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________________ प्रमेयबोधिनी टीका पद ३६ सू० ५ कषायसमुद्घातनिरूपणम् अतीता अनन्ताः, पुरस्कृता ए कोत्तरकाः, एवं नागकुमारत्वे यावनिरन्तरं वैमानिकत्वे यथा नैरयिकस्य भणितं तथैव भणितव्यम् , एवं यावत् स्तनितकुमारस्यापि वैमानिकत्वे, नवरं सर्वेषां स्वस्थाने एकोत्तरम् , परस्थाने यथैव असुरकुमारस्य, पृथिवीकायिकस्य नैरयिकत्वे यावत् स्तनितकुमारत्वे' अतीता अनन्ताः, पुरस्कृताः कस्यचित् सन्ति, कस्यचिन्न सन्ति, यस्य सन्ति स्यात् संख्येयाः, स्यात् असंख्येयाः, स्याद् अनन्ताः, पृथिवीकायिकस्य पृथिवी कायिकत्वे यावद् मनुष्यत्वे अतीता अनन्ताः, पुरस्कृताः कस्यचित् सन्ति कस्य (असुरकुमारस्स असुरकुमारत्ते) असुरकुमार के असुरकुमार-अवस्था में (अतीता अर्णता) अतीत अनन्त (पुरेक्खडा एगुत्तरिया) आगामी एक से लगा कर (एवं नागकुमारत्ते जाव निरंतर वेमाणियत्ते) इसी प्रकार नागकुमार-भवस्था में यावत् लगातार वैमानिक-अवस्था में (जहा नेरइयस्स भणियं तहेव भाणियव्य) जैसे नारक का कहा वैसा ही कहना चाहिए (एवं जाव थणिय. कुमारस्स वि वेमाणियत्ते) इसी प्रकार यावत् स्तनितकुमार के भी वैमानिकपने में (नवरं) विशेष (सम्वेसिं सट्टाणे एगुत्तरियाए) सब का स्वस्थान में एक से लगाकर (परहाणे जहेव असुरकुमारस्स) परस्थान में असुरकुमार के समान । . (पुढविकाइयस्स नेरइयत्त जाव थणिय कुमारत्त) पृथिवीकायिक के नैरयिक पने में यावत् स्तनितकुमारपने में (अतीता अणंता) अतीत अनन्त (पुरेक्खडा कस्सइ अत्थि, कस्तइ नत्थि) भावी किसी के हैं, किसी के नहीं (जस्सत्थि सिय संखेज्जा, सिय असंखेज्जा, सिय अणंता) जिसके है उसके कदाचित् संख्यात, कदाचित् असंख्यात, कदाचित् अनन्त हैं (पुढविकाइयस्स पुढविकाइयत्ते जाव કદાચિત્ સંખ્યાત, કદાચિત્ અસંખ્યાત, કદાચિત અનન્ત. (असुरकुमारस्स असुरकुमारत्ते) असु२मारना असुमार अवस्थामा (अतीता अणंता) मतीत अनन्त (पुरेक्खडा एगुत्तरिया) मासामी ४थी बन (एवं नागकुमारत्ते जाव निरंतर वेमाणियत्ते) शत नामा२ अवस्थामा यावत् निरन्तर वैमानि४ २मस्यामा (जहा नेरइयस्स भणियं तहे व भाणियव्वं) 241 ना२४ना ते ते वा नये. (एव जाव थणियकुमारस्स वि वेमाणियत्ते) 22. २४ ॥रे यावत् स्तनित मारना ५५४ वैमानि:पणे (नवर) विशेष (सव्वेसिं सट्टाणे एगुत्तरियाए) याना २१स्थानमा मेथी २३ ४२रीन (परद्वाणे जहेव असुरकुमारस्स) ५२२थानमा असु२४मारनी समान. (पुढविकाइयस्स नेरइयत्ते जाव थणियकुमारत्त) 2411यिन। नर४ि५ो यावत् स्तनितभा२५ मा (अतोता अणंता) Aतीत अनन्त (पुरेक्खडा करसइ अस्थि, कस्सइ नत्थि) नाव न छे, धना नथी (जरसत्थि सिय संखेजो, सिय असंखेज्जा, सिय अणंता) । छ तेना हायित् सध्यात, हथित् असभ्यात भने दायित् अनन्त छ. (पुढविकाइयस्स पढविकाइयत्ते जाव मगृसत्ते) पृथ्वीयिटन पृथ्वीय अवस्थामा શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૫
SR No.006350
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 05 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1980
Total Pages1173
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size76 MB
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