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प्रमेयबोधिनी टीका पद २७ सू० १ कर्मप्रकृतिवेदवेदनिरूपणम् एवं मनुष्योऽपि, अवशेषाः एकत्वेनापि पृथक्त्वेनापि नियमाद् अष्टौ कर्मप्रकृती घेदयन्ते, यावद् वैमानिकाः, जीवाः खलु भदन्त ! ज्ञानावरणीयं वेदयमानाः कति कर्मप्रकृतीवेदयन्ते ? गौतम ! सर्वेऽपि तायद् भवेयुः अष्टविध वेदकाश्च अथवा अष्टविधवेदकाश्च सप्तविधवेदकश्च अथवा अष्टविधवेदकाश्च सप्तविधवेदकाश्थ, एवं मनुष्या अपि, दर्शनावरणीयं अन्तरायश्च एव चैव भणितव्यम्. वेदनीयम् आयुष्यनामगोत्राणि वेदयमानः कतिकर्मप्रकृती र्चेदयते ? गौतम ! यथा बन्धकवेदकस्य वेदनीयं तथा भणितव्यम्, जीयः खलु भदन्त ! मोहनीयं भी (अवसेसा) शेष (एगत्तेण वि पुहुत्तेण वि) एकत्व की अपेक्षा से भी और पृथक्त्व की अपेक्षा से भी (णियमा) नियम से (अहकम्मपगडीओ) आठ कर्मप्रकृतियों को (वेदें ति) वेदते हैं (जाय वेमाणिया) वैमानिक तक
(जीया गं भंते ! णाणावरणिज्ज कम्मं वेएमाणा) हे भगवन् ! बहुत जोव ज्ञानाचरणीय कर्म का वेदन करते हुए (कइ कम्मपगडीओ वेदेति ?) कितनी कर्मः प्रकृतियों का वेदन करते हैं ? (गोयमा ! सव्ये वि ताय होज्जा अट्टविहवेयगा) हे गौतम ! सभी आठ के येदक होते हैं (अहवा) अथवा (घट्टविहवेयगा य सत्तचिहवेयगे य) बहुन आठ के वेदक और एक सात का वेदक (अहया अट्टविहयेयगा य सत्तविहवेयगा य) अथवा बहुत आठ के वेदक और बहुत सात के वेदक (एवं मणूसा थि) इसी प्रकार मनुष्य भी।।
(दरिसणावरणिज्जं अंतराइभं च एवंचेय भाणियच्य) दर्शनावरणीय और अन्तराय भी इसी प्रकार कहना चाहिए (बेयणिज्ज आउयं नामगोत्ताई येदे. माणे कति कम्मपगडीओ वेएइ ?) वेदनीय, आयु. नाम और गोत्र कर्म का वेदन करता हुआ कितनी कर्मप्रकृतियों का चेदन करता है ? (गोयमा ! जहा बंधगछ (एवं मणूसे वि) से प्रारं मनुष्य ५९] (अवसेसा) शेष (एगत्तेण वि पुहुत्तेण वि) सत्यनी मपेक्षाथी मने पृथत्पनी अपेक्षाथी ५६ (णियमा) नियमथी (अदुकम्मपगडीओ) मा४ ४ प्रतियोन (वेदेति) हे छ (जाव वेमाणिया) वैमानि सुधी.
(जीवा णं भंते ! णाणावरणिज्जं कम्मं वेदेमाणा) हे भगवान् ! घ ७५ ज्ञानावरणीयनु यह री रहेस! (कइ कम्मपगडीओ वेदेति ?) ईसी प्रतियोनु वेहन ४२ छ ? (गोयमा ! सव्वे वि ताव होजा अट्टविहवेदगा) : गौतम ! l 28 वे थाय छ (अहवा) अथवा (अविहवेदगा य सत्तविहवेदगे य) घt 28ना भने से सातना ३.४ (अह्या अदुविहवेयगा य सत्तविहवेयगा य) 2424५॥ मान वे मने प सातना ६४ (एवं मणूसा वि) मे ५४॥ मनुष्य ५६४.
(दरिस गावरणिज्ज अंतराइअं च एव चेव भाणियव्य) श२०ीय अने मन्त२सय ४५५ मे शते नये (वेयणिज्ज आउयं नामगोत्ताई वेदेमाणे कति कम्मपगडीओ वेइ !) वहनीय, सायु, नाम गोत्रना न ४री २१सा सी प्रतियोनु येहन
શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૫