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प्रमेयबोधिनी टीका पद २१ २० ६ वैक्रियशरीरसंस्थाननिरूपणम् प्राणतारणाच्युतेषु तिस्रो रत्न यः, ग्रैवेयककल्पातीतवैमानिकदेवपञ्चन्द्रिय क्रियशरीराक्गा. हना कि महालया प्रज्ञप्ता ? गौतम ! प्रैवेयकदेवानाम् एका भवधारणीया शरीरावगाहना प्रज्ञप्ता, सा जघन्येन अगुलस्यासंख्येयभागम्, उत्कृष्टेन द्वे रत्नी, एवम्-अनुत्तरौपपातिकदेवानामपि, नवरम् एका रनिः ॥ सू० ६ ॥
टीका-पूर्व वैक्रियशरीराणां संस्थानानि प्ररूषितानि, सम्प्रति तेषामेव शरीराणामवगाहना परिमाणं प्ररूपयितुमाह-'वेउब्वियसरीरसस्स णं भंते ! के महालिया सरीरावगाहना पण्णता? हे भदन्त ! वैक्रियशरीरस्य खल किं महालया-कियद् विस्तारा शरीरावगहना प्रज्ञप्ता ? भगवानाह-गोयमा !' हे गौतम ! 'जहणेणं अंगुलस्स असंखेज इभागं, उक्कोसेणं साति(आणयपाणय आरणच्चुएसु तिणि रयणीओ) आनत, प्राणत, आरण और अच्युत कल्प में तीन हाथ (गेवेज्जगकप्पातीय वेमाणिय देव पंचिंदिय वेउब्विय सरीरए कि महालए पण्णत्ते?) अवेयक कल्पातीत वैमानिक देव पंचेन्द्रिय का वैक्रियशरीर कितना बडा कहा है ? (गोयमा! गेवेज्जगदेवाणं एगा भवधारणिज्जा सरीरोगाहणा पण्णत्ता) हे गौतम ! अवेयक देवों की एक भवधारणीय शरीराव. गाहना कही है (सा जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेज्जाभार्ग' वह जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग की (उकोसेणं दो रयणी) उत्कृष्ट दो हाथ की होती है (एवं अणुत्तरोववाइय देवाण वि) इसी प्रकार अनुत्तरोपपातिक देवों की भी (णवरं एका रयणी) विशेषता यह है कि वह एक हाथ की होती है ॥ ६॥
टीकार्थ--पहले वैक्रिय शरीर के संस्थान का प्ररूपण किया गया है, अब वैकि यशरीर को अवगाहना के प्रमाण की प्ररूपणा की जाती है___ गौतमस्वामी-हे भगवन् ! वैक्रियशरीर की अवगाहना कितनी बडी कही
सहसा२४६५मा या२ ७५ (आणय पाणय आरण अच्चुएसु तिण्णि रयणीओ) मानतप्रात, मा२९ मने अच्युत३६५मां पाथ (गेवेज्जगकप्पातीयवेमाणियदेवपंचिंदिय वेउब्वियसरीरए किं महालये पण्णत्ते ?) ३५४४८५॥तीत वैमानि देव पयन्द्रिय वैठियशरीर टयु मोटु छे ? (गोयमा ! गेवेज्जग देवाणं एगा भवधारणिज्जा सरीरागाहणा पण्णत्ता) हे गौतम ! अवेय४ देवानी ४ धारणीय श२।गाउना ही छे (जहण्णेणं अंगुलस्स अस खेज्जइभाग) ते धन्य गुरना मण्यातमालागनी (उक्कोसेणं दो रयणी) उत्कृष्ट मे डायनी डाय छ (एवं अणुत्तरोववाइय देवाण वि) मे ४२ अनुत्तरी५५ति हेवानी ५५ (णवरं एक्कारयणी) विशेषता के छ है २ सयनी हाय छे.
ટીકાથ–પહેલાં વિઝિયશરીરના સંસ્થાનનું પ્રરૂપણ કરાયું છે, હવે ક્રિયશરીરની અવગાહનાના પ્રમાણની પ્રરૂપણ કરાય છે—
શ્રી ગૌતમસ્વામી–હે ભગવન્! વૈક્રિયશરીરની અવગાહના કેટલી કહેલી છે?
श्री. प्रशान। सूत्र:४