवमासु ता गेहावणसंठिया तावक्खेत्तसंठिई पण्णत्ता एगे एवमाहंसु) १ कोई दूसरा इस प्रकार कहता है कि गेहापण संस्थित तापक्षेत्र की संस्थिति कही है दूसरा एक इस प्रकार कहता है, २ (एगे पुण एवमासु ता पासायसंठिया तावक्खेत्तसंठिई पण्णत्ता एगे एवमासु ३) कोई तीसरा मतवादी कहता है कि प्रासादसंस्थित तापक्षेत्र की संस्थिति कही है तीसरा कोई इस प्रकार कहता है ।३। (एगे पुण एवमासु ता गोपुरसंठिया तावक्खेत्तसंठिई पण्णत्ता एगे एवमाहंसु ४) कोई चतुर्थ मतवादी कहता है कि गोपुर के संस्थान जैसी तापक्षेत्र की संस्थिति कही है कोई एक इस प्रकार कहता है (४) (एगे पुण एवमाहंसु ता पिच्छाघरसंठिया વાદીને મત છે. અને વાલાઝપોતિકા એ સાળમાં તીર્થાન્તરીયનો મત છે, તેથી નવમાથી લઈને સોળમાં મતાન્તરવાદી પર્યન્તના બધા મતાન્તરવાદીના મતાન્તરે એકથી આરંભીને उभ पूर्व ही सेवा नये. मा प्रमाणे छ,-(गे पुण एवमासु ता गेहावणसंठिया तावक्खेत्तसंठिई पण्णत्ता एगे एवमाहंसु) | ये मान्न मतान्तवाही मा प्रमाणे ४९ કે ગેહાપણ સંસ્થિત તાપક્ષેત્રની સંસ્થિતિ કહે છે. બીજો એક અન્ય મતવાદી આ प्रमाणे ४ छे. १२१ (एगे पुण एवमाहंसु ता पासायसंठिया तावस्खेत्तसंठिई पण्णत्ता एगे एवमाहंस) ४ श्रीन अन्यमता छ प्रासानीभ सस्थित तापनी स्थिति ही छ. श्री 15 २॥ प्रमाणे पातानो मत ४ छ. 13। (एगे पुण एवमासु ता गोपुर संठिया तावक्खेत्तसंठिई पण्णत्ता एगे पुण एवमासु) या मतावली ४९ छे के ગપુરના સંસ્થાન જેવી તાપક્ષેત્રની સંસ્થિતિ કહી છે, કઈ એક આ પ્રમાણે કહે છે : (एगे पुण एवमाहंसु ता पिच्छाघरसंठिया तावक्खेत्तसंठिई पण्णत्ता एगे एवमाहंसु) पायौं।
શ્રી સુર્યપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર: ૧