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________________ प्रमेयबोधिनी टीका पद ३६ सू० १२ वेदनासमुद्घातगतजीयस्वरूपनिरूपणम् १०६३ केपइकालस्त अफुण्णे केवइकालस्स फुडे ? गोयमा ! एगसमइएण वा दुसमइएण वा तिसमइएण या चउसमइएण वा विग्गहेणं एवइकालस्स अफुगणे, एवइकालस्स फुडे, सेसं तं चेव जाव पंचकिरिया वि, एवं नेरइए वि, णवरं आयामेणं जहण्णेणं साइरेगं जोयणसहस्सं उकोसेणं असं खेजाइं जोयणाई, एगदिसिं एवइए खेत्ते अफुणे, एवइए खित्ते फुडे, विग्गहेणं एगसमइएण वा, दुसमइएण वा, ति समइएण वा, णवरं चउसमइएण वा न भन्नइ, सेसं तं चेव जाव पंचकिरिया वि, असुरकुमारस्त जहा जीवपदे, णवरं विग्गहो तिसमइओ जहा नेरइयस्स, सेसं तं चेव, जहा असुरकुमारे, एवं जाव वेमाणिए, णवरं एगिदिए जहा जीवे निरवसेसं ।। सू० १२ ॥ ___ छाया-जीयः खलु भदन्त ! वेदनासमुद्घातेन समवहतः समयहत्य यान् पुद्गलान निक्षिपति, तैः खलु भदन्त ! पुद्गलैः फियत् क्षेत्रम् आपूर्णम् कियत् क्षेत्रं स्पृष्टम् ? मौतम । शरीरप्रमाणमात्रं विष्कम्भबाहल्येन नियमात् षट् दिक, इयत् क्षेत्रम् आपूर्णम् इयत् क्षेत्रं स्पृष्टम्, तत् खलु भदन्त ! क्षेत्रं कियत्कालस्य भापूर्णम्, कियत् कालस्थ स्पृष्टम् ? गौतम ! एकसम शब्दार्थ-(जीवे णं भंते ! वेयणाममुग्घाएणं समोहए) हे भगवन् ! जीव वेदनासमुद्घात से समयहत हुआ (समोहणित्ता) समवहत होकर (जे पोग्गले निच्छुभइ) जिन पुद्गलों को निकालना है (तेहिं णं भंते ! पोग्गलेहिं) हे भग वन् ! उन पुद्गलों से (केवइए खेत्ते) कितना क्षेत्र (अफुण्णे) परिपूर्ण (केवइए खेत्ते फुडे ?) कितना क्षेत्रस्पृष्ट होता है ? (गोयमा ! (सरीरप्पमाणमेत) हे गौतम! शरीरप्रमाण मात्र (विक्खं भवाहल्लेणं) विष्कंभ और वाहल्य से (नियमा) नियम से (छदिसिं) छहों दिशाओं में (एचइए खेत्ते) इतना क्षेत्र (अफुण्णे) पूरित हुआ (एचइए खेत्ते फुडे) इतमा क्षेत्र स्पृष्ट हुआ (से णं भंते खेत्ते केयह कालस्म अप्फुण्णे ?) हे भगवन ! वह क्षेत्र कितने काल में पूरित शहाथ :-(जीवेण भंते ! वेयणासमुग्धारण समोहए) पन् ! ७५ पेहनासमुद. धातथा सभपडत ने (समोहणित्ता) सभपत धने (जे पोग्गले निच्छुभइ) २ पुसाने । छे. (तेहिं ण भंते ! पोग्गलेहि) ३ पन् ! साथी (केवइए खेत्ते) तेना है। क्षेत्र (अप्फुणे) परि केवइए खेत्ते फुड़े ?) Bा क्षेत्र २Yष्ट थाय छ ? (गोयमा ! सरीरप्पमाणमेत्ते) ३ गौतम ! शरीर प्रमाण भात्र (विक्खंभबाहल्लण) (१०४ मने पाडल्यथी (नियमा) नियमथी (छद्दीसिं) ७ दिशामामा (एचइए खेत्ते) मारा क्षेत्र (अफुण्णे) पुरीत थया (एवइए खेत्ते फुडे) मेटा क्षेत्र स्पृष्ट थय। छ, શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૫
SR No.006350
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 05 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1980
Total Pages1173
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size76 MB
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