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प्रमेयबोधिनी टीका पद २१ सू० ९ तैजसशरीरावगाहना निरूपणम्
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प्रज्ञप्ता ? गौतम ! एवञ्चैत्र, यावत् पृथिवीकायिकस्य अकायिकस्य तैजस्कायिकस्य वायुकायिकस्य वनस्पतिकायिकस्य, द्वीन्द्रियस्य खलु भदन्त ! मारणान्तिकसमुद्घातेन समवहतस्य तैजसशरीरस्य किं महालया शरीरावगाहना प्रज्ञप्ता ? गौतम ! शरीरप्रमाणमात्रा विकम् प्रवाहल्येन, आयामेन जघन्येन अङ्गुलस्यासंख्येयभागम्, उत्कृष्टेन तिर्यग्लोकात् लोकान्तम् एवं यावच्चतुरिन्द्रियस्य, नैरयिकस्य खलु भदन्त ! मारणान्तिकसमुद्घातेन (गोयमा ! एवं चेव) हे गौतम! इसी प्रकार ( जाव) यावत् (पुढचिकाइयस्स) पृथ्वीकायिक की ( आउकाइयस्स) अष्कायिक की (तेउकाइयस्स) तेजस्कायिक की (वाइस) वायुकायिक की (वण फइकाइयस्स) वनस्पतिकायिक की
( बेइंदियस्स णं भंते! मारणंतियसमुग्धारणं समोहयस्स तेयासरीरस्स) हे भगवन् ! मारणान्तिक समुद्घात से समवहत द्वीन्द्रिय के तै जसशरीर की (के महालिया सरीरोगाहणा पण्णत्ता ?) कितनी बडी शरीरावगाहना कही है ? (गोयमा ! सरप्यमाणमेत्ता) हे गौतम ! शरीर प्रमाणमात्र (विवखभवाहल्लेणं) विस्तार और मोटाई से (आयामेण लंबाई से (जहणेणं) जघन्य (अंगुलस्स असंखेज्जइभागं) अंगुल के असंख्यातवें भाग (उक्को सेणं) उत्कृष्ट (तिरियलोगाओ लोगंते) तिछे लोक से लोकान्त तक ( एवं जाव चउरिंदियस्स) इसी प्रकार यावत् चौहन्द्रिय की (नेरइयस्स णं भंते! मारणंतियसमुग्धाएणं समोहयस्स तेयासरीरस्स) हे भगवन् ! मारणान्तिक समुद्घात से समवहत तैजसशरीर की (के महालिया पण्णत्ता १) डेटवी भोटरी शरीरावगाहुना उही छे ! ( गोयमा ! एवं चेव) हे गौतम! से प्रारे (जाव) यावत् ( पुढविकाइयस्स) पृथ्वी प्रायिनी ( आउकाइयस्स) अच्छाविनी (तेउकाइयस्स) तेरायिनी (वाउकाइयस्स) वायुमायिनी ( वणस्सइक इस्स) वनस्पतिठायिनी .
( बेइदियरस णं भंते! मारणंतियसमुग्धाए णं समोहयस्स तेयासरीरस्स) डे लगवन् ! भारशान्तिः समुद्घातथी सभवहुत मेहेन्द्रियना ते सशरीरनी (के महालिया सरीरोगाहणा पण्णत्ता ?) डेंटली मोटी शरीरावगाना ही छे ? ( गोयमा ! एवं चेव) गौतम येन प्रकारे (जाव) यावत् ( पुढत्रिकाइयप्स) पृथ्वीभयिनी ( आउकाइयस्स) मष्ठायिनी (तेउकाइयम्स) तेस्मायिनी (वाउकाइयस्स) वायुठायिनी ( वणस्स इयरस) वनस्पति ! यिनी
(बेइं दियरस णं भंते! मारणंतियसमुग्धाएणं समोहयस्स तेयासरीरस्स) डे भगवन् ! भारशान्तिः समुद्घातथी समवहुत द्वीन्द्रियना ते सशरीरनी (के महालिया सरीरोगाहणा पण्णत्ता ?) डेंटली मोटी शरीरावगाडुना ही छे ? (गोयमा ! सरीप्यमाणमेत्ता) हे गौतम ! शरीर प्रभासु भात्र (विक्खभवा हल्लेणं) विस्तार भने भोटाथी (आयामेणं) संमाथी ( जहणेणं) ४धन्य (अंगुलम्स अस खेज्जइभागं ) अंगुझते। अभ्यात भोलाग ( उक्कोसेण) उत्कृष्ट ( तिरियलोगाओ लोगते) तिरछना बशन्त सुधी (एवं जान चउरिंदियस्स) मे अठारे યાવત્ ચતુરિન્દ્રિયની
श्री प्रज्ञापना सूत्र : ४