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________________ प्रबोधिनी टीका पद २२ सू. १ क्रियास्वरूपनिरूपणम् ३ गौतम ! त्रिविधा प्रज्ञप्ता, तद्यथा येन आत्मनो वा परस्य वा तदुभयस्य वा असातां वेदना मुदीरयति सा एषा पारितापनिकी क्रिया प्राणातिपातक्रिया खलु भदन्त ! कति विधा प्रज्ञता ! गौतम ! त्रिविधा प्रज्ञप्ता, तद्यथा - येन आत्मानं वा परं वा तदुभयं वा जीवितात् व्यपरोपयति सा एषा प्राणातिपातक्रिया ॥ सू. १ ।। टीका - एकविंशतितमे पदे गतिपरिणाम विशेषरूपं शरीर भेद संस्थानावगाहनादिकं प्ररूपितम्, अथ द्वाविंशतितमे पदे नारकादिगतिपरिणामेन परिणतानां जीवानां प्राणातिअथवा दोनों के लिए (असुभं ) अशुभ (मण) मन (संपधारेइ) धारण करता है ( से तं पाओसिया किरिया ) वह प्राद्वेषिकी क्रिया है ( पारियावणिया णं भंते ! किरिया कइ विहा पण्णत्ता ? ) हे भगवन् ! पारितापनिकी क्रिया कितने प्रकार की कही है ? (गोयमा ! तिविहा पण्णत्ता) हे गौतम! तीन प्रकार की कही ( तं जहा ) वह इस प्रकार (जे णं अप्पणो वा, परस्स वा, तदुभयस वा) जिसके द्वारा अपने को अथवा दूसरे को अथवा दोनों को (अस्सायं वेयणं उदीरेइ) आसातावेदन कर्म की उदीरणा करता है ( सेत्तं पारियावणिया किरिया ) वह पारितानिकी क्रिया है (पाणाइयवायकिरिया णं भंते ! कइविहा पण्णत्ता ? ) हे भगवन् ! प्राणातिपातिकी क्रिया कितने प्रकार की कही है? ( गोयमा तिविहा पण्णत्ता) हे गौतम तीन प्रकारकी कही है ( तं जहा ) वह इस प्रकार (जे णं अप्पा वा परं वा तदुभयं वा ) जिसके द्वारा अपने को, दूसरे को, अथवा दोनों hi ( जीवियाओ वेइ) जीवन से व्युपरत - रहित करता है ( से तं पाणाइवायकिरिया ) वह प्राणातिपात क्रिया है। टीकार्थ :- इक्कीसवें पदमें गति परिणाम विशेष रूप शरीर के भेदों का, संस्थानों का तथा अवगाहना आदि का निरूपण किया गया है अब बाईसवें पद में (असुभ अशुभ (मणं) भन (संपधारेइ) धारा ४२ छे से तं पाओसिया किरिया) ते प्रद्वेषिठी डिया छे ( पारियावणिया णं भंते! किरिया कइविहा पण्णत्ता ?) हे भगवन् ! पारितापनिड्डीडिया डेंटला प्राश्नी उही छे ? (गोयमा ! तिविहा पण्णत्ता) हे गौतम! त्र अमरनी उड्डी छे (तं जहा) ते मा प्रारे (जे अप्पणो वा, परस्स वा तदुभयस्स वा) भेना द्वारा पोताना अथवा गोलना अथवा अन्नेना (अस्सायं वेयण उदीरेइ) असाता वेहनानी उहीरा उरे छे (सेत्तं पारियावणिया किरिया ) તે પારિતાપનિકી ક્રિયા છે (पाणा इवायकिरिया भते ! कइ विहा पण्णत्ता) भगवन् प्राणातिपातिडी डिया डेटा प्रहारनी अडी छे ? (गोयमा ! तिविहा पण्णत्ता) हे गौतम ! प्रभारनी उड्डी छे (तं जहा ते मारे (जे अप्पा वा परवा तदुभयं वा ना द्वारा पोताने अथवा मीलने अथवा जन्नेना (जीवियाओ ववरोवेइ) पनथी व्युपरत -रहित रे छे (से त पाणाइवार्याकरिया) ते प्रशातियात डिया छे, ટીકા: એકવીસમાં પદ્મમાં ગતિ પિરણામ વિશેષરૂપ શરીરના ભેદોનું સંસ્થાના તું તથા અવગાહના આદિત્તુ નીરૂપણ કર્યું છે. શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૫
SR No.006350
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 05 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1980
Total Pages1173
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size76 MB
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