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________________ प्रज्ञापनासूत्रे अर्द्धमासः, अन्तर्मुहूर्तम्, एवं जघन्यकम्, उत्कृष्टकं पुनर्यथा कषायद्वादशकस्य, चतुर्णामपि आयुषां या औधिकी स्थिति णिता तां बध्नन्ति, आहारकशरीरस्य तीर्थकरनाम्नश्च जघन्येन अन्तः सागरोपमकोटीको टयः, उत्कृष्टेन अन्तः सागरोपमकोटीकोटयः, पुरुषवेदनीयस्य जघन्येनाष्टौ संवत्सराणि, उत्कृष्टेन दशसागरोपमकोटीकोटयः, दशच वर्ष वर्ष का अबाधा (भवाणियो कम्मठिई कम्मनिसेगो) अबाधाकाल कम कर्म स्थिति कर्मनिषेक का काल (कोहमाणमायालोभसंजलणाए य) संज्वलन, क्रोध, मान, माया और, लोभ का (दो मासा) दो मास (मासो) एक मास (अद्ध मासो) आधा मास (अंतोमुहत्तं) अन्तर्मुहर्त (एवं जहण्णेणं) यह जघन्य की अपेक्षा से (उक्कोसेणं पुण जहा कसायचारसगस्स) उत्कृष्ट जैसे कषाय द्वादशक का (च रण्ह वि आउयाणं जा ओहिया ठिती भणिता तं बंधंति) चारों आयुओं की जो सामान्य स्थिति कही, यह बांधते हैं (आहारगसरीरस्स सिस्थगरना माए) आहाकशरीर और तीर्थकर नामकर्म का (जहण्णेणं अंतोलागरोवमकोडा कोडीओ) जघन्य अन्तः कोटाकोटि सागरोपम का (उक्कोसेणं अंतो सागरोयम कोडाकोडीओ) उत्कृष्ट अन्तः कोटाकोटि सागरोपम (पुरिसवेदणिज्जस्स जह ण्णेणं अह संवच्छराई) पुरुषवेदनीय का जघन्य आठ वर्षे (उकोसेणं दस सागरोवमकोडाकोडीओ) उत्कृष्ट दश कोडाकोडी सागरोपम (दस य वाससयाई अबाहा) दश सौ वषे का अबाधाकाल (अबाहूणिया कम्मट्टिई कम्पनिसेगो) वनी ममाया छे. (अबाहूणिया कम्मदिई कम्मनिसेगो) ते समाधानी म स्थिति ते भनिषेनी छे. (कोह, माण-माया-लोभ-संजलणाए य, दो मासा मासो, अद्धमासो, अंतो मुहुतं, एवं जहण्णेणं) संसन औधमान, माया, सोमनाथे मास, से भास, भासने मतभुडूत ना से प्रमाणे पनी अपेक्षा ५५ २ छ(उक्को सेणं पुण जहा कसायबारसगस्स) उत्कृष्टथी जी पाय दाश प्रमाणे ५५ सभापो. (वउण्हवि आउयाणं जो ओहिया ठिती भणिया तं बंधति) या य मायुयोनी रे सामान्य ઔધિક સ્થિતિ કહી છે તેને સંજ્ઞી પંચેન્દ્રિય જીવ બાંધે છે. (आहारगमरी रस्स, तित्थगरनामाए, जह्मणेणं अंतो सागरोवमकोडाकोडीओ)-मा २५ શરીર અને તીર્થકર નામકર્મનો બંધ જઘન્યથી અંત:કોડાકડી સાગરોપમને બાંધે છે. (उक्कोसेणं अंतो सागरोवमकोडाकोडोओ) थी मतinsी सापभने। मधे छ. (पुरिसवेयणिज्जस्स, जहण्णेणं अट्ठ संवच्छ राइ) पुरुषहनीय भनी म धन्यथा मा नो, (उकोसेणं दस सागरोवमकोडाकोडीओ) कृपया इस 13313 सागरी५भने। मध छे. (दस य वाससयाई अबाहा) तेना शसे - १२ सपनो माया tण छ. (अबाहूणिया कम्नदिई कम्मनिसेगो) ते समाध! सिपायनी शिति त भ નિષેકને કાળ છે. શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૫
SR No.006350
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 05 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1980
Total Pages1173
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size76 MB
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