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________________ प्रमेयबोधिनी टीका पद २३ उ. २ सू० ८ कर्मप्रकृतिनिरूपणम् २५९ गतिर्गमनविशेषो विहायो गतिः, सा द्विविधा, तद्विपाकवेद्यं विहायोगतिनामकर्मापि द्विविधमित्यग्रे वक्ष्यते २०, 'तसनामे २१' त्रस नाम-त्रस्यन्ति-उष्णादि परितप्ताः सन्तोऽभीप्सि. तस्थानादुद्विजन्ते छायाद्यासेवनाथै स्थानान्तरं गच्छन्तीति त्रसा:-द्वीन्द्रियादयस्तत्पर्यायपरिणामवेद्यं नामकर्मापि त्रसनाम २१, 'थावरणामे २२' स्थावरनाम-यदुदयवशादुष्णाद्यभितापेऽपि तत्स्थानपरित्यागासमर्थाः सन्तः पृथिव्यप्तेजोवायुवनस्पतिलक्षणाः स्थावरा भवन्ति तत् स्थावरनाम २२, 'मुहुमनामे २३' सूक्ष्मनाम-यदुदयवशाद् बहूनामपि समुदिचाहिए । उत्कट रक्तवर्ण नामकर्म के उदय से उस में प्रकाशत्व पाया जाता है। - १९-उद्योत नामकर्म-जिस कर्म के उदय से प्राणियों के शरीर उष्ण रहित प्रकाश से युक्त होते हैं, वह उद्योतनामकर्म कहलाता है, जैसे-यति, देव, उत्तरवैक्रियवान् , चन्द्र, नक्षत्र, ताराविमान, रत्न और औषधि । २०-विहायोगतिनाम कर्म-विहाय के द्वारा गमन होना बिहायोगति है। विहायोगति के दो भेद हैं। उसका कारणभूत कर्म भी दो प्रकार का है, यह आगे कहेंगे। ___ २१-त्रसनामकर्म- जो जीव त्रास को प्राप्त होते हैं, गर्मी आदि से तप्त होकर छाया आदि का सेवन करने के लिए दूसरे स्थान पर जाते हैं, ऐसे दीन्द्रियादि जीय त्रस कहलाते हैं त्रस पर्याय का कारणभूत कर्म सनामकर्म समझना चाहिए। २२-स्थायरनामकर्म-जिस कर्म के उदय से जीव सर्दीगर्मी से पीडित होने पर भी उस स्थान को त्यागने में समर्थ न हो सके, वह स्थावर नामकर्म हैं । पृथ्वीकाय, अप्काय, तेजस्काय, यायुकाय और वनस्पतिकाय, के जीव स्था. वर कहलाते हैं। __ २३-सूक्ष्मनामकर्म-जिस कर्म के उदय से बहुत-से प्राणियों के शरीर यन्द्र, नक्षत्र, तारा, विमान, २(न, मन औषधि, (૨૦) વિહાગતિ નામકર્મ-વિહાયસના દ્વારા ગમન થવું વિહા ગતિ છે. વિહા ગતિના બે ભેદ છે. તેનાં કારણભૂતકર્મ પણ બે પ્રકારનાં છે, તે આગળ કહેવાશે. (૨૧) ત્રસનામકર્મ–જે જીવ ત્રાસને પ્રાપ્ત થાય છે, ગર્મી આદિથી તપ્ત થઈને છાયા વગેરેનું સેવન કરવા માટે બીજા સ્થાન પર જાય છે, એવા દ્વીન્દ્રીયાદિ જીવ ત્રસ કહેવાય છે. ત્રણ પર્યાયના કારણભૂત કર્મ ત્રસનામકર્મ સમજવું જોઇએ. (૨૨) સ્થાવરનામકર્મ–જે કર્મના ઉદયથી જીવ શદ ગમથી પીડિત થવા છતાં પણ તે સ્થાનને છોડવા સમર્થ ન થઈ શકે, તે સ્થાવર નામકર્મ છે, પૃથ્વીકાયિક, અષ્કાયિક, તેજસ્કાયિક, વાયુકાયિક અને વનસ્પતિકાયિકના જીવ સ્થાવર કહેવાય છે. (૨૩) સૂક્ષમ નામકર્મ–જે કર્મના ઉદયથી ઘણું પ્રાણીઓનાં શરીર સમુદિત થતાં શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૫
SR No.006350
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 05 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1980
Total Pages1173
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size76 MB
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