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________________ प्रमेयबोधिनी टीका पद २३ सू० १४ उत्कृष्टकालस्थितिकं ज्ञानावरणीयकर्मबन्धनि० ४४९ स्थितिकम् आयुष्यं कर्म बध्नाति, अन्तरायं यथा ज्ञानावरणीयम् । प्रज्ञापनायां त्रयोविंशतितम पदं समाप्तम् ॥ २३॥ सू० १४॥ ____टोका-पूर्व जघन्यकालकर्मस्थितिबन्धकानां प्ररूपणं कृतम, सम्प्रति उत्कृष्टकालकर्मबन्धक न् प्ररूपयितुपाह-'उक्कोसकालट्ठिइयं णं भंते ! णाणावरणिज्जं किं नेरइओ बंधइ, तिरिक्ख जोणिओ बंधइ, तिरिक्खजोणिणी बंधइ, मणुस्सो बंधइ, मणुस्तिणी बंधइ, देवो बंधइ, देवी बंधइ ?' हे भदन्त ! उत्कृष्टकालस्थितिकं खलु ज्ञानावरणीयं कर्म किं नैरयिको बध्नाति ? किं वा तिर्यग्योनिको बध्नाति ? किंवा तिर्यग्यो निकी बध्नाति ? किं वा मनुष्यो बध्नाति ? किं वा मानुषी बध्नाति ? किं वा देवो बध्नाति ? किंवा देवी बध्नाति ? भगवानाह'गोयमा ! हे गौतम ! 'नेरइओ वि बंधइ जाव देवी वि बंधई' ज्ञानावरणीयं कर्म नैरयिकोऽपि बध्नाति यावत्-तियग्योनिकोऽपि तिर्यग्योनिक्यपि, मनुष्योऽपि मनुष्यपि, देवोऽपि गोयमा ! माणुसी) हे गौतम ! इस प्रकार की मनुष्यनी (उक्कोसकालट्टिईयं आउयं कम्मं बंधइ ) उत्कृष्ट काल की स्थिति वाले आयु कर्म को बांधती है । (अंतराइयं जहा णाणावरणिज्ज) अन्तराय कर्म को ज्ञानावरण के समान समझे । (पण्णवणाए तेवीसमं पयं समतं) प्रज्ञापना का तेईसयां पद समाप्त ॥सू० १४॥ टोकार्थ-कर्मों की जघन्य स्थिति का बन्ध कौन करता है, यह पहले निरूपण किया जा चुका है, अब उत्कृष्ट स्थिति बन्धकों की प्ररूपणा की जाती है:___ गौतमस्वामी-हे भगवन् ! उत्कृष्ट काल की स्थिति वाला ज्ञानावरणीय कर्म कौन बांधता है ? क्या तियेच बांधता है ? क्या तिर्यचिनी बांधती है ? क्या मनुष्य बांधता है ? मानुषी बांधती है? क्या देव यांधता है ? या देवी बांधती है ? भगवान्-हे गौतम ! उत्कृष्ट स्थिति चाले ज्ञानावरणीय कर्म का बन्ध नारक भी करता है, यावतू-तिर्यंच भी करता है, तियचिनी भी करती है, मनुष्य भी माणुसी) में प्रनी मनुष्याणी (ऊक्कोसकालठिईयं आऊयं कम्मं बधइ) कृष्ट गनी સ્થિતિવાળા આયુ કમને બાંધે છે. __ (अंतराइयं जहा णाणावरणिज्जं) मन्त२।५ भनि ज्ञाना१२९ समान at (पण्णवणाए तेवीसमं पय समत्तं) प्रज्ञापनानु तेवीसभु ५६ सभात ॥ २० १४ ॥ ટીકાથકની જઘન્ય સ્થિતિને અન્ય કોણ કરે છે, એ પહેલાં નિરૂપણ કરાયેલું છે. હવે ઉત્કૃષ્ટ સ્થિતિ ખવકેની પ્રરૂપણ કરાય છે શ્રી ગૌતમસ્વામી–હે ભગવન! ઉત્કૃષ્ટ કાળની સ્થિતિ વાળાં જ્ઞાનાવરણીય કર્મને કે બધે છે? શું નારક બાંધે છે? શું તિર્યંચ બાંધે છે શું તિય ચિની બાંધે છે? શું મનુષ્ય બાંધે છે? શું મનુષ્ય સ્ત્રી બાંધે છે? શું દેવ બાંધે છે? અગર દેવી બાંધે છે? શ્રી ભગવાન-હે ગૌતમ! ઉત્કૃષ્ટ સ્થિતિવાળા જ્ઞાનાવરણીય કર્મને બન્ધ નારક પણ કરે છે, યાવત્ તિર્યંચ પણ કરે છે, તિય ચિની પણ કરે છે, મનુષ્ય પણ કરે છે, प्र०५७ શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૫
SR No.006350
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 05 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1980
Total Pages1173
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size76 MB
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