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________________ प्रमेयबोधिनी टीका पद ३० सू० १ साकारानाकारपश्यन्तानिरूपणम् ७२५ अनाकारपश्यन्ता, साकारपश्यन्ता यथा द्वीन्द्रियाणाम्, चतुरिन्द्रियाणां भदन्त ! अनाकारपश्यन्ता कतिविधा प्रज्ञप्ता ? गौतम ! एका चक्षुदर्शनानाकारपश्यन्ता प्रज्ञप्ता मनुष्याणां यथा जोवानाम् , शेषा यथा नैरथिकाणां यावद वैमानिशानाम, जीवाः खलु भदन्त ! कि साकार पश्यन्तिनः, पना कारपश्यन्तिनः ? गौतम ! जोयाः साकारपश्यन्तिनोऽपि अनाका पश्यन्तिनोऽपि, तत् केनार्थेन भदन्त ! एवमुच्यते-जीवाः साकारपश्यन्तिनोऽपि अनाकारपश्यन्तिप्रकार श्रुतज्ञान साकार पश्यन्ता, अताज्ञान साकार पश्यन्ता(एवं तेइंदियाण वि) इसी प्रकार त्रीन्द्रियों की भी (चरिदियाणं पुच्छा ? चौइन्द्रियों संबंधी प्रश्न ? (गोयमा ! दुयिहा पण्णत्ता) हे गौतम ! दो प्रकार की कही है (तं जहा सागारपासणया अणागार पासणया) वह इस प्रकार साकार पश्यन्ता अनाकार पश्यन्ता (मागारपासणया जहा बेइंदियाणे) साकारपश्यन्ता जैसी द्वीन्द्रियों की (चरिदियागं भंते ! अणागार पासणया कइचिहा पणत्ता ? हे भगवन् ! चौइन्द्रियों की अनाकार पश्यन्ता कितने प्रकार को कही हैं ? (गोयामा ! एगा चक्खुदंमण अणागारपासणया पणत्ता) हे गौतम ! एक चक्षुदर्शन अनाकार पश्यन्ता कही है (मणूसाणं जहा जीवाणं) मनुष्यों की जीवों के समान (सेसा जहा नेरइया) शेष नारकों के सदृश (जाव येमाणियाणं) यावत वैमानिकों को। (जीया णं भते ! किं सागारपस्सी, अणागार पस्सी ?) हे भगवन् ! जीय साकार पश्यन्ता वाले हैं या अनाकार पश्यन्ता वाले हैं ? (गोयमा! जीचा सागारपस्सी वि अणागार परवी वि) हे गौतम ! जीव साकार पश्यन्तावाले भी हैं, अनाकारपश्चन्ता धाले भी हैं (से केपट्टेणं भंते ! एवं बुच्चइ जोया साग र प्रारं श्रुतज्ञ न सा॥२ पश्यन्ता, श्रुत ज्ञान सा॥२ ५२यन्ता (एवं तेइंदियाण वि) मे ४२ त्रीन्द्रियोनी ५९ (चउइंदियाणं पुच्छ) २४३न्द्रियोना सभी प्रश्न (गोयमा ! दुविहा पण्णत्ती) हे गौतम ! ५४.२ ४ी छ (तं जहा सागारपासणया अणागारपासणया) ते मा ५४२ सा॥२ ५२५न्ता, मना।२ ५श्यन्ता (सागारपास गया जहा बेइंदियाणं) सार ५श्यन्ता वा मेन्द्रियानी (चरिंदियाणं भंते ! अगागारपासणया कइविहा पण्णत्ता ?) हे भगवन् ! यतुरिन्द्रियोनी 1111२ ५श्यन्त। 2। प्रा२नी ही छ ? (गोयमा ! एगा चकखुदसण अणागारपासणया पण्णत्ता) गौतम ! मे४ यश न माना।२ ५श्यन्त४ी छे. (मणूसाणं जहा जीवाणं) मनुष्योनी याना समान (सेसा जहा नेरइया) शेष नाना स४० (जाव वेमाणियाणं) यापत् वैभनिनी. (जीवाणं भंते ! कि सागारपस्सी, अणागारपस्सी ?) डे सावन ! ५ सा२ पश्यन्तावा है मिना।२ पश्य-तापामा छ ? (गोयमा ! जीवा सागारपस्सी वि अणा गारपस्सी वि) हे गौतम ! ७१ सा४।२ ५२५-तापामा ५५५ छ. अना।२ ५श्यन्तावा ५५ छ (से केणढणं भंते ! एवं बुच्चइ जीवा सागारपस्सी वि अणागारपस्सी वि) हे શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૫
SR No.006350
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 05 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1980
Total Pages1173
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size76 MB
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