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________________ २६८ सूर्यप्रज्ञप्तिसूत्रे प्रतिनिवर्तते, ततः पुनरपि अपरभुवः-अधोमुखः-पृथिव्या अधोभागाद्विनिर्गत्य पोरस्त्याल्लोकान्तात् - पूर्वदिग्विभागान्तात् ऊर्ध्व प्रातः-प्रभातसमये सूर्यो देवताविशेषः सदावस्थायी पृथिवीकाये-तस्मिन्नेवोदयभूधरशिरसि पुनरुत्तिष्ठति-उद्गच्छति-लोकदृश्यतां यातीति ॥ ___ एतेषां मतेऽपि भूरियं गोलाकारेति तृतीयं तीर्थान्तरीयमनुसरति, किन्तु तृतीयस्य मते सूर्य आकाशे उद्गच्छति, पञ्चमस्यास्य मते भूधरशिरसि सूर्यस्योद्गमनं भवति, इत्येवानयोभैदः ॥ 'एगे एवमासु ५' एके एवमाहुः ॥ एके-पञ्चमास्तीर्थान्तरीयाः, एवं-पूर्वोक्तप्रकारकं स्ववक्तव्यमाहु:-कथयन्ति ॥ 'एगे पुण एवमाहंसु ६' एके पुनरेवमाहुः ६ ॥ एके-षष्ठास्तीर्थान्तरीयाः पञ्चानां मतं श्रुत्वा पुनः-भूयः एवं-वक्ष्यमाणप्रकारकं स्वमतमाहुः-कथयन्ति । तद्यथा-'ता पुरथिमिल्लाओ लोयंताओ पाओ सूरिए आउकासि उत्तिट्टइ, सेणं हो करके पुनः अधोलोक में जाकर वहां के लोक को प्रकाशित करके वहां से परावर्तित होता है माने पीछा लोट जाता है पीछा लोट करके फिरसे पूर्व दिशावर्ति लोकन्त से ऊपर उदित होकर के प्रभात समय में देवता विशेष सदावस्थायी सूर्य उदयाचल के ऊपर उदित होता है उदित होकर के लोक समुदाय को दृष्टिगोचर होता है। इस पांचवें मतवादी के मत से भी यह पृथ्वी गोलाकार है इस प्रकार के तीसरे मतवादी के कथन के अनुसार ही है। परंतु तृतीय मतवाले के मत में सूर्य आकाश में उदित होता है एवं पांचवें के मत से पर्वत के ऊपर सूर्यउदित होता है इतना ही ये दोनों के कथन में अन्तर है (एगे एव माहंसु) ५ पांचवां तीर्थान्तरीय पूर्वोक्त प्रकार से स्वमत का कथन करता है ५ (एगे पुण एवमाहंसु) ६ कोई एक इस प्रकार अपने मत को कहते हैं अर्थात् छठा तीर्थान्तरीय पांचों तीर्थान्तरीयों के मत को सुनकर इस नीचे वक्ष्यमाण प्रकार से अपने मत को प्रगट करता हुवा कहने लगा (ता पुरत्थि मिल्लाओ लोयंताओ पाओ सरिए आउकासि उत्तिइ से णं इमं तिरियं કરીને અદૃષ્ય થઈ જાય છે. અને આ રીતે અદશ્ય થઈને ફરીથી અધેલકમાં જઈને ત્યાંના લેકને પ્રકાશિત કરીને ત્યાંથી પાછા ફરે છે, પાછો ફરીને ફરીથી પૂર્વ દિશાના લેકાન્તથી ઉપર ઉદિત થઈને પ્રભાતકાળમાં દેવતા વિશેષ સદાવસ્થાથી સૂર્ય ઉદયાચલ ઉપર જઈને ઉદિત થાય છે, અને ત્યાં ઉદય પામીને મનુષ્યલક સમુદાયને દૃષ્ટિગોચર થાય છે. આ પાંચમા મતવાદીને મત પણ પૃથ્વી ગોલાકાર છે આ પ્રમાણેના ત્રીજા મતવાદીના કથન પ્રમાણે જ છે, પરંતુ ત્રીજા મતવાદીના મતમાં સૂર્ય આકાશમાં ઉદય પામે છે. અને આ પાંચમાના મતથી સૂર્ય પર્વતની ઉપર ઉદિત થાય છે, આટલા જ કથનમાં એ બન્નેનું જુદાપણું છે. (एगे एवमासु) पायभी तीर्थान्तरीय पूर्वात प्रथा पाताना भतनु ४थन ४२ छे. ५ (एगे पुण एवमासु) ४ ७४ो तीर्थान्तरीय या प्रमाणे पोताना मतने प्रगट ४२ते! ५४ा साया. (ता पुरथिमिल्लाओ लोयंताओ पाओ सूरिए आउकासि उत्तिदुइ, से णं इमं શ્રી સુર્યપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર: ૧
SR No.006351
Book TitleAgam 16 Upang 05 Surya Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1981
Total Pages1076
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_suryapragnapti
File Size74 MB
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