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सूर्यप्रज्ञप्तिसूत्रे एके एवमाहुः ११॥-एके-एकादशाः एवं वदन्ति यत्-चन्द्रसूर्यसंस्थितिः प्रासादवत् संस्थिता वर्त्तते, प्रासादो धनिनां गृहमिति प्रासादस्येव संस्थितं-संस्थानं यस्याः सा तथेत्यन्येषां मतेन वक्तव्येत्युपसंहरति एके एवमाहुः ॥११॥ 'एगे पुण एवमासु-ता गोपुरसंठिया चंदिमसूरियासंठिई पण्णत्ता, एगे एवमाहंसु १२' एके पुनरेवमाहु स्तावद् गोपुरसंस्थिता चन्द्रसूर्यसंस्थितिः प्रज्ञप्ता, एके एवमाहुः १२ ॥-एके-द्वादशसंख्यकास्ती
र्थान्तरीयाः पुनरेवमाहुर्यत् चन्द्रसूर्यसंस्थिति गौपुरसंस्थिता प्रज्ञप्तास्ति, गोपुरं नाम धनिनां गृहस्य बहिद्वार-पुरद्वारं, तेन गोपुरस्येव-पुरद्वारस्येव संस्थितं-संस्थानं यस्याः सा तथेत्य न्येषामभिप्रायेण वक्तव्येत्युपसंहरति-एके एवमाहुरिति १२ ॥ 'एगे पुण एवमाहंसु-ता पेच्छाघरसंठिया चंदिमसूरियसंठिई पण्णत्ता, एगे एवमासु १३' एके पुनरेवमाहुः तावत् -प्रेक्षागृहसंस्थिता चन्द्रसूर्यसंस्थितिः प्रज्ञप्ता, एके एवमाहुः १३ ॥ पुनरेके त्रयोदश स्थाइस प्रकार से कहता है कि चन्द्र सूर्य की संस्थिति प्रासाद के संस्थान जैसी है प्रासाद धनिकों के ग्रह विशेष को कहते हैं, प्रासाद के जैसा संस्थान है जिनका वह प्रासादसंस्थानसंस्थिति कही जाती है कोई एक इस प्रकार से अपना मत कहता है ॥ ११ ॥
(एगे पुण एवमाहंसु ता गोपुरसंठिया चंदिमसूरिया संठिई पण्णत्ता एगे एवमाहंसु)१२ कोई एक बारहवां मतवादी कहता है कि गोपुराकार से चन्द्र सूर्य को संस्थिति कही गई है, अर्थात् बारहवां तीर्थान्तरीय अपना मत प्रगट करता हुवा कहता है कि चन्द्र सूर्य को संस्थिति गोपुरसंस्थित कही गई है, गोपुर धनिकों के गृह का बहिरि को कहते हैं गोपुर माने पुरद्वार अतः पुरद्वार में जैसा संस्थिति होती है इस प्रकार बारहवां तीर्थान्तरीय का कथन है ॥१२॥ ___(एगे पुण एवमाहंसु ता पेच्छाघर संठिया चंदिमसूरियसंठिई पण्णत्ता एगे एवमाहंसु) १३ कोइ एक कहता है कि सूर्य चन्द्र की संस्थिति प्रेक्षागृह વિષે કહે છે કે-ચંદ્ર સૂર્યની સંરિથતિ પ્રાસાદના સંરથાન જેવી છે, પ્રાસાદ ધનિકેના ઘોને કહેવામાં આવે છે. એ પ્રાસેદના જેવું સંસ્થાન છે જેનું તે પ્રાસાદસંસ્થાન सस्थित पाय 2.5 शते पातानो मत शिव छ. १११। (एगे पुण एवमाहंसु ता गोपुरसंठिया चंदिमसूरियासंठिई पण्णत्ता एगे एवमासु) १२ मे मारभ। તીર્થોતરીય ગોપુરાકારથી ચંદ્ર સૂર્યની સંસ્થિતિ કહેલ છે તેમ કહે છે, અર્થાત્ બારમે તીર્થાન્તરીય પિતાને મત દર્શાવતા કહે છે કે-ચંદ્ર સૂર્યની સ સ્થિતિ ગેપુરના સંસ્થાન જેવી કહેલ છે, ગેપુર ધનવાનોના ઘરના બહારના દરવાજાને કહે છે. ગોપુર એટલે કે પુરદ્વાર અંતઃપુરના જેવી સંસ્થિતિ ચંદ્ર સૂર્યની હોય છે. આ પ્રમાણે બારમા मन्यतीथि नु थन छ. १२१ (एगे पुण एवमासु ता पेच्छाघरसंठिया चंदिमसूरियसंठिई पण्णत्ता एगे एवमाहेसु) १३ २४ मात् तमे। भतवाही ४ छ । सूर्य यद्रनी
શ્રી સુર્યપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર: ૧