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प्रमेयबोधिनी टीका पद ३६ सू० ६ मारणान्तिकसमुद्घातादिविशेषनिरूपणम् ९७७ एको वा द्वौ वा यो वा उत्कृष्टेन चत्वारः, एवं पुरस्कृता अपि, एवमे ते चतुर्विंशति श्चतुर्षि शका दण्डका याद् वैमानिकत्वे, एकैकस्य खलु भदन्त ! नैरयिकस्य नैरयिकत्वे कियन्तः केवलिसमुद्घाता अतीता:? गौतम ! न सन्ति, कियन्तः पुरस्कृताः ? गौतम ! न सन्ति, एवं यावद् वैमानिकत्वे, नवरं मनुष्यत्वे अतीता न सन्ति, पुरस्कृताः कस्यचित् सन्ति कस्यचिन्न सन्ति, यस्य सन्ति एकः, मनुष्यस्य मनुष्यत्वे अतीताः कस्यचित् सन्ति कस्यचिन्न सन्ति, यस्य सन्ति एकः, एवं पुरस्कृता भपि, एवमेते चतुर्विंशतिश्चतुर्विशकाः दण्डकाः ॥सू० ६॥ जहण्णेणं एक्को वा दो वा तिणि वा) जिसके हैं, जघन्य एक, दो या तीन हैं (उक्कोसेणं चत्तारि) उत्कृष्ट चार हैं (एवं पुरेक्खडा वि) इसी प्रकार भावी भी (एवमेते चउवीसं चउवीसा दंडगा) इस प्रकार ये चौवीसों दण्डक चौवीसों दंडकों में समझना (जाव वेमाणियत्ते) यावत् वैमानिक पर्याय में।
(एगमेगस्स णं भंते ! नेरहयस्स नेरइयत्ते केवइया केवलिसमुग्घाया अइया ?) हे भगवन् ! एक-एक नारक के नारक पर्याय में कितने केवलिसमुदघात अतीत हैं ? (गोयमा ! णस्थि) गौतम ! नहीं हैं (केवइया पुरेक्खडा) भावी कितने हैं ? (गोयमा ! गस्थि) हे गौतम ! नहीं हैं (एवं जाव वेमाणियत्ते) इसी प्रकार यावत् वैमानिक पर्याय में (णवरं मणूसत्ते अतीता नस्थि) विशेष मनुष्य पर्याय में अतीत नहीं (पुरेक्खडा कस्मइ अस्थि, कस्स नस्थि) भावी किसी का है, किसी का नहीं (जस्सस्थि एक्को) जिसका है एक है (मणूमस्म मणूसत्ते अईया कस्सइ अस्थि कस्सह नस्थि) मनुष्य का मनुष्यपने में अतीत किसी का है, किसी का नहीं (जस्सस्थि एको) जिसका है, एक है (एवं पुरेक्खडा वि) इसी प्रकार भावी भी एवमेते चउव्योसं चउव्वीस दंडगा) इस प्रकार ये चौवीसों दण्डक चौवीस दण्डकों में जानना चाहिए। सू० ६ ॥
धन्य मे, मे १२ (उकोसेण चत्तारि) Scg2 यार (एव पुरेक्खडा वि) मे०४ अरे माथी ५९५ (एवमेते चउवीसं चउवीसा दंडगा) से प्रा२ मा योवीसे ४ यावीसे
मा समान. (जाव वेमाणियत्ते) यावत् वैमानि पर्यायमां.
(एवमे गस्सण भंते ! नेरइयस्स नेरइयत्ते केवइया केवलिसमुग्धाया अइया ?) भगवन् ! ४- ना२४ना ना२४पर्यायमा सात समुद्धात पतीत छ ? (गोयमा ! णत्थि) 3 गौतम ! नथी (केवइया पुरेक्खडा) भावी टक्षा (गोयमा जत्थि) 3 गौतम ! नथी.
(एवं जाव वेमाणियत्ते) से प्रारे यावत् वैमानिः पर्यायमा (नवर मणूसत्ते अतीता नत्थि) विशेष-मनुष्य परमा मतीत नथी (पुरेक्खडा कस्सइ अस्थि कस्सइ नत्थि) भावी अपना छ, न नथी (जस्सत्थि एक्को) ने छे से छे (भगृसम्स मणूसत्ते अतीता कस्सइ अस्थि कस्सइ नत्थि) मनुष्यना मनुष्यपणे ना छ ।ना नथी (नम्सस्थि एक्को) रेत छ मे छ (एव पुरेक्खडा वि) ये मारे भावी पा (एवमेते चउव्वीस चउव्वीस રા) એ પ્રકારે આ વસે દંડક જેવીસ દંડકમાં જાણવા જોઈએ. સૂ૦ ૬
શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૫