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________________ प्रमेयबोधिनी टोका पद २१ सू० ३ औदारिकशरीरावगाहनानिरूपणम् ६३९ स्कायिकानामपि, वायुकायिकानामपि, वनस्पतिकायिकौदारिकशरीरस्य खलु भदन्त ! किं महालया शरीरावगाहना प्रज्ञप्ता ! गौतम ! जघन्येन अगुलस्यासंख्येयभागम, उत्कृष्टेन सातिरेकं योजनसहस्रम्, अपर्याप्तानां जघन्येन उत्कृष्टेन अङ्गुलस्यासंख्येयभागम्, पर्यासानां जघन्येन अङ्गुलस्यासंख्येयभागम्, उत्कृष्टेन सातिरेकं योजनसहस्रम्, बादराणां जघन्येन अङ्गुलस्यासंख्येयभागम् , उत्कृष्टेन योजनसहस्रं सातिरेकम्, पर्याप्तानामपि एवञ्चैव, की भी (एवं एसो नवओ भेदो) इस प्रकार यह नौ भेद (जहा पुढविकाइयाणं तहा आउकाइयाण वि) जैसे पृथ्वीकायिकों के वैसे अप्कायिकों के भी (तेउकाईयाण वि) तेजस्कायिको के भी (वाउक्काइयाण थि) वायुकायिकों के भी। (वणस्सइकाइयओरालियसरीरस्स णं भंते! के महालिया सरीरोगाहणा पण्णत्ता ?) हे भगवन् ! वनस्पतिकायिकों के औदारिक शरीर की अवगाहना कितनी बडी है ? ( गोयमा ! जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेजइभाग) हे गौतम ! जघन्य अंगुल का असंख्यातवां भाग (उक्को सेणं सातिरेगं जोयणसहस्सं) उत्कृष्ट कुछ अधिक हजार योजन की (अपजत्तगाणं जहण्णेणं उक्कोसेणं अंगुलस्स असं. खेजइभागं) अपर्याप्तकों की जघन्य-उत्कृष्ट अंगुल के असंख्यातवें भाग की (पजत्तगाणं जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेजइभागं) पर्याप्तकों की जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग (उक्कोसेणं सातिरेंगे जोयणसहस्म) उत्कृष्ट कुछ अधिक हजार योजन की (बादराणं जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेजइभाग) बादरों की जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग की (उकोसेणं जोअणसहस्सं सातिरेगं) उत्कृष्ट किंचित् अधिक हजार योजन की (पजत्ताण वि एवं चेय) पर्याप्तकों तोनी ५५५ (एवं एसो नवओ भेदो) से प्र४ारे २॥ न लेह (जहा पुढविकाइयाणं तहा आउक्काइयाण वि) २१ पृथ्वीयिटीना ते ४ अ५॥ ॥ ५४ (तेउक्काइयाण वि) ते२४ायसीना ५५ (वायुक्काइयाण वि) वायुयाना ५g. (वणस्सइकाइय ओरालियसरीरस्स णं भंते ! के महालिया सरीरोगाहणा पण्णत्ता ?) हे भगवन् ! वनस्पति विना मोहाशिरीरनी मानी मोटी छ ? (गोयमा! जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेज्जइ भाग) ॐ गौतम ! धन्य मखनमध्यातभा माग (उक्कोसेणं सातिरेग जोयणसहस्स) Se iss Aधि ०२ योगननी (अपज्जत्तगाणं जह्मणेणं उक्कोसेणं अंगुलस्स असंखेज्जइ भाग) २५५तिनी धन्य अष्ट असना मसभ्यातमा लागनी (पज्जत्तगाणं जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेज्जइ भाग) ५र्यास्तानी धन्य मसुखना मध्यातमा भाग (उक्कोसेणं सातिरेगं जोयणसहस्स) उत्कृष्ट ४iss मधि४ ॥२ याननी (बाराणं जहण्णेणं अंगुलस्स असं खेज्जइ भाग) माही न्य बना असण्यातमा लास (उक्कोसेणं जोयणसहस्सं सातिरेग) Save xis४ मधि SonR योगगनती (पज्जत्ताण वि एवं चेय) inी ५५ २ (अपज्जनाणं श्री. प्रशान। सूत्र:४
SR No.006349
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1978
Total Pages841
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size58 MB
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