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________________ ६६८ प्रज्ञापनासत्रे पश्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकवैक्रियशरीरम्, अपर्याप्तकजलचरसंख्येयवर्षायुष्कगर्भव्युत्क्रान्तिक पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकवैक्रियशरीरश्च ? गौतम ! पर्याप्तकजलचरसंख्येयवर्षायुष्कगर्भव्युत्क्रान्तिकपञ्चन्द्रियतिर्यग्योनिकवैक्रियशरीरम्, नो अपर्याप्तकसंख्येयवर्षायुष्कजल चरपञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकवैक्रियशरीरम्, यदि स्थलचरपञ्चेन्द्रिय यावत् शरीरं किं चतुष्पद यावत् शरीरं किं परिसर्प यावत् शरीरम् ? गौतम ! चतुष्पद यावत् संख्येयवर्षायुष्य परिसर्प यावत् शरीरम् एवं सर्वेषां ज्ञातव्यं यावत् खेचराणां पर्याप्तानाम्, नो अपर्याप्तानाम्, यदि मनुष्य पश्चेन्द्रियपंचिंदियतिरिक्ख जोणियवेउब्वियसरीरे) क्यापर्याप्तक जलचर संख्यात वर्ष की आयु वाले गर्भज पंचेन्द्रिय तियचों का वैक्रियशरीर होता है ? (अपज्जत्तग जलयर संखेजयासाउय गन्भवतिय पंचिंदियतिरिक्खजोणिय वेउध्वियसरीरे य?) या अपर्याप्तक जलचर संख्यातवर्ष की आय वाले गर्भज पंचेन्द्रिय तिर्यंचों का वैक्रियशरीर होता है ? (गोयमा ! पजत्तगजलयर संखेजवासाउयगम्भवतिय पंचिंदियतिरिक्खजोणिय वेउब्धियसरीरे) हे गौतम! पर्याप्तक जलचर संख्यात वर्ष की आयु वाले गर्भज पंचेन्द्रिय तिर्यचों को वैक्रियशरीर होता है (नो अपज्जत्तगसंखेजवासाउयजलयरगन्भवक्कंतियपंचिंदियतिरिक्खजोणियवेउब्धियसरीरे) अपर्याप्त संख्यात वर्ष की आयु वाले जलचर गर्भज पंचेन्द्रिय तिर्यंचों का वैक्रियशरीर नहीं होता (जई थलयरपंचिंदिय जाव सरीरे किं चउप्पय जाय सरीरे ? किं परिसप्प जाय सरीरे ?) यदि स्थलचर पंचेन्द्रिय यावत् शरीर? क्या चतुष्पद यावत् शरीर (गोयमा ! चउप्पय जाय संखेज्जवासाउयपरिसप्प जाय सरीरे) हे गौतम! चतु सरीरे) शु यात सय२ सध्यातनायुपा ५ पयन्द्रिय तिय योना यिशरी२ जाय छ (अपज्जत्तग जलयरस खेज्जवासाउयगभवक्कंतियपंचिंदियतिरिक्ख. जोणियवेउब्वियसरीरे य) अपर्याप्त ४२ सध्यातवर्ष नी मायुवाणा ४ पयन्द्रिय તિયાના ઐક્રિયશરીર હોય છે? ___ (गोयमा ! पज्जत्तगजलयरस खेज्जवासाउय गम्भवक्कतियपंचिंदियतिरिक्खजोणिय उब्वियसरीरे) : गौतम ! पर्याप्त सय२ सध्यात नी मायुवा येन्द्रिय तिय याना यिशरी२ डाय छ (नो अपज्जत्तगस खेज्जवासाउय जलयरगम्भवक्कंतिय पंचिंदियतिरिक्खजोणिय वेउब्बियसरीरे) अपात सातवषनी युवा७॥ १२ मल पायेन्द्रिय तिय याना वैठियशरी२ नथी हातi. (जइ थलयरपंचिंदिय जाव सरीरे किं चउप्पय जाव सरीरे ? किं परिसप्प जाव सरीरे ?) 4६ स्थलय२ ५येन्द्रिय यावत् शरीर ? शुयतु८५४ यावत् शरी२ (गोयमा ! च उप्पय जाव स खेज्जवासाउय परिसप्प जाव सरीरे) हे गौतम ! यतु०५४ यावत् सध्यात नी आयुयाणा परिसप यावत् शरी२ (एवं सव्वेसिं णेयव्वं) मे प्राधानुसमा युनाये (जाव) या५त् (खहयराणं पज्जत्ताणं) मेयर पर्याप्ताना ५-त (नो अपज्जत्ताणं) अपर्याप्तोना नही (जइ मणूस पंचिंदियवेउव्वियसरीरे किं श्री प्रशानसूत्र:४
SR No.006349
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1978
Total Pages841
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size58 MB
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