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________________ प्रमेयबोधिनी टीका पद २३ सू० १० एकेन्द्रियजातिनामस्थितिनिरूपणम् ३३१ षेकः, बादरनाम्नि यथा अप्रशस्तविहायोगतिनाम्नः, एवं पर्याप्तनाम्न्यपि, अपर्याप्तनाम्नि यथा सूक्ष्मनाम्नः, प्रत्येकशरीरनाम्न्यपि द्वौ समभागौ, साधारणशरीरनाम्नि यथा सक्षमस्य, स्थिरनाम्नि एकः सप्तभागः अस्थिरनाम्नि द्वौ, शुभनाम्नि एकः, अशुभनाम्नि द्वौ, सुभगनाम्नि एकः, दुर्भगनाम्नि द्वौ, सुस्वरनाम्नि एकः दुस्रनाम्नि द्वौ, आदिनाम्नि एकः, अनादिनाम्नि अठारह कोडाकोडी सागरोपम (अट्ठारस य वाससयाई अवाहा) अठारह सौ वर्ष का अबाधा काल (अबाहूणिया कम्मढ़िई कम्मनिसेगो) अबाधाकाल कम कमस्थिति कर्मनिषेक का काल । ___ (बादरनामाए जहा अप्पसत्यविहायोगति नामस्स) बादर नामकर्म की स्थिति अप्रशस्तविहायोगतिनामकर्म के समान (एवं पजत्तनामाए वि) इसी प्रकार पर्याप्त नामकर्म की भी (अपजत्तनामाए जहा सुहुमनामस्स) अपर्याप्त नामकर्म की जैसे सूक्ष्मनामकर्म की (पत्तेयसरीरनामाए घिदो सत्तभागा) प्रत्येक शरीरनामकर्म की भी दो बेटे - सात भाग (माहारणनामाए जहा सुहुमस्त) साधारणशरीर नामकर्म की स्थिति सूक्ष्मनाम कर्म के समान (थित्नामाए एगं सत्तभाग) स्थिरनामकर्म की : भाग (अधिरनामाए दो) अस्थिर नामकर्म की दो (सुभनामाए एगो) सुभनामकर्म की एक (असुभनामाए दो) अशुभनामकर्म की दो सुभगमनामाए एगो) सुभगमनामकर्म की एक (दूभगनामाए दो) दुर्भगनाम (उकोसेण अद्रारससागरोवमकोडाकोडीओ)-कृष्टथी, मदार डी सागरोपभनी स्थिति छ. (अट्ठारस य वाससयाई अबाहा)-तेना मढ२से पनी छ. (अबाहूणिया कम्मट्टिई कम्मनिसेगो)-ते ममा पनी स्थिति मनिषन। ण छ. (बादरनामार जहा अपसत्यविहायोगतिनामस्स)-४२नामाभनी स्थिति मप्रशस्त વિહાગતિ નામકર્મની સમાન સ્થિતિ જાણવી. (एवं पज्जत्तनामाए)-से प्रमाणे पति नामभनी स्थिति सभापी. (अपज्जत्तनामए वि जहा सुहुमनामस्स)-५५त नाममनी स्थिति मनाममनी સ્થિતિ પેઠે સમજ. (पत्तेयसरीरनामाए विदो सत्तभागा)-प्रत्ये: शरीरनामभनी स्थिति में सप्त. માંશ હૈ ભાગ સમજવી. (साहारणनामाए वि जहा सुहुमस्स)-साधा२६ शरीरनामभनी स्थिति सूक्ष्म नाम કર્મની સ્થિતિ પિઠે જણ વી. (थिर नामार एगं पत्तभ.गं)-स्थिर नभमनी स्थिति में समia सभापी. (अथिरनामा र दो)-मने मस्थिनामभनी स्थिति मे मा समरवी. (सुभनामाए एगो)-शुभ नाममना ४ मा समन्यो (असुभनामाए दो)-शुल નામકર્મની બે ભાગ સમજવી, શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૫
SR No.006350
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 05 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1980
Total Pages1173
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size76 MB
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