________________
प्रमेयबोधिनी टीका पद २२ सू. २ कर्मबन्धहेतुक्रिया विशेष निरूपणम्
३९
जीवाः खलु भदन्त ! ज्ञानावरणीयं बध्नन्तः कतिक्रिया: ? गौतम ! स्यात् त्रिक्रियाः स्यात् चतुष्क्रियाः स्यात् पश्चक्रिया अपि एवं नैरयिका निरन्तरं याबद वैमानिकाः, एवं दर्शनावरणीयं वेदनीय मोहनीयम् आयुष्यं नाम गोत्रम् अन्तरायञ्च अष्टविधकर्मप्रकृतयो भणितव्याः, एकत्व पृथक्त्वकाः षोडश दण्डका भवन्ति, जीवः खलु भदन्त ! जीवात् कति क्रियः ? गौतम ! स्यात् त्रिक्रियः स्यात्चतुष्क्रियः स्यात् पञ्चक्रियः स्याद् अक्रियः, जीवः खलु भदन्त ! नैरयिकात् कतिक्रियः ? गौतम ! स्यात् त्रिक्रियः स्यात् जाव माणिए) इसी प्रकार नारक यावत् वैमानिक |
( जीवा णं भंते ! णाणावर णिज्जं बंधमाणा कइ किरिया ? ) हे भगवन् ! ज्ञानावरणीय कर्म को बांधते हुए बहुत जीव कितनी क्रियावाले होते हैं ? ( गोयमा ! यि तिरिया) कदाचित् तीन क्रियावाले ( सिय चउकिरिया कदाचित् चार क्रियावाले ( सिय पंचकरिया) कदाचित् पांच क्रियावाले ( एवं नेरइया निरंतरं जाव माणिया ) इसी प्रकारसे नारक जीवो लगातार यावत् वैमानिक । एवं दरिसणावर णिज्जं ) इसी प्रकार दर्शनावरणीयकर्म को (वेयणिज्जं ) वेदनीय को ( मोहणिज्जं ) मोहनीय को (आउयं) आयुकर्म को (नाम) नामकर्म को (गो) गोत्रकर्म को ( अंतराइयं च) और अन्तरायकर्म को (अट्ठविह कम्मपगडीओ) आठ प्रकार की कर्मप्रकृतियां (भाणियव्वाओ ) कहनी चाहिए ( एगत्तपोहत्तिया सोलस दंडगा भवति) एकवचन और बहुवचन से सोलह दण्डक होते हैं ।
( जीवेणं भंते ! जीवाओ कई किरिया ? ) हे भगवन् ! जीव के निमित्त से जीव feart क्रियावाला होता है ? ( गोयमा ! सिय तिकिरिए ) हे गौतम कदाचित् तीन क्रियावाला (सिय चउकिरिए) कदाचित् चार क्रियावाला (सिय पंचकरिए) कदाचित पांचक्रियावाला ( सिय अकिरिए) कदाचित् क्रियारहित होता है ।
(जीवाणं भंते! णाणावरणीज्जं बंधमाणा कई किरिया ? ) हे भगवन्! ज्ञानावरणीय उर्भने पांघता मेवा घालवा डेंटली डियावाजा होय छे? (गोयमा सिय ति किरिया ) उहायित त्रष्णु ક્રિયાવાળા ( सिय च किरिया ) हाथित् यार दियावाणा (सिय पंच किरिया ) उहान्थित पांथ ड्डियावाणा ( एवं नेरइया नितरं जाव वैमाणिया ) मेन अमरे ना२४ निरन्तर यावत् वैभानि ( एवं दरिसणावरणिज्जं ) मे प्रारे हर्शनवरणीय भने (वेयणिज्जं ) पेटूनीयने (मोहणिज्जं ) भोहनीयने (आउयं) आयुर्माने ( नामं ) नाम भने ( गोंत्तं ) गोत्रर्भने ( अंतराइयं च ) अने अन्तराय ने (अहिकम्मपगडीओ) माह अारनी उर्भ अधृतियो (भाणियन्त्राओ) डेव ये (एगत्तपोहत्तिया सोलस दंडगा भवंति ) म्वयन भने महुवचनथी सोस हैं उसे थाय छे ( जीवेण भंते! जीवाओ कइ किरिया ? ) डे लगवन् ! भवना निमित्तथी लव डेंटली डियावाजा होय छे ? (गोयमा ! सिय ति किरिए) हे गौतम! उहायित ऋडियावाणा (सिय चउ किरिए) उहातियार दियावाणा ( सिय पंच किरिए ) उहायित पांच डियावाणा ( सिय अकिरिए ) ४६| - ચિત ક્રિયા રહિત હાય છે
શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૫