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________________ सूर्यप्रज्ञप्तिसूत्रे 'तमि मणिभद्दे चेइए' तस्मिन् मणिभद्रे चैत्ये व्यन्तरालये, 'सामी समोसढे' स्वामीभगवान् समवसृतः-समागतः, भगवतः समवसरणवर्णनम् औपपातिकग्रन्थादव सेयः 'परिसा णिग्गया' परिषद् निर्गता-आगतं भगवन्तं श्रुत्वा समस्ताऽपि मैथिली जनता स्वस्वाश्रमात् विनिर्गत्य भगवद्वन्दनाद्यर्थ समष्टिरूपेण समागता । 'धम्मो कहिओ' धर्मः कथितः-तस्याः पर्षदः पुरतो निःशेषजनभाषानुयायिन्या अर्धमागधभाषया धर्म उपदिष्टः। यथा अस्तिलोकः, अस्ति जीवः, इत्यादि, 'पडिगया परिसा' प्रतिगता परिपत्-धर्मोपदेशं श्रुत्वा समस्ताऽपि जनता प्रतिगता 'जाव राया जामेव दिसिं पाउन्भूए तामेवदिसिं पडिगए' यावत् राजा यामेव दिशं प्रादुर्भूत स्तामेव दिशं प्रतिगतः। अत्र यावच्छब्दा दोपपातिकसूत्रादवसेयम् । भगवतो धर्मोपदेशं यथावच्छृत्वा परिषदा सह राजा यामेव दिशमवलम्ब्य समागत:यस्या दिशः सकाशात् प्रादुर्भूतस्तामेव दिशं प्रतिगत इत्यर्थः ।।सू०१॥ धारिणी रानी का वर्णन औपपातिक सूत्र से ही जान लेवें। (तेणं कालेणं तेणं समएणं) उस काल एवं उस समय में (तंमि मणिभद्दे चेइए) उस मणिभद्र चैत्य में याने व्यन्तरायतन में (सामी समोसढे) स्वामी भगवान महावीर स्वामी पधारे। भगवान के समवसरण का वर्णन औपपातिक सूत्र में कहे अनुसार वहां से समझलेवे (परिसा णिग्गया) भगवान् को पधारे हुवे जानकर समस्त मैथिली जनसमूह अपने घर से निकलकर समूह रूप से भगवान के दर्शनार्थ आयी । (धम्मो कहिओ) भगवानने उनको अर्ध मागधीभाषा से धर्म का उपदेश दिया जैसे कि यह लोक 'अस्ति' विद्यमान है, यह जीव विद्यमान है इत्यादि (पडिगया परिसा) धर्मोपदेश सुनकर समग्र जनता स्व स्व निवास स्थान में लेटगइ याने परावर्तित हो गई । (जाव राया जामेव दिसिं पाउभृए तामेव दिसि पडिगए) यावत् राजा जिस दिशा से आया था उसी दिशा को चला गया। यहां पर यावत् शब्द से औपपातिक પાતિક સૂત્રમાંથી સમજી લેવું. (तेणं कालेणं तेणं समएणं) ते जे मन त समये (तमि मणिभद्दे चेइए) ये मशिभद्र नाभना यैत्यमा अर्थात् व्यन्तरायतनमा (सामी समोसढे) भगवान महावीर स्वामी પધાર્યા ભગવાનને સમવસરણનું વર્ણન ઔપપાતિક સૂત્રમાં વર્ણવેલ પ્રકારથી સમજી લેવું, (परिसा णिगाया) लगवान्ने वारेसा तीन सय मिथिलावासीय पातपाताना धेरथी नाणीन समूह ३ मनन ४शन भाटे माव्या, (धम्मो कहिओ) नावाने त्याने अध भागधी भाषामा भने ५३श माथ्यो. म मास (अस्ति) याने अस्तित्व ५२ छ. तर २५ यात्म अस्तित्व घशवे छ. या पहेश सांसजीन (पडिगया परिसा) समस्त समूह पातपाताना निवास्थानमा छ गया. (जाव राया जामेव दिसिं पाऊभूर तामेव दिसि पडिपर) यावत् राहशामेथी मावेश हतो तर हिशा त२६ શ્રી સુર્યપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર: ૧
SR No.006351
Book TitleAgam 16 Upang 05 Surya Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1981
Total Pages1076
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_suryapragnapti
File Size74 MB
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