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________________ प्रमेयबोधिनी टीका पद ३४ सू० ३ देवानां परिचारणानिरूपणम् ८४५ सदेवीकाः सपरिचारा स्तचैत्र यावत् नो चैत्र खलु देवाः सदेवी का अपरिचाराः ? गौतम ! भवनपतिवानव्यन्तरज्योतिष्कसौधर्मेशानेषु कल्पेषु देवाः सदेवीकाः सपरिचाराः, सनकुमारमाहेन्द्रब्रह्मलोकमान्तकमहाशुक्रसहस्रारानतप्राणतारणाच्युतेषु कल्पेषु देवा अदेवीका: सपरिचारा: ग्रेवेयकानुत्तरौपपातिका देवाः अदेवीका अपरिचारकाः, नो चैव खलु देवा: सदेवीका अपरिचाराः, तत् तेनार्थेन गौतम ! एवमुच्यते-देवाः सदेवीकाः सपरिचारास्तच्चैव नो चैव खलु देवाः सदेवीका अपरिचाराः, कतिविधा खलु भदन्त ! परिचारणा प्रज्ञता ? गौतम ! पञ्चविधा परिचारणा प्रज्ञप्ता, तद्यथा-कायपरिचारणा, स्पर्शपरिचारणा, परिचारसहित होते हैं, इत्यादि वही पूर्वोक्त (जाव नो चेव णं देवा सदेवीया अपरियारा) यावत् देव देवीसहित किन्तु परिचाररहित नहीं होते हैं (गोयमा! भवणपईचाणमंतरजोइसिय सोहम्मीसाणेसु कप्पेसु) हे गौतम ! भवनपति, वानव्यन्तर, ज्योतिष्क तथा सौधर्म और ईशानकल्प में (देवा सदेवीया सपरि. यारा) देव देवीयों सहित और परिचार सहित होते हैं (सणंकुमारमाहिदबंभलोग लंतगमहासुक्कसहस्सारआणयपाणय आरणच्चुएसु कप्पेसु) सनत्कुमारमाहेन्द्र, ब्रह्मलोक, लान्तक, महाशुक्र, सहस्रार, आनत, प्राणत, आरण, अच्युत कल्पों में (देवा अदेवीया सपरियारा) देव देवीरहित और परिचार सहित होते हैं (गेवेज्जअणुत्तरोववाइया देवा अदेवीया अपरियारगा) ग्रैवेयक और अनुत्तरोपपातिक देव देवीरहित और परिचार रहित होते हैं (नोचेवणं देवा सदेवीया अपरियारा) ऐसा नहीं होता कि देव देवीसहित हो परन्तु परिचार रहित हों (कइविहाणं भंते! परियारणा पण्णत्ता?) हे भगवन् ! परिचारणा कितने प्रकार की है ? (गोयमा ! पंचविहा परियारणा पण्णता) हे गौतम ! पांच प्रकार की परिपरियार सहित य छ, कोरे मे पूरित (जाव नो चेव णं देवा सदेवीया अपरियारा १) થાવત દેવ દેવી સહિત પણ પરિચાર રહિત નથી હોતાં ? (गोयमा !) गौतम ! (भवणवइवाणमंतरजोइसियसोमहम्मीसाणेसु कप्पेसु) सपनपति पानव्य तर, यति तथा सौधम अने शान ४६५मा (देवा सदेवीया सपरियाग) हे हवाम सहित भने परिवार सहित डाय छे (सणंकुमारमाहिदबंभलोगलंतगमहासुक्कसहस्सारआणय पाणय आरणाच्चुएसु कप्पेसु) सनत्भा२, भान्द्र, प्रता, सान्त४, माशु, सहसार, मानत, प्रात, 24।२६], २५२युत, पामा (देवा अदेविया सपरियारा) हे देवी રહિત અને પરિચારણ સહિત હોય છે. (गेवेज्जअणुत्तरोववाइया देवा अदेवीया अपरियारगा) अवेय४ भने मनुत्त।५पाति हेव हेवी २हित भने परिया२ २हित डाय छ (नो चेवणं देवा सदेवीया अपरियारा) से નથી હતું કે દેવ દેવી સહિત હોય પરંતુ પરિચાર રહિત હેય. (कइविहाण भंते ! परियारणा पण्णत्ता?) 3 भगवन ! परियार हैटसा प्राश्नी શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૫
SR No.006350
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 05 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1980
Total Pages1173
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size76 MB
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