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________________ २७० सूर्यप्रज्ञप्तिसूत्रे माहुः ७॥ एके-सप्तमास्तीर्थान्तरीयाः पुनः-पण्णां मतं श्रुत्वा एवं-वक्ष्यमाण स्वरूपं स्वमतमाहुः । तद्यथा-'ता पुरथिमाओ लोगंताओ पाओ सूरिए आउकायंसि उत्तिटइ, से णं इमं तिरिय लोयं तिरियं करेइ, तिरियं करित्ता पचत्थिमंसि लोयंतसि सायं मूरिए आउकायसि पविसइ, पविसित्ता अहे पडियागच्छइ पडियागच्छित्ता पुणरवि अवरभूपुरथिमाओ लोयंताओ पाओ सूरिर आउकायंसि उत्तिइ' तावत् पौरस्त्याल्लोकान्तात् प्रातः सूर्यः अप्काये उत्तिष्ठति, स खलु इमं तिर्यग्लोकं तिर्यक् करोति, तिर्यक् कृत्वा पश्चिमे लोकान्ते सायं सूर्यः अप्काये प्रविशति, प्रविश्य चाधः प्रत्यागच्छति, प्रत्यागत्य पुनरपि अवरभुवः पौरस्त्याल्लोकान्तात् प्रातः सूर्यः अप्काये उत्तिष्ठति ।। तावत् श्रूयतां तावत् सप्तमस्य तीर्थान्तअपने मत को समर्थित करते हैं ।।६।। (एगे पुण एव मासु) सातवां कोई एक तीर्थान्तरीय इस प्रकार कहता है माने छहों तीर्थान्तरीयों के मतों को सुनकर के सातवां तीर्थान्तरीय इस वक्ष्यमाण प्रकार से अपने मत को प्रगट करता हुवा इस प्रकार कहने लगा (ता पुरथिमाओ लोयंताओ पाओ सूरिए आउकासि उत्तिइ, से णं इमं तिरियं लोयं तिरियं करेइ तिरियं करित्ता पचत्थिमंसि लोयंतंसि सायं सरिए आऊकायंसि पविसइ, पविसित्ता अहे पडियागच्छह पडियागच्छित्ता पुणरवि अवरभू पुरथिमाओ लोयंताओ सरिए आउकायंसि उत्तिट्टइ) पूर्व दिशा के लोकान्त से प्रभात कालमें सूर्य अप्काय में उदित होता है, वह सूर्य इस तिर्यक्लोक को तिर्यक करता है तथा तिर्यक् कर के पश्चिम लोकान्त में सायंकाल के समय सूर्य अप्काय में प्रविष्ट होता है वहां प्रवेश करके अधोलोक से परावर्तित होता है एवं परावर्तित होकर पृथ्वी के अपर भाग में पूर्व दिशा के ४थननी उपस डा२ ४२त ४३ छ-(एगे एवमाहं सु) असे अर्थात् छटो तीर्थान्तरीय मा પૂર્વોક્ત પ્રકારથી પોતાના મતનું સમર્થન કરે છે. કેદ (एगे पुण एवमाहंसु) सातमी असे तीर्थान्तरीय 21 निभ्नो प्रारथी हे छ અર્થાતુ છએ તીથcરીના મતને સાંભળીને સામે તીર્થાન્તરીય આ વક્ષ્યમાણ પ્રકારથી पोताना भतने प्रगट ४२ते। थ। २॥ प्राभाय हेवा व्य. (ता पुरत्थिाओ लोयंताओ पाओ सूरिए आउकासि उत्तिदुइ से इमं तिरिय लोयं तिरिय करेइ तिरियं करित्ता पच्चत्थिमंसि लोयंसि सायं सूरिए आउकासि पविसइ पविसित्ता अहे पडियागच्छइ पडिय गच्छित्ता पुनरवि अवर भू पुरथिमाओ लोयंताओ सूरिए आउकायंसि उत्तिइ) पूर्व दिशाना सान्तथी प्रभात. કાળમાં સૂર્ય અકાય અર્થાત સમુદ્રમાં ઉદિત થાય છે. એ સૂર્ય આ તિર્યલેકને તિર્યક કરે છે. અને તિર્ય કરીને પશ્ચિમ કાન્તમાં સાંજના સમયે સૂર્ય અપકાયમાં પ્રવેશ કરે છે. ત્યાં પ્રવેશ કરી અધોલેકથી પાછા વળે છે. અને એ રીતે પાછો વળીને પૃથ્વીના બીજા ભાગમાં પૂર્વદિશાના લેકાન્તથી પ્રભાતકાળમાં અપકાયમાં ઉદય પામે છે ભગવાન કહે છે કે સાતમા શ્રી સુર્યપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર: ૧
SR No.006351
Book TitleAgam 16 Upang 05 Surya Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1981
Total Pages1076
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_suryapragnapti
File Size74 MB
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