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________________ प्रमेयबोधिनी टीका पद २१ सू० ९ तैजसशरीरावगाहनानिरूपणम् ७७९ अधोलोकग्रामाः, तिर्यगू यावत् मनुष्धक्षेत्रे ऊर्ध्वं यावद् अच्युतः कल्पः, एवं यावद् आरणदेवस्य अच्युत देवस्य एवश्चैव, नवरम् ऊर्ध्वं यावत्स्वकानि विमानानि, ग्रैवेयकदेवस्य खलु भदन्त ! मारणान्तिकसमुद्घातेन समवहतस्य तैजसशरीरस्य किं महालया शरीरावगाहना प्रज्ञप्ता ? गौतम ! शरीरप्रमाणमात्रा विष्कम्भबाहल्येन, आयामेन जघन्येन विद्याधरश्रेण्यः, उत्कृष्टेन यावद् अधोलौकिकग्रामाः, तिर्यग् यावत् मनुष्यक्षेत्रे, ऊर्ध्वं यावत् स्वकानि विमानानि, इभाग) जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग (उक्कोसेणं जाव अधो लोइयगामा) उत्कृष्ट यावत् अधोलौकिक ग्राम ( तिरियं जाव मणूस खेत्ते ) तिछें यावत् मनुष्य क्षेत्र (उडूं जाव अच्चुओ कप्पो) उपर अच्युत कल्प तक ( एवं जाव आरणदेवस्स) इसी प्रकार आरण देवकी (अच्चुअ देवस्स एवं चेव) अच्युत देव की इसी प्रकार (नवरं उड जाव सयाई विमाणाई) विशेषता यह कि उपर अपने विमानों तक (गेविज्जगदेवस्स णं भंते! मारणंतियसमुग्धाएणं समोहयस्स तेयासरीरस्स) हे भगवन् ! मारणान्तिक समुद्घात से समवहत ग्रैवेयक देव के तैजसशरीर की ( के महालिया सरीरोगाहणा पण्णत्ता ?) कितनी बडी शरीरावगहना कही है (गोयमा ! सरीरप्यमाणमेत्ता) हे गौतम ! शरीरप्रमाण मात्र (विक्खं भवाहल्लेणं) विष्कंभ और बाहल्य से (आयामेणं) लम्बाई से (जहणणेणं विज्जा हर सेढीओ) जघन्य विद्याधर श्रेणियों तक (उक्कोसेणं जाव अहो लोइयगामा) उत्कृष्ट यावत् अधोलौकिक ग्राम ( तिरियं जाव मणुसखेत्ते ) तिछे यावत् मनुष्य क्षेत्र (उड्डुं जाव सयाई विमाणाई) उपर यावत् अपने विमानों तक (अणुत्तरोववाइयस्स वि एवं चैव) अनुत्तरौपपातिक देव की भी इसी प्रकार असभ्यातमाभाग (उक्कोसेणं जाव अघोलाइयगामा) उत्कृष्ट यावत् अघोसो आम (तिरिय जाव मणूस खेत्ते ) तिर्छा यावत् भनुष्य क्षेत्र (उड़ढ जाव अच्चुओ कप्पो) १५२ अभ्युतच सुधी ( एवं जाव आरणदेवस्स) मे अहारे भारदेवनी (अच्चुअदेवस्स एव चेव) अभ्युतहेवने खेल अारे (णवरं उडूंढ जाव सयाई विमाणाइं) विशेषता मे छे अपर પોતાના વિમાને સુધી. (गेविज्जग देवरसणं भंते ! मारणंतियसमुग्धा एणं समोहयस्स तेयासरीरस्स) डे भगवन ! भारशान्तिः समुद्रघातथी समदडत चैवेय हेवना ते सशरीरनी (के महालिया सरीरोगाहणा पण्णत्ता ? ) डेटसी मोटी शरीरावगाहना उड़ी है ? (गोमा ! सरीरमाणमेत्ता) हे गौतम! शरीर प्रभाणु भात्र ( विक्खंभबाहल्लेणं) विष्णुंल मने जाडुदयथी ( आयामेणं) समाभां ( जहणणेणं विज्जाहरसेढीओ) ४धन्य विद्याधर श्रेणिया सुधी (उक्कोसेगं जाव अहोलोइयगामा) उत्कृष्ट यावत् अधोसोहि ग्राम ( तिरियं जाव मणूसखेत्ते ) तिर्छा यावत् भनुष्य क्षेत्र ( उडूढं जाव सयाई विमाणाई) अपर यावत् घोताना विमाना सुधी (अणुत्तरोववाइयरस वि एवं चेत्र) अनुत्तरोपयाति देवानी यशु से प्रारे छे श्री प्रज्ञापना सूत्र : ४
SR No.006349
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1978
Total Pages841
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size58 MB
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