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________________ प्रबोधिनी टीका पद ३३ सू० ३ नैरयिकादीनामवधेः संस्थानादिनिरूपणम् ८०३ संस्थानसंस्थितः प्रज्ञप्तः, सौधर्मक देवानां पृच्छा, गौतम ! ऊर्ध्वमृदङ्गाकार संस्थितः प्रज्ञप्तः, एवं यावद् अच्युत देवानाम्, ग्रैवेयकदेवानां पृच्छा, गौतम ! पुष्पचङ्गेरीसंस्थितः प्रज्ञप्तः, अनुत्तरोपपातिकानां पृच्छा, गौतम ! जवनालकसंस्थानसंस्थितोऽवधिः प्रज्ञप्तः, नैरयिकाणां भदन्त किम् अन्तः, बहिः ? गौतम ! अन्तो नो बहिः, एवं यावत् स्तनितकुमाराः, पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकानां पृच्छा, गौतम ! नो अन्तो, बहिः, मनुष्याणां पृच्छा, गौतम ! पुच्छा ?) ज्योतिष्कों सम्बन्धी पृच्छा ? (गोयमा ! झल्लरिसंठाणसं ठिए पण्णत्ते) हे गौतम ! झालर के आकार का कहा गया है (सोहम्मगदेवाणं पुच्छा ?) सौ धर्म देवों संबंधी प्रश्न ? (गोयमा ! उड्ढमुयंगाकार संठिए पण्णत्ते) हे गौतम ! मदंग के आकार का कहा है ( एवं जाय अच्चुयदेवाणं) इसी प्रकार अच्युत देवों तक का ' (गेवेज्जगदेवाणं पुच्छा) ग्रैवेयक देवों संबंधी पृच्छा ? (गोयमा ! पुष्पचंगेरिसंठिए पण्णत्ते) फूलों की चंगेरी के आकार का कहा है (अणुत्तरोववाइयाणं पुच्छा ?) अनुत्तरौपपाति को सबंधी प्रश्न (गोयमा ! जबना लिया संठिए ओही पण्णत्ते) हे गौतम ! यवनालिका के आकार का अवधि कहा गया है। (नेरइयाणं भंते ! ओहिस्स कि अंतो बाहि ?) हे भगवन् ! नारक अवधि ज्ञान के अन्दर होते हैं या बाहर ? (गोयमा ! अंतो, न बाहिं) हे गौतम ! अन्दर, बाहर नहीं ( एवं जाय थणियकुमारा) इसी प्रकार यावत् स्तनितकुमार (पंचिदितिरिक्ख जोणियाणं पुच्छा ?) पंचेन्द्रिय तिर्यचों संबंधी प्रश्न ? (गोयमा ! नो अंतो, बाहि) हे गौतम! अन्दर नहीं, बाहर (मणूसाणं पुच्छा ?) मनुष्यों पडग संठिए) हे गौतम! पटना आना (जोइसियाणं पुच्छा ?) ज्योतिष्डा संजन्धी पृ२ छ ? ( गोयमा झल्लरिसंठानसंठिए पण्णत्ते) हे गौतम ! आवरना भारना ह्या छे. (सोहम्मगदेवाणं पुच्छा १) सौधर्भ हेवा सम्बन्धी प्रश्न ? (गोयमा ! उडूढमुगाकारसंठ पण्णत्ते) हे गौतम! उर्ध्व भृद्धगता मारना उद्या छे ( एवं जाव अच्चुय देवाणं) अरे अभ्युत हेवा सुधीना. (गेवेज्ज देवाणं पुच्छा ?) ग्रैवेय देवे। संबंधी प्रश्न (गोयमा ! पुष्कच गैरी संठिए पण्णत्ते) सोनी यगेरीना मारना उद्या हे (अनुत्तरोबवाइयाणं पुच्छा) अनुत्तरोपपाति सम्भन्धी प्रश्न ( गोयमा ! जवनालियासठिए ओही पप्पणत्ते) हे गौतम! यवनादिअना આકારની અવિધ કહેલ છે. (नेरइयाणं भंते! ओहिस्स कि अंतो बाहिं १) हे भगवन् ! ना२४ अवधिज्ञाननी महर होय छे अगर महार ? (गोयमा ! अंतो, न बाहि) हे गौतम ! अन्दर महार नहीं ( एवं जाव धणियकुमार ) मे अरे यावत् स्तनितकुमार (पंचि दिय तिरिक्खजोणियाणं पुच्छा) पथेन्द्रिय तिर्यथा सम्बन्धी प्रश्न ( गोयमा ! नी अंतो बाहि) हे गौतम! अन्दर नही महार (मणूसाण पुच्छा ?) मनुष्यो सभ्यन्धी શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૫
SR No.006350
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 05 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1980
Total Pages1173
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size76 MB
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