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________________ प्रमेयबोधिनी टीका पद २४ सू० १ कर्मप्रकृतिबन्धनिरूपणम् सप्तविध बन्धकाश्च एकविधरम्घकाश्च अष्टविधबन्धकश्च २ अथवा सप्तविधबन्धकाश्च एकविध बन्धकाश्च अष्टविधबन्धकाश्च ३ अथवा सप्तविधबन्धकाश्च एकविधबन्धकाश्च षडूविधबन्धकश्च ४ अथवा सप्तविधबन्धकाश्च एकविधवन्धकाश्च पइविधबन्धकाश्च ५, अथवा सप्तविधबन्धकाश्च एक विधवन्धकाच अष्टविधबन्धकश्व षड्रविधवन्धकश्च ६, अथवा सप्तविधबन्धकाश्च एकविधवन्धकाश्च अष्टविधवन्धकश्च षविश्बन्ध काश्च ७, अथवा सप्तविधबन्धकाश्च एकविधबन्धकाश्च अष्टविधवन्धकाश्च पइविधवन्धकश्च ८ अपवा सप्तविधबन्धकाश्च एकविधबन्धकाश्च होते हैं १ (अहया सत्तविहबंधगा य एगविहथंधगा य अविहबंधगे य) अथवा सात के बन्धक, एक के बन्धक और कोई एक आठ का बन्धकर (अहवा सत्त. विहबंधया य एगविहबंधगा य अट्टविहबंधगा य) अथवा बहुत सात के बन्धक, बहुत एक के बन्धक और बहुत आठ के बन्धक होते हैं ३ (अहवा सत्तविहबंधगा य एगविहबंधगा य छविहबंधगे य) अथवा बहुत सात के बन्धक, बहुत एक के बन्धक और एक छह का बन्धक ४ (अहवा सत्तविहबंधगा य एगविहबंधगा य छमिहबंधगा य) अथवा बहत सात के बन्धक, बहुत एक के बन्धक और बहत छह के बन्धक होते हैं ५ (अहवा सत्तचिहबंधगा य एगविहय धगा य अधिहबंधगे य छव्विहबंधगे य) अथवा बहुत सात के बन्धक, बहुत एक के बन्धक, कोई एक आठ का बन्धक और कोई एक छह का बन्धक ६ (अहवा सत्तचिहबंधगा य एगविहबंधगा य अविहबंधगे य छव्धिह बंधगा य) अथवा बहुत सात के बन्धक, बहुत एक के बन्धक, एक आठ का बन्धक કહ્યા છે અને એકના બધs પણ થાય છે. ૧ (अहवा सत्तविहबंधगा य एगविहबंधगा य अटुविहबधगा य) मथवा सतना मन्५४, એકના બન્ધક અને કોઈ એક આકના બધેક ૨. (अवा सतविहबंधगा य एगविहबधगा य छव्विर धगे य) ५॥ ५॥ सातना બન્ધક, ઘણા એકના બધક અને અને ઘણા આઠના બંધક થાય છે. ૩ (अहवा सत्तविहबंधगा य एगविहबंधगा य छविहबंधगे य) 24241 । सातना 44, ઘણા એકના બંધક અને એક છને બંધક. ૪. (अहवा सत्तविहबंधगा य एगविहबंधगा य, छव्विहबंधगा य) 4241 घg सातना બન્ધક, ઘણા એકના બધક અને ઘણા છના બન્ધક હોય છે પ. (अहवा सत्तविहब धगा य, एगविहबंधगा य, अदुविहब धगे य छबिहब धगे य) અથવા ઘણા સાતના બઘક, ઘણું એકના બધેક, કોઈ એક આઠના બંધક અને કઈ ४ छना ५४ पने छ. १. __(अह्वा सत्तविहब धगा य एग विहबंधगा य अविहबंधगे य छव्विहबंधगा य) अथवा ઘણા સાતના બન્ધક અને ઘણા એકના બધેક, એક આઠનો બંધક અને ઘણા છના प्र० ५९ શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૫
SR No.006350
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 05 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1980
Total Pages1173
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size76 MB
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