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________________ प्रमेयबोधिनी टीका पद २२ सू. ८ प्राणातिपातविरमणनिरूपणम् १२३ विधबन्धकश्च४, अथवा सप्तविधबन्धकाश्च एकविधबन्धकाच षडूविधबन्धकाश्च५. अथवा सप्तविधबन्धकाश्च एकविधबन्धाकाश्च अबन्धकश्च ६, अथवा सप्तविधवन्धकाश्च एकविध बन्धकाश्च अबन्धकाश्च ७, अथवा सप्तविधबन्धकाश्च एकविधवन्धकाश्च अष्टविधबन्ध. कश्च ! पइविधबन्धकाश्च अथवा सप्तविधबन्धकाश्च एकविधबन्धकाश्च अष्टविधबन्धकश्च के बंधक, बहुत एक के बन्धक और बहुत आठों के बंधक होते हैं ॥३॥ (अहवा सत्तविहबंधगा य एगविहबंधगा य छव्विहबंधगे य) अथवा बहुत जीव सात प्रकृतियों को बांधने वाले, बहुत एक प्रकृतिको बांधनेवाले और एक छह प्रकृतियों को बांधने वाला होता है ।। ४ ।। (अहया सत्तविहबंध गा य एगविहबंधगा य छविहबंधगा य ) अथवा बहुत सात प्रकृतियों को बांधने वाले, बहुत एक बांधने वाले और बहुत छह बांधनेवाले ॥५॥ ( अह्वा सत्तविहबंधगा य एगविहबंधगा य, अंबंधए य) अथवा बहुत सात प्रकृतियों बांधने वाले बहुत एक प्रकृतिको बांधने वाले और एक अबन्धक ।। ६॥ (अहवा सत्तविह बंधगा य, एगविहबंधगा य, अबधगा य) अथवा बहुत सात प्रकृतियां बांधने वाले,बहुत एक प्रकृति बांधने वाले और बहुत अबधक होते है।॥७॥ (अहया सत्तविह बंधगा य, एगविहबंधगा य, अट्टविहबंधगे य, छविहबंधगेय) अथवा अनेक सात प्रकृतियां बांधने वाले, अनेक एक बांधने वाले, एक आठ बांधने वाला, और एक छह बांधने वाला ॥ १॥ (अहवा सत्तविहबंधगा य, अट्ठविहबंधए य, छविहबंधगा य ) अथवा अनेक सात के बंधक, अनेक एक के बन्धक, एक आठका बंधक और अनेक छह के बंधक होते है ॥२॥ (अहया सत्तविहविहबंधगा य एगविहवं धगा य छन्विहंबंधगे य) अथ | सात प्रतियो બાંધનારા, ઘણા એક પ્રકૃતિ બાંધનાર અને એક જ પ્રકૃતિ બાધનારા હોય છે. ૪ (अहवा सत्तविहबंधगा य गविहबंधगा य छम्विहब धगा य) अथवा घरा सात प्रतिया બાંધનારા, ઘણા એક બાંધવાવાળા અને ઘણાં છ બાંધનારે પા (अहवा सत्तविहब धगा य एगविहवंधगां य अवंधए य ) अथवा ए सात प्रतियो मांधा નારા ઘણું એક પ્રકૃતિ બાધનારા અને એક અબન્ધક છે ? ___ (अहवा सत्तविहबधगा य,एगविहबंधगा य, अवंधगा य) मा ५९ सात प्रतियो બાંધનારા, ઘણા એક પ્રકૃતિ બાંધનારા, અને ઘણા અબંધક હોય છે. એ ૭ છે ( अहवा सत्तविहब धगा य, एगविहवं धगा य अविहबंधगे य, विहवन्यगे य) अथवा भने સાત પ્રકૃતિયા બાંધવાવાળા, અનેક એક પ્રકૃતિ બાંધનારા, એક આઠ પ્રકૃતિના બાંધનાર અને એક જ પ્રકૃતિ બાંધનાશા (अहवा सत्तविहब धगा य, एगविहबंधगा य,अविहबंधए य,म्विहधगा य) अया अने સાત પ્રકૃતિના બંધક અનેક એક પ્રકૃતિના બધેક એક આઠ પ્રકૃતિને બંધક અને અનેક છ શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૫
SR No.006350
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 05 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1980
Total Pages1173
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size76 MB
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