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________________ १९२० प्रज्ञापनासूत्र छाया-कस्मात खलु भदन्त ! केवली समुदयातं गच्छति ? गौतम ! केवलिनश्चत्वारः कर्माशा अक्षीणाः अवेदिता अनिर्जीगा भवन्ति, तद्यथा-वेदनीयम, आयुष्यमन् , नामगोत्रम्, सर्वबहुप्रदेशं तद् वेदनीयं कर्म भवति सर्वस्तोकम् आयुष्यं कर्म भवति, विषमं समं करोति बन्धनैः स्थितिभिश्च, विषमस्य समीकरणाय बन्धनैः स्थितिभिश्च एवं खलु केवली समवहन्ति, एवं खलु सद्घातं गच्छति, सर्वेऽपि खलु भदन्त ! केवलिन: समबध्नन्ति केवलिसमुद्घात का प्रयोजन शब्दार्थ-(कम्हा गं भंते ! केवलीसमुग्घायं गच्छइ १) हे भगवन् ! किस प्रयोजन से केवलीसमुद्घात करते हैं ? गोयमा ! केवलिस चत्तारि कम्मंसा अबखीणा) हे गौतम ! केवली के चार कर्म क्षीण नहीं हुए (अवेदिया) वेदन नहीं किए गए (अणिजिण्णा) निर्जरा को प्राप्त नहीं हुए (भवंति) हैं (तं जहावेयणिज्जे, आउए, नामे, गोए) वे इस प्रकार-वेदनीय, आयु, नाम, गोत्र (सन्ध बहुप्पएसे से वेयणिज्जे कम्मे हवइ) उनका वेदनीय कर्म सब से अधिक प्रदेशों वाला होता है (सव्वत्थोवे आउए कम्मे हवाइ) सब से कम उनका आयु कम होता है (विसमं समं करेइ) वे विषम को सम करते हैं (बंधणेहिं ठिईहिय) बन्धनों से और स्थिति से (विसमसमीकरणयाए बंधणेहि ठिईहि य) बन्धन और स्थिति से विषय को सम करने के लिए (एवं खलु केवली समोहणइ) इस प्रकार निश्चय से केवलीसमुदघात करते हैं (एवं खलु समुग्घायं गच्छद) इस प्रकार समुद्घात को प्राप्त होते हैं। (सव्वे विणं भंते ! केवली समोहणंति) हे भगवन् ! क्या सभी केवली કેવલિસમુદુઘાતનું પ્રજન शहाय :-(कम्हा ण भंते ! केयलिसमुग्धाय गच्छइ ?) 3 मापन् । ४या प्रयास नयी पतिसमुद्धात ४२ छे ? (गोयमा ! केवलिस्स चत्तारि कम्मंसा अक्खीणा) गौतम ! उपसीना यार ४भक्षी नथी डोतi (अवेदिया) वहन नही येसi (अणिज्जिण्णा) निशने प्राप्त नही येai (भवंति) हाय छे. (तं जहा-वेयणिज्जे, आउए, नामे, गोए) ते मा आरे-वहनीय, यु नाम, मात्र (सव्व बहुपएसे से वेयणिज्जे कम्मे हवइ) तमना वहनीय भ धाथी अधि४ प्रदेशवाणा खाय छे (सव्वत्थोवे आउए कम्मे हवइ) अधाथी माछ। तमना सायुम हाय 2. (विसम सम करेइ) तमेो विषभने सम ४२ छ (बंधणेहि लिईहिं य) भन्नाथी भने स्थितिथी (विसमसमीकरणयाए बंधणेहि ठिईहि य) मन्धन मन स्थितिथी विभने सम ४२वाने माट (एवं खलु केवली समोहणइ) से प्रारे निश्चयथी पक्षासमुद्धात ४२ छ (एवं खलु समुग्धाय गच्छइ) से अरे समुद्धातने प्राप्त थाय छे. (सव्वे वि ण भंते ! केवली समोहणंति ?) 3 लावन् ! शुमा ४१क्षी सभपडत શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૫
SR No.006350
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 05 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1980
Total Pages1173
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size76 MB
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