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________________ प्रमेयबोधिनी टीका पद ३६ सू० १६ केवलिसमुद्घातगतविशेषनिरूपणम् ११३७ मृषावचोयोगं युनक्ति ? गौतम ! सत्यवचोयोगं युनक्ति नो मृषायचोयोगं युनक्ति नो सत्य मृषावचोयोगं युनक्ति असल्यामृषायचोयोगमपि युनक्ति, काययोगं युञ्जानः आगच्छेद् वा, गच्छेद बा, तिष्ठेद वा, निषीदेदवा, त्वम्वतयेत वा, उल्लङ्घयेद् पा, परिधयेद्वा, प्रतिहारिकं पीठफलकशय्यासंस्तारकं प्रत्यर्पयेत् ।। सू० १६ ॥ मृषामनोयोग का व्यापार करते हैं ? (गोयमा ! सच्चमणजोगं झुंजइ) हे गौतम ! सत्यमनोयोग का प्रयोग करते हैं (नो मोसमणजोगं जुजइ) मृषामनोयोग का व्यापार नहीं करते (नो सच्चामोसमणजोगं जुजइ) सत्यामृषामनोयोग का च्यापार नहीं करते (असच्चामोसमणजोगं जुजइ) अमत्यामृषामनोयोग का व्यापार करते हैं। (चहजोगं जुजमाणे) वचनयोग का प्रयोग करते हुए (किं सच्चवइजोगं जुंजइ ?) क्या सत्यवचनयोग का प्रयोग करते हैं ? (मोसवइजोग जुंजइ ?) मृषा वचनयोग का प्रयोग करते हैं ? (सच्चामोसवइ जोगं जुजइ असच्चामोसवइजोगं जुजइ) सत्यमृषा अथवा असत्य मृषा वचनयोग का प्रयोग करते हैं ? (गोयमा ! सच्चवइजोगं जुजइ) हे गौतम! सत्यवचनयोग का प्रयोग करते हैं (नो मोस बहजोगं जुजइ) मृषावचनयोग का व्यापार नहीं करते (नो सच्चामोसबइजोगं जुजइ) सत्यमृषा वचनयोग का व्यापार नहीं करते (असच्चामोसवहजोगं वि जुजइ) असत्यामृषावचनयोग का भी प्रयोग करते हैं। (कायजोगं झुंजमाणे) काययोग का प्रयोग करते हुए (आगच्छेज वा) आते हैं (गच्छेज वा) जाते हैं (चिटेज वा) ठहरते हैं (निसीएज वा) बैठते हैं (तुयटेज वा) लेटते हैं (उल्लंघेज वा) लांघते हैं (पलंघेज वा) विशेष रूप से लांघते हैं (नो मोसमणजोग जुजइ) भृषा भनागना व्यापा२ नयी ४२ता (नो सच्चामोसमणजोग जुजइ) सत्याभृ५५ मनायागना प्रयास ५५) नथी ४२ता (असच्चामोसमणजोग जुंजइ) અસત્યામૃષા મનોગના વ્યાપાર કરે છે. (वइजोग जुजमाणे) क्यनयोगना प्रयास ४२॥ छतi (किं सच्चवइजोग जुजइ ?) शु सत्य यनयोगना प्रयास ४२ छ ? (मोसवइजोगं जुजइ) भृषाक्यनयानी प्रयोग ४२ छ, (सच्चामोसवइजोग जुंजइ) शु सत्यभूषा क्यनप्रयो॥ ४२ छ ? (अहवा) अथवा (असच्चामोस वइजोग मुंजइ) असत्याभूषा क्यनना याने प्रय४२ छ । (गोयमा ! सच्चवइजोग जुजइ) 8 गौतम! सत्यपयनयोगना योग ४२ छे. (नो मोसवहजोग जुजइ) भृषा वयनयोगत व्या५:२ नथी ४२०i (नो सच्चामोसवइजोग जुंजइ) सत्य-भूषा क्यनयोग। ०५१५२ नयी ४२ता (असच्चामोसेवइजोगंपि जुजइ) અસત્ય-મૃષા વચનગને પ્રવેશ કરે છે. (कायजोग जुजमाणे) योगनी प्रयोग ४२di (आगच्छेज वा) मावे छ (गच्छेज्ज वा) onय छ (चिडेज्ज वा) २४य छे (निसीएज्ज वा) मेसेछ (तुयद्वेज वा) सूबे छ (उल्लंघेज શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૫
SR No.006350
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 05 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1980
Total Pages1173
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size76 MB
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