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________________ ६९६ प्रज्ञापनासूत्रे हियं चउरिंदियाणं ति, पंचिंदिया तिरिक्खजोणिया जहा नेरइया, मणूसा जहा जीवा, वाणमंतर जोइसियवेमानिया जहा नेरइया ! पण्णवाए भगवईए एगोणतीसइमं उपयोगपयं समत्तं " ॥ सू० १॥ " छाया - कतिविधः खलु भदन्त ! उपयोगः प्रज्ञप्तः ? गौतम ! द्विविधः उपयोगः प्रज्ञप्तः, तयथा - साकारोपयोगश्च अनाकारोपयोगच साकारोपयोगः खलु भदन्त ! कति विधः प्रज्ञप्तः ? गौतम ! अष्टविधः प्रज्ञप्तः, तद्यथा - भामिनिवोधिकज्ञानसाकारोगयोगः, श्रुतज्ञान साकारोपयोगः, अवधिज्ञान साकारोपयोगः, मनः पर्यवज्ञान साकारोपयोगः, केवलज्ञान साकारोपयोगः, मत्यज्ञानसाकारोपयोगः, श्रुताज्ञानसाकारोपयोगः, विभङ्गज्ञान साकारोपयोगः, अनाकारोपयोगः खलु भदन्त ! कतिविधः प्रज्ञप्तः ? गौतम ! चतुर्विधः प्रज्ञप्तः, तद्यथा चक्षुर्दर्शनानाकारोपयोगः अचक्षुर्दर्शनानाकारोपयोगः, अवधिदर्शनानाकारीउन्तीसवां उपयोगपद शब्दार्थ - (कइचिणं भंते ! उचभोगे पण्णत्ते ?) हे भगवन् ! उपयोग कितने प्रकार का कहा गया है ? (गोयमा ! दुविहे उयओगे पण्णत्ते) हे गौतम ! उपयोग दो प्रकार का कहा है (तं जहा- सागारोवओगे य अणागारोवओगे य) वह इस प्रकार - साकारोपयोग और अनाकारोपयोग ( सागारोवओगे णं भंते ! कइ बिहे पणते ?) हे भगवन् ! साकारोपयोग कितने प्रकार का कहा है ? (गोगमा ! अट्ठविहे पण्णत्ते) हे गौमत ! आठ प्रकार का कहा है, (तं जहा आभिणिबोहियनाण सागारोवओगे घ) वह इस प्रकार - आभिनिबोधिक ज्ञान साकारोपयोग (सुयनाण सागारावओगे य) श्रुतज्ञान साकारोपयो (ओहिणाणसागारोच ओगे) अवधिज्ञान साकारोपयोग (मनपजवनाण सागारोवओगे) मनः पर्यवज्ञान साकारोपयोग (केवल नाण सागरोवओगे य) केवलज्ञान साकारोपयोग (मति अण्णाणसागारोवओगे) मत्यज्ञान साकारोपयोग (सुयअण्णाण सागारोवओगे) श्रुताज्ञान साकारोपयोग ઓગણત્રીસમુ ઉપયોગ પદ્ધ शब्दार्थ - (कविणं भंते ! उपओगे पण्णत्ते ?) हे भगवन् ! उपयोग डेटला प्रारना छे (गोयमा ! दुबिहे उपओगे पण्णत्ते) हे गौतम! उपयोग में प्रारना ह्या छे. (तं जहा - सागारोव ओगे य अणागारोवओगे य) ते या प्रहार - साशिपयोगाने मनाआरोपयोग ( सागारोवओगे णं भंते ! कइविहे पण्णत्ते ?) हे भगवान ! सारोपयोग डेटसा प्राश्ना ह्या छे ? (गोयमा ! अट्ठविहे पण्णत्ते) हे गौतम! आठ अरना उद्या छे (तं जहाआभिणिवोहियनाण सागारोवओगे य) ते प्ररे-मालिनियोधिक ज्ञान साक्षरोपयोग (सुय नाणसागावओगे) श्रुतज्ञान सारोपयोग (ओहिणाणसागारोव ओगे) व्यवधिज्ञान सामरीपयोग (मणपज्जयनाण सामारोवओगे) मन:पर्ययज्ञान सामपियोग ( वेचलनाण सागारो. वओगे य) डेवलज्ञान सामारोपयोग (मति अण्णाण सागारोवओगे) भत्यज्ञान सामाशिषयोग શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૫
SR No.006350
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 05 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1980
Total Pages1173
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size76 MB
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