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प्रज्ञापनासूत्रे
यथैव नैरयि चत्वारो दण्डकास्तथैव असुरकुमारेऽपि चत्वारो दण्डका भणितव्याः, एवञ्चोपयुज्य भावयितव्यमिति, जीवो मनुष्यश्च अक्रिय उच्यते शेषा अक्रिया नोच्यन्ते सर्वजीवा औदारिकशरीरेभ्यः पञ्चक्रियाः, नैरयिकदेवेभ्यः पञ्चक्रिया नोच्यन्ते, एवम् एकैकजीवपदे चत्वारश्चत्वारो दण्डका भणितव्याः, एवम् एतद् दण्डक शतम् सर्वेऽपि चं जीवादिका दण्डकाः || सु. ४ ||
इसी प्रकार यावत् वैमानिकों से ( नवरं ओरालियसरी रेहिंतो जहा जीवेहिंतो ) औदारिक शरीरवालों के निमित्त से जैसे जीवों के निमित्त से ।
( अमरकुमारे णं भंते ! जीवाओ कइ किरिए ? ) हे भगवन् ! असुरकुमार देव जीव के निमित्त से कितनी क्रिया वाला होता है ? ( गोयमा ! जहेब नेरइए चत्तारि दंडगा ) हैं गौतम ! जैसे नारकजीवोंके संबंध में चारदण्डक कहे है ( तहेव असुरकुमारे वि चत्तारि दंडगा भाणियव्वा ) उसी प्रकार असुरकुमार संबंधी चार दंडक कहने चाहिए ( एवं च उवउज्जऊण भावेयव्व) इस प्रकार उपयोग करके विचार कर लेना चाहिए (जीवे मणूसे य अकिरिए बुच्चइ) समुच्चय जीव और मनुष्य अक्रिय कहा जाता है (सेसा अकिरिया न बुच्चति) शेप अक्रिय नहीं कहलाते ( सच्च जीवा) सब जीव ( ओरालिय सरीरेहिंतों ) औदारिक शरीरों से (पंच किरिया ) पांच क्रिया वाले (नेरइयदेवेर्हितो ) नारकों तथा देवों से (पंच किरिया ) पांच क्रिया वाले (ण बुच्चति ) नहीं कहे जाते ( एवं ) इस प्रकार ( एक्के+कजीवपदे) एक - एक जीवपद में ( चत्तारि चत्तारि दंडगा भाणियव्वा ) चार चार दंडक कहने चाहिए (एवं एत ं दडगस) इस प्रकार ये सौ दंडक (सव्वेवि जीवादीया ) सभी जीव से आरंभ करके (दंडगा ) दंडक होते हैं । ॥ ४ ॥
रीरेहि तो जहा जीवेहिता) विशेष औौहारि४ शरीरवाणा ओना निमित्तथी प्रेम भवाना निभित्तथी ( असुरकुमारेण भरते ! जीवाओ कइ किरिए ? ) हे भगवन् ! मसुरडुभार हेव भवना निमित्तथी डेंटली डियावाणा होय छे ? (गोयमा ! जहेव नेरइए चत्तारि दंडगा ) हे गौतम! प्रेम ना२४ संधी या२ ६' ( तहेच असुरकुमारे वि चत्तारि दंडगा भाणियन्त्रा) ४ प्रारे असुरकुमार संबन्धी यार इंड अहेवाले ( एवं च वज्ञ्जिण भावेयव्व ) मेन अरे उपयोग उरीने विचार पुरी सेवेो मे ( जीवे मणूसे य अकिरिए वुच्चई ) समुयय व रमने मनुष्य मयि हेवाय छे ( सेसा अकिरिया न बुच्चति) शेष मयि नथी हेपाता (सव्व जीवा ) मधाव ( ओरालियसरीरे हिंतो ) मोहारि शरीराथी ( पंच किरिया ) पांच ठियापाणा (नेरइयदेदेहि तो ) नारी तथा हेपोथी ( पंच किरिया ) पांच नयी उडेवाता ( एवं ) से प्रारे ( एक्केक जीवपदे ) २४- २४ 'डगा भाणिवा ) यार - यार 38 हेवा लेये ( एवं एवं दंडगस ) मे प्रठारे भा ६४ (सम्वे विजीवादीया ) अधालवथी मारलीने ( दंडगा ) ६३ होय छे ॥ सु. ४॥
हियावाणा ( ण वुच्चंति ) वयहभां ( चत्तारि चत्तारि
શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૫