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प्रमेयबोधिनी टीका पद २३ सू० १० एकेन्द्रियजातिनामस्थितिनिरूपणम् ३१९ दशवर्षशतानि अबाधा, अबाधोना कर्मस्थितिः कर्मनिषेकः, पञ्चेन्द्रियजातिनाम पृच्छा, गौतम ! जघन्येन सागरोपमस्य द्वौ सप्तभागौ पल्योपमस्णसंख्येय भागोनौ, उत्कृष्टेन विंशतिः सागरोपमकोटोकोटयः, विंशतिश्च वर्षशतानि अबाधा, औदारिकशरीरमपि एवञ्चैव, वैक्रियशरीरनाम खलु भदन्त ! पृच्छा, गौतम ! जघन्येन सागरोपमसहस्रम्य द्वौ सप्तभागी पल्योपमस्यासंख्ये. यभागोनौ, उत्कृष्टेन विंशतिः सागरोपमकोटीकोटयः, विंशति, वर्षशतानि अबाधा, अबाधोना का अबाधा काल (अवाहूणिया कम्मट्टिई कम्मनिसेगो) अबाधा काल कम कर्म स्थितिकाल निषेक काल।।
(पंचिदियजाइनामए पुच्छा ?) पंचेन्द्रिय जातिनामकर्म संबंधी प्रश्न ? (गो. यमा! जहाणेणं सागरोवमस्त दोणि सत्तभागा पलिओवमस्स असंखेजइभागेणं ऊणया) जघन्य पल्योपम का असंख्यातवां भाग कम सागरोपम का भाग (उक्कोसेणं वोसं सागरोपम कोडाकोडीओ) उत्कृष्ट वीस कोडाकोडी सागरोपम (पीस य वाससयाई अबाहा) वीस सौ वर्ष का अबाधा काल (भवाणिया कम्महिई कम्मनिसेगो) अबाधा काल कम कमस्थितिकाल निषेक काल है।
(ओरालियसरीरएवि एवं चेव) औदारिकशरीर की स्थिति भी इसी प्रकार (वे उव्वियसरीर नामाए णं भंते पुच्छा ?) हे भगवन् ! वैक्रियशरीरनामकर्म की स्थिति के विषय में प्रश्न ! (गोयमा ! जहणणेणं सागरोवमसहस्सस्स दो सत्तभागा, पलि ओवमस्स असंखेजइभागेणं ऊणया) हे गौतम ! जघन्य पल्योपम का असंख्यातवां भाग कम सागरोपम का भाग (उक्कोसेणं वीसं सागरोयम (अटारसवाससयाई अबाहा)-तेनी साढ२से पनी समाधी ७ छ (आबाहूणिया कम्मठिई कम्मनिसेगो)- ते २४ाधा पनी स्थितिने। ४ ते भनिषेनी ५ उपाय छे.
(पंचिदियजाईनामए पुच्छा)- भगवन् पश्यन्द्रिय तिनम४ समधी प्रश्न छुः
(गोयमा ! जहण्णेणं सागरोवमस्स दोण्णि सत्तभागा पलि प्रोवमस्स अस खेज्जइभागेणं ऊणया) 3 गौतम ! धन्यथी पक्ष्योभना मध्यातमा भागे माछा मेटा साथપમના બે સપ્તમાંશ ૩ ભાગ જેટલી પંચેન્દ્રિય નામકર્મની સ્થિતિ છે.
(उक्कोसेणं वीसं सागरोवमकोडाकोडीओ)-उत्कृष्टथी, वीसी सागरोपम, (वीस य वाससयाई आबाहा) तेन पीससी-मे १२ वर्षान। अमाया छ. (अबाहूणिया कम्मठिई कम्मनिसेगो) ते समाधानी स्थितिना ४ मनिषने ५ छ. (ओरालियसरीरए वि एवं चेव) मोहा२ि४०२नी नामभनी स्थिति पy मे प्रमाणे समापी.
(वेउव्वियसरीरनामएणं पुच्छा)-डे मापन् , वैठियशरीरका नाममनी स्थिति संधी प्रश्न छु
(गोयमा ! जहण्णेणं सागरोवमस्स दो सत्तभागा पलिओवमस्स असंखेज्जइ भागेणं ऊणिया) -હે ગૌતમ, જઘન્યથી, પપમના અસંખ્યાતમા ભાગે ઓછા એટલા સાગરોપના બે
શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૫