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________________ प्रमेयबोधिनी टीका पद २३ सू. ६ सातावेदनीयादि कर्मानुभावनिरूपणम् १९५ तराए, जं वेदेइ पोग्गलं जाव वीससा वा पोग्गलाणं परिणामं तेसि वा उदएणं अंतराइयं कम्मं वेदेइ, एस णं गोयमा ! अंतराइए कम्मे, एस णं गोयमा ! जाव पंचविहे अणुभावे पण्णत्ते । इति पण्णवणाए तेवोसइतमरस पयस्स पढमो उद्देसो” ॥२३-१॥ सू.६॥ छाया-सातावेदनीयस्य खलु भदन्त ! कर्मणो जीवेन बद्धस्य यावत् पुद्गलपरिणामं प्राप्य कतिविधोऽनुभावः प्रज्ञप्तः ? गौतम ! सातावेदनीयस्य खलु कर्मणोजीवेन बद्धस्य यावद् अष्टविधोऽनुभावः प्रज्ञप्तः, तद्यथा मनोज्ञाः शब्दाः १, मनोज्ञानि रूपाणि २, मनोज्ञा गन्धाः ३, मनोज्ञा रसाः ४, मनोज्ञाः स्पर्शाः ५, मनःसुखता ६, वच:मुखता ७, कायसुखता ८, यं वेदयते पुद्गलं वा, पुद्गलान् या पुद्गलपरिणामं वा बिखसया वा पुद्गलानां परिणाम, तेषां वा उदयेन सातावेनीयं कर्म वेदयते, एतत् सातावेदनीयकर्म का अनुभाव शब्दार्थ :- (सायावेणिज्जयस्स णं भंते ! कम्मस्स जीवे णं बद्धस्स) जीव के द्वारा बांधे हुए सातावेदनीय कर्म का (जाव) यावत् (पोग्गलपरिणामं पप्प) पुदूगल परिणाम को प्राप्त करके (कइविहे) कितने प्रकार का (अणुभावे) अनुभाव (पण्णत्ते) कहा है ? (गोयमा ! सायावेयणिज्जस्स णं कम्मस्स जीवे णं बद्धस्स) हे गौतम ! जीव द्वारा बद्ध साता वेदनीय कर्म का (जाव) यावत् (अट्ठविहे अणुभावे पण्णत्ते) आठ प्रकार का अनुभाव कहा है। (तं जहा) वह इस प्रकार (मणुण्णा सदा) मनोज्ञ शब्द (मणुण्णा रूवा) मनोज्ञ रूप (मणुण्णा गंधा) मनोज्ञ गंध (मणुण्णा रसा) मनोज्ञ रस (मणुण्णा फासा) मनोज्ञ स्पर्श (मणोसुहया) मनकासुख (बयसुहया) वचन का सुख (कायसुहया) काय का मुख (जं) जिसको (वेदेइ) वेदता है (पोग्गलं वा) पुद्गल को (पोग्गले वा) या पुद्गलों को (पोग्गलपरिणामं चा) या पुदगलों के परिणमन को (वीससा वा पोग्गलाणं परिणाम) સાતા વેદનીય કર્મનો અનુભવ शहाथ :-(सायावेयणिज्जयस्स णं भंते ! कम्मस्स जीवेणं बध्धस्स) पा२ माघेसा सातावहनीय भना (जाव) यापत् (पोग्गलपरिणामं पप्प) पुती परिणामने प्रारत श२ (कइविहे) सारना (अणुभावे) मनुभाव (पण्णत्ते) ४था छ? (गोयमा! सायावेयणिज्जस्स णं कम्मरस जीवणं बद्धरस) गौतम ! द्वारा पद्धसाता पेहनीय भन। (जाव) यावत् (अविहे अणुभावे पण्ण) मा प्रा२ना अनुलाप या छे. (तं जहा) ते मा प्रकारे (मणुण्णा सद्दा) भनाइ२ शह (मणुण्णा रूवा) भनाइ२ ३५ (मणुण्णा गंधा) भनी २५ (मणुण्णा रसा) भनाड२ २स (मणुण्णा फासा) भनोस्पश (मणोसुहया) भनसुम (वयसुहया) क्यननुसुम (कायसुहया) यनुसुम. (ज) मेने (वेदेइ) हे छ (पोग्गलं वा) पुगसने (पोग्गले वा) अगर पुगसाने (पोग्गलपरिणामं वा) मगर पुगताना परिणभनन (वीससा वा पोग्गलाणं परिणाम) स्पलापथी पुगसाना શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૫
SR No.006350
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 05 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1980
Total Pages1173
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size76 MB
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