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प्रज्ञापनासूत्रे
Sarfarai भदन्त ! कियता कालेन आहारार्थः समुत्पद्यते ? गौतम ! अनुसमयमविरहित आहारार्थः समुत्पद्यते, पृथिवीकायिकाः खलु भदन्त ! किमाहारम् आहारयन्ति, एवं यथा नैरयिकाणां यावत् तानि कतिदिशि आहारयन्ति ? गौतम ! निर्व्याघातेन पइदिशि व्याघातं प्रतीत्य स्यात् त्रिदिशि, स्याच्चतुर्दिशि स्यात् पञ्चदिशि नवरम् ओसन्नं कारणं न भव्यते, वर्णतः कालनीललोहितहारिद्रशुक्लानि, गन्धतः सुरभिगन्ध दुरभिगन्धानि, रसतः तिक्त
शब्दार्थ - ( पुढविकाइया णं भंते ! आहारट्ठी ?) हे भगवन् ! पृथ्वीकायिक आहार के अर्थी हैं ? (हंता, आहारट्ठी) हाँ, आहारार्थी हैं ( पुढविकाइया णं भंते! केवइकालस्स आहारट्ठे समुप्पज्जइ ?) हे भगवन् ! पृथ्वीकायिकों को कितने काल में आहार की अभिलाषा उत्पन्न होती है ? (गोयमा अणुसमयमचिरहिए) हे गौतम! प्रत्तिसमय, विना विरह के (आहारट्टे समुप्पज्जइ) आहार की अभिलाषा उत्पन्न होती है ( पुढविकाइया णं भंते ! किमाहारमाहारे ति ?) हे भगवन् ! पृथिवीकायिक किस वस्तु का आहार करते हैं ? ( एवं जहा नेरइयाणं) इस प्रकार जैसे नारकों का कथन (जाव ताई कइ दिसं आहारेंति ?) यावत् कितनी दिशाओं से उन द्रव्यों को ग्रहण करते हैं ? (गोयमा ! निव्वाघाएणं छद्दिसिं) हे गौतम ! व्याघात न होने पर छह दिशाओं से (वाघायं पडुच्च) व्याघात की अपेक्षा से रुकावट हो तो (सिय तिदिसिं) कदाचित् तीन दिशाओं से (सिय चउदिसिं) कदाचित् चार दिशाओं से (सिय पंचदिसिं) कदाचित् पचि दिशाओं से (नवरं) विशेष (ओसन्नं कारणं न भष्णइ) बहुलता कारण यहां नहीं कहा जाता (वण्णओ कालनीललोहियहा लिह सुकिल्लाइं) वर्ण से काला, नीला, लाल, पीला, और शुक्ल द्रव्यों को (गंधओ लुभिदुभिगंधाई) गन्ध से सुगन्ध दुर्गन्ध
शब्दार्थ:- (पुढविकाइयाणं भंते आहारट्ठी) हे भगवन् ! पृथ्वीश्रयि माहारार्थी छे ? (हंता ! आहारट्ठी) हा, महारार्थी छे (पुढविकाइयाणं भंते केवइकालम्स आहारट्ठे समुपज्जइ ?) हे भगवन् ! पृथ्वी अयिडीने डेटा अणमा आहारनी अलिभाषा उत्पन्न थाय छे ? (गोयमा ! अणुसमयमविरहिए ) - हे गौतम! प्रति समय विरह सिवाय (आहारट्टे समुपज्जइ) आहारनी અભિલાષા ઉત્પન્ન થાય છે
(पुढविकाइयाणं भंते! किमाहारमाहारे ति ?) - हे भगवन् ! पृथ्वी अयि वस्तुनो आहार पुरे छे ? ( एवं जहा नेरइयाणं) मे प्रारभेषु नारअनु अथन (जाव ताई कइ दिसं आहारे 'ति ?) यावत् डेंटली हिशायोथी ते द्रव्योने ग्रहण ४२ छ ? ( गोयमा ! निव्वाघाण छद्दिसिं) - हे गौतम! व्याघातन थतां छ हिशायोथी ( वाघाय पडुकच) व्याधातनी अपेक्षाओ अथाय तो (सिय तिदिसिं) उहायित भए हिशामाथी (सिय चउदिसिं ) प्राथित् यार हिशामाथी (सिय पंचदिसिं) उहायित पांच हिशाखथी.
( नवरं ) विशेष ( ओसन्नं कारणं न भण्णइ) मतानुं रण महीं नथी हेपातु (वण्णओ काल नील लोहिय हालिद सुकिल्लाई ) वर्षा थी क्षणा नीसा, साझ पीणा ने श्वेत
શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૫