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प्रयमेबोधिनी टीका पद ३४ सू० २ नैरयिकादीनामाहारविषयकाभोगादिनिरूपणम् ८२७
छाया-नैरथिकाणां खलु भदन्त ! आहारः किम् आभोगनिर्तितः, आभोगनिवर्तितः ? गौतम ! आभोगनिवेतितोऽपि अनाभोगनिवर्तितोऽपि, एवम् असुरकुमाराणां सावद वैमा. निकानाम्, नवरम् एकेन्द्रियाणां नो आभोगनिर्वर्तितः, अनाभोगनिर्वतितः, नरयिकाः खलु भदन्त ! यान पुदगलान् आहारतया गृह्णन्ति तान किं जानन्ति पश्यन्ति आहारयन्ति उताहो न जानन्ति न पश्यन्ति आहारयन्ति ? गौतम ! न जानन्ति न पश्यन्ति आहारयन्ति, एवं यावत्
आहारविषगक आभोग की वक्तव्यता शब्दार्थ-(नेरक्या भंते आहारे किं आभोगनिव्वत्तिए, अणाभोगनिव्वत्तिए ?) हे भगवन् नारकों का आहार आभोगनिर्मित होता है या अनाभोगनिर्वतित होता है ? अर्थात उपयोग पूर्वक होता है या बिना ही उपयोग के होता है (गोयमा ! आभोगनिव्वत्तिए वि अणाभोगनिव्वत्तिए वि) हे गौतम ! आभोगनिर्वतित भी, अनाभोगनिवर्तित भी (एवं असुरकुमाराणं जाव वेमाणियाणं) इसी प्रकार अप्लुरकुमारों का यावत् वैमानिको (णवरं एगिदिया णं नो आभोगनिव्वत्तिए, अणाभोगनियत्तिए) विशेष यह कि एकेन्द्रियों का आभोगनिवर्तित नहीं, अनाभोगनिवर्तित आहार होता है।
(नेरइया णं भंते ! जो पोगाले) हे भगवन् ! नारक जिन पुद्गलों को (आहारत्ताए गिण्हति) आहार रूप में ग्रहण करते हैं (ते किं जाणंति पासंति आहारेंति ?) क्या उन्हें वे जानते-देग्वले हैं और उनका आहार करते हैं ? (उदाह) अथवा (न जाणति न पासंनि) नहीं जानते, नहीं देवते (आहारेंति) किन्तु आहार करते हैं (गोयमान जाणंति, न पासंनि, आहारति) हे गौतम ! नहीं जानते, नहीं देखते, आहार करते हैं (एवं जाव तेइंदिया) इसी प्रकार त्रीन्द्रियों
આહાર વિષયક આભેગની વક્તવ્યના साथ :-(नेरइयाण मंते ! आहारे कि आभोगनिव्वत्तिए, अणाभोगनिवत्तिए ?) હે ભગવન ! નારકોનો આહાર આગનિર્વલિત હોય છે અગર અનાગનિવર્તિત हाय छ ? अर्थात् ३५या। पूर्व हाय छे मगर बिना उपयोगी हाय छ ? (गोयमा ! आभोगनिव्वत्तिए वि अणाभोगनिव्यत्तिए वि) गौतम ! सामनिवतित५, मनाला निवतित ५ हाय छे. (एवं असुरकुमाराणं जाव वेमाणियाणं) मे ५४ारे मसुमाराना यापत् वैमानिन (णवरं एगिदियाणं नो आभोगनिव्यत्तिए) विशेष से मेन्टिना આગનિવર્તિત નથી, નાગનિવર્તિત આહાર હોય છે.
(नेरइयाणं भंते ! जो पोग्गले) गवन् ! ना२४ पुस (आहारत्ताए गिण्हति) भाडा२ ३५ अ५ ४२ छे (ते किं जाणंति पासंति आहरे ति) शुभने ना -हमे छ भने तेमने। २०६२ ४२ छ ? (उदाहु) अथवा (न जाणंति न पासंति) नी adioता, नथी हेमता (आहारे ति) ५९] माह।२ ४२ छ (गोयमा ! न जाणति न पासंति, आहारेति)
શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૫