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________________ ७२८ प्रज्ञापनासूत्र पश्यन्ता, श्रुताज्ञानसाकारपश्यन्ता तत् एतेनार्थेन गौतम ! एव मुच्यते ०, एवं त्रीन्द्रियाणामपि, चतुरिन्द्रियाणां पृच्छा, गौतम ! चतुरिन्द्रियाः साकारपश्यन्तिनोऽपि अनाकारपश्यन्ति नोऽपि, तत् के नार्थेन एवमुच्यते ? गौतम ! ये खलु चतुरिन्द्रियाः श्रुतज्ञानिनः श्रुताज्ञानिनस्ते खलु चतुरिन्द्रिया साकार पश्यन्तिनः, ये खलु चतुरिन्द्रिया चक्षुर्दशानन स्ते खलु चतु रिन्द्रिया अनाकारपश्यन्तिनः, तत् एतेनार्थेन गौतम ! एवमुच्यते. मनुष्पा यथा जीवाः, अवशेषा यथा नैरयिका यावद् वैमानिकाः । सू० १ ।। साकार पश्यन्ता दो प्रकार की कही है (तं जहा-सुयणाणसागारपामणया, सुयअण्णाण सागार पासणया) यह प्रकार श्रुतज्ञान साकार पश्यन्ता और श्रुत अज्ञान साकार पश्यन्ता(से एएणटेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ) इस हेतु से हे गौतम ! ऐसा कहा जाता है (एचं तेइंदियाण वि) इसी प्रकार त्रीन्द्रियों की भी (चरिदियाणं पुच्छा?) चौइन्द्रियों संबंधी पृच्छा ? (गोयमा ! चरिदिया सागारपस्सी वि अणागार पस्सी चि) हे गौतम ! चौइन्द्रिय साकार पश्यन्तावाले भी हैं, अनाकार पश्यन्ता वाले भी हैं (से केण?ण भंते ! एवं बुच्चइ) किस कारण से हे भगवन् ! ऐसा कहा जाता है ? (गोयमा ! जे णं चउरिदिगा) हे गौतम ! जो चौडन्द्रिय (सुयणाणो सुथ अण्णाणी)श्रुत ज्ञानी या श्रुताज्ञानी हैं (ते णं चाउरिदिया सागार पस्सी) पे चौइन्द्रिय साकार पश्यन्ता वाले हैं (जे णं चउरिदिया चक्खुदंसणी ते णं चउरिदिया) जो चौइन्द्रिय चक्षुदर्शनी है, वे चौइन्द्रिय (अणागार पस्सी) अनाकार पश्यन्ता वाले हैं (से) अथ (एएणद्वेण गोयमा !) इस हेतु से गौतम! (एवं बुच्चइ) ऐसा कहा है-(मणूसा जहा जीया) मनुष्य समुच्चय जीवों के समान (अवसेसा जहा नेरइया) शेष नारकों के समान (जाव वेमाणिया) चैमानिकों तक ।। सू० १ ।। बेइंदियाणं दुविहा सागारपासणया पण्णत्ता) गोतम ! दीन्द्रियांनी सा२ पश्यन्ता से प्रारना 3डी छे (तं जहा सुयणाण सागार पासणया, सुय अण्णाण सागारपासणया) ते ॥ ५४२ श्रुतज्ञान सा१२ पश्यन्त। मने श्रुताज्ञान ४२ पश्यन्ता (से एएणट्टेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ) सातुथी है गौतम ! म पवाय छ (एवं तेइंदियाण वि) से प्रार श्रीन्द्रियानी पy (चरिंदिय ण पुच्छा ?) यतुरिन्द्रिया समधी प्रश्न ? (गोयमा ! सागारपम्सी वि अणागारपस्सी वि) गौतम ! यतुरिन्द्रिय सा॥२ ५श्यन्तायाणा पाय छे मनार ५५-त। ५ ५५ छ (से केणट्टेणं भंते ! एवं वुच्चई) ॥ ४२0 सेम ४२वाय छ ? (गोयमा ! जे णं चरिंदिया) हे गौतम ! यतुद्रियो (सुयणाणी सुय अण्णाणि) श्रुतज्ञानी है श्रुतशत छ (ते णं चरिंदिया सागारपस्सी) ते यतुन्द्रिय स॥२ ५२५-ताणा छ (जे णं चउरिदिया चक्खुदंसणी ते णं चरिंदिया) के यतन्द्रिय यक्ष शनी, ते यतुरिन्द्रिय (अणागारपस्सी) २४.२ ५२५४७(से एएणद्वेणं गोयमा !) मे तुथी गौतम ! (एवं वुच्चइ) सेम ४थु छ (मणूसा जहा जीयो) मनुष्य सभुय्यय योना समान (अवसेसा जहा णेरइया) शेष ना२ना समान सभा ॥ सू० १ ।। શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૫
SR No.006350
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 05 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1980
Total Pages1173
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size76 MB
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