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________________ प्रज्ञापनासूत्रे गौतम ! मोहनीयस्य कर्मणो जघन्यस्थितिबन्धकः, तदव्यतिरिक्तोऽजघन्यः, आयुष्यस्य खलु भदन्त ! कर्मणो जघन्यस्थितिबन्धकः कः प्रज्ञप्तः ? गौतम ! यः खलु जीवः असं क्षेप्याद्धाप्रविष्ट सर्व निरुद्धं तस्यायुष्यम् शेषः सर्वमहत्या आयुष्यबन्धाद्धायाः, तस्याः खलु आयुष्यबन्धाद्धायाश्वरमकालसमये सर्वजघन्या स्थिति पर्याप्तापर्याप्तिका निवर्तयति, एष खलु गौतम ! आयुष्यकर्मणो जघन्यस्थितिबन्धकः, तद व्यतिरिक्तोऽजघन्यः ॥ सू० १३॥ _____टीका-पूर्व संज्ञिपञ्चेन्द्रियाणां ज्ञानावरणीयादि कर्मणां जघन्यस्थितिबन्धस्यान्तर्मुहूर्ताजघन्य स्थिति का बन्धक कौन कहा गया है ? (गोयमा ! अन्नयरे बादरसंप. राए) हे गौतम ! अन्यतर बादर सम्पराय (उयसामए वा खरगे या) उपशामक अथवा क्षपक (एसणं गोयमा ! मोहणिजस्स कम्मरस जहण्णठिइबंधए) हे गौतम ! यह मोहनीय कर्म की जघन्य स्थिति का बन्धक है (तव्वइरित्ते अजहण्णे) उससे भिन्न अजघन्य बंधक (आउयस्स णं भंते ! कम्मरस जहण्ण ठिईबंधए के पण्णत्ते ?) हे भगवन् ! आयु कर्म का जघन्य स्थितिबंधक कौन कहा गया हैं ? (गोयमा ! जे णं जीवे) हे गौतम ! जो जीव (असंखेप्पद्धापविढे) असंक्षे. प्याद्धाप्रविष्ट (सव्वनिरुद्धे से आउए) उसका आयुष्य सब से कम होता है (सेसे) शेष (सव्वमहंतीए) सब से बडी (आउयबंधद्धाए) आयु के बंध काल की (तीसे णं आउयबंधद्धाए) उस आयु बन्ध काल के (चरिमकालसमयंसि) अन्तिम काल के समय में (सव्वजहणियं) सब से जघन्य (ठिई) स्थिति को (पज्जत्तापज्जत्ति यं) पर्याप्तापर्याप्तिका को (निव्वत्तेइ) बांधता है (एसणं गोयमा ! आउय कम्मरस जहण्णठिइ बंधए) हे गौतम ! वह जीय आयु कर्म की जघन्य स्थिति का बन्धक है (तव्वइरित्ते अजहण्णे) उस से भिन्न अजघन्य स्थिति का बंधक होता है। सू०१३॥ हे गौतम ! गन्यत२ मा४२ स०५२।य (वसामए वा खवगे वा) S५शाम अथवा १५४ (एसणं गोयमा ! मोहणिज्जस्स कम्मरस जहण्णठिइबंधए)-3 गौतम ! मा भाडनीय भनी धन्य स्थितिमा ५५४ छ (तब्बइरित्ते अजहण्णे) तनाथ लिन्न अन्य ५५४ सम४१। (आउयस्स णं भंते ! कम्मरस जहण्णठिईबंधए के पण्णत्तें)-३ नमन् ! मायु ४भना धन्य (२५ति और छ ? (गोयमा! जेणं जीवे) हे गौतम ! १(असंखे. प्पद्धापवि) असक्षेपद्ध। प्रविष्ट (सव्वनिरुद्ध से आउए) तेनु मायुष्य साथी छु हाय छ (सेसे) शेष (सबमहंतीए) माथी मोटी (आयुयबघद्धाए) मायुना मानी (तीसेणं आउयबंधद्धाए) से आयुमना (चरिमकालसमयंसि) मन्तिम ना समयमा (सव्व. जहणिय) माथी धन्य (ठिई) शितिनी (पज्जत्ता पज्जत्तियं) पर्याप्ता५तिने (निव्वत्तेइ) मांध छे (एस णं गोयमा ! आउयकम्मरस जहण्णठिइबधए) हे गौतम ! ते ०१ मायु भनी धन्य स्थितिनी 43 छ (तव्वरित्ते अजहणे) तेनाथी लिन्न मन्य स्थितिना બંધક બને છે. સૂત્ર ૧૩ છે શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૫
SR No.006350
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 05 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1980
Total Pages1173
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size76 MB
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