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प्रज्ञापनासूत्रे सहस्रम्, संमूच्छिमानां पर्याप्तानाश्च योजनपृथक्त्वम्, भुजपरिसणाम् औधिकगर्भव्यु स्क्रान्तिकानामपि उत्कृष्टेन गय॒तपृथक्त्वम्, संमृच्छिमानां धनुःपृथक्त्वम्, खेचराणाम औधिकगर्भव्युत्क्रान्तिकानां संमृच्छिमानां च त्रयाणामपि उत्कृष्टेन धनुःपृथक्त्वम्, इमाः संग्रहण्यो गाथा:-'योजनसहस्रं षड्गव्यूतानि ततश्च योजनसहनम् । गव्यूतपृथक्त्वं भुनके धनुः पृथक्त्वं च पक्षिषु ॥१॥ योजनसहस्रं गव्युतपृथक्त्वं ततश्च योजनपृथक्त्वम् । द्वयोस्तु धनुः पृथक्त्वं संमूच्छिमे भवति उच्चत्वम् ।।२।। मनुष्यौदारिकशरीरस्य खल भदन्त ! भी (ओहियगम्भवक्कतियपज्जत्तगाणं) औधिक गर्भज पर्याप्तों की (जोयण सहस्सं) हजार योजन की (समुच्छिमाणं पज्जत्ताण य) और संमूछिम पर्याप्तों की (जोयणपुहुत्तं) योजन पृथक्त्व की (भुयपरिसप्पाणं) भुजपरिसों की (ओहि. यगम्भवक्कंतियाणवि) औधिक गर्भजों की भी (उकोसेणं) उत्कृष्ट (गाउय. पुहुत्त) गव्यूति पृथक्त्व की (समुच्छिमाणं धणुपुहुत्तं) संमूर्छिमों की धनुष पृथक्त्व की (खहयराणं) खेचरों की (ओहियगम्भवक्कंतियाणं) औधिक गर्भजों की संमुच्छिमाणं य) और संमूछिमों की (तिण्ह वि) तीनों की (उकोसेणं धणुः पुहुत्तं) उत्कृष्ट धनुषपृथक्त्व की (इमाओ संगहणिगाहाओ) ये संग्रहणी गाथाएं हैं-(जोयणसहस्स) हजार योजन (छग्गाउयाई) छह गव्यूति (तत्तो य) फिर (जोयणसहस्सं) हजार योजन (गाउय पुहत्तं) गव्यूति पृथक्त्व (भुयए) भुजगों में (धणुहपुहुत्तं य पक्खीसु) धनुष पृथक्त्व पक्षियों में ॥१॥
(जोयणसहस्स) हजार योजन (गाउयपुहुत्तं) गव्यूति पृथक्त्य (तत्तो य जोयणपुहुत्तं) और फिर हजार योजन (दोहं) दो की (तु) तो (धणुपुहुत्त) धनुष भौषि म तिमी (जोयणसहस्स) M२ योनी (समुच्छिमाणं पज्जत्ताण य) मने स भूछि म ५५तीनी (जोयणपुहुत्तं) योन पृथपनी (भुयपरिसप्पाणं) सु०४परिसपोनी (ओहिय गम्भवक्कंतियाण वि) मौघिर जलनी पy (उक्कोसेणं) Scष्ट (गाउय पुहुत्तं) यूति पनी (समुच्छिमाणं धणु पुहुत्तं) स भूछि भानी धनुष प्रयत्पनी (खहयराणं) मेयरोनी (ओहिय गम्भवक्कंतियाणं) मौधि, मननी ५९ (उनकोसेणं) Gष्ट (गाउयपुहुत्तं) यूति ५४.५नी (संमुच्छिमाणं धणुपुहुत्तं) स भूछिमानी धनुष ५४.५नी (खड्यराणं) मेयरानी (ओहिय गम्भवतियाणं) मौघि मननी (समुच्छिमाणं य) भने सभूछिभानी (तिण्हवि) त्रणेनी (उक्कोसेणं धणुपुहुत्तं) पृष्टयी धनुष ५५४५नी (इमाओ संगहणी गाहाओ) मा सही गाथामा छ. (जोयणसहस्स) १२ योन (छग्गाउयाई) ७०यूति (तत्तो) ५छी (य) अने. (जोयणसहस्स) ०१२ योन (गाउयपुहुत्तं) व्यूति ५४.५ (भुयए) सुगामा (धणुहपुहुत्तं पक्खीसु) धनुष्य पृथ४.५ पक्षियोमा ॥१॥
(जोयणसहस्स) M२ यो (गाउयपुहुत्तं) यूति पृथत्य (तत्तो य जोयण पुहुत्तं) भने ५। ६२ योन (दोण्हं वि) मेनी (तु) तो धणुपुहुत्तं) धनुष्य पृ५४.५ (संमुच्छिमे)
श्री. प्रशान। सूत्र:४