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________________ દરજી प्रज्ञापनासूत्रे कशरीरविषये उक्तरीत्या समुच्चयपर्याप्तापर्याप्तानां संमूच्छिमपर्याप्तापर्याप्तानां गर्भव्युत्क्रान्तिकपर्याप्तापर्याप्तानाञ्च नवसूत्राणि बोध्यानि, एवम्- 'अपरिसप्पथलयराण वि' भुजपरिसर्पस्थलचराणामपि पञ्चेन्द्रिय तिर्यग्योनिका नामौदा रिकशरीर विषये पूर्वोक्तरीत्या नवसूत्राणि अवसेयानि, 'एवं खहयराण विणवत्ताणि' एवम् उक्तरीत्या खेचराणामपि पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिका नामौदारिकशरीरविषये नवसूत्राणि - समुच्चयखेचरतत्पर्याप्तापर्याप्तानां त्रयाणाम्, संमूच्छिम खेचरतत्पर्याप्तापर्याप्तानां त्रयाणम्, गर्भव्युत्क्रान्तिक खेचरतत्पर्याप्तापर्याप्तानां त्रयाणाम्, गर्भव्युत्क्रान्तिकखेचरतत्पर्याप्तापर्याप्तानां त्रयाणाश्च इत्येवं नवसूत्राणि अवसेयानि, तथाच समुच्चयानां तिर्यग्योनिकानां नव, जलचराणां नव स्थलचराणां पट्त्रिंशत्, खेचराणां नवेति सर्वसंख्यया त्रिषष्टिः सूत्राणि तिर्यग्योनिकानामौदारिकशरीरविप यानि, आलापकास्तु '२७३' त्रिसप्तत्यधिकशतद्वयमिता भवन्ति इत्यभिप्रायेणाह - 'नवरं सन्वत्थ संमुच्छिमा हुंडसंठाणसंठिया भाणियव्त्रा, इयरे छसु वि' नवरं - विशेषस्तु सर्वत्र तिर्यग्योनिकेषु औदारिकशरीरविषये संमूच्छिमा स्तिर्यग्योनिकाः केवलं हुण्ड संस्थान इसी प्रकार उरपरिसर्प स्थलचरों के नौ सुत्र हैं- समुच्चय उरपरिसर्प, उनके पर्याप्त एवं अपर्याप्त, संमूर्छिम उनके पर्याप्त एवं अपर्याप्त, गर्भज उनके पर्याप्त और अपर्याप्त, यो नौ सूत्र जानने चाहिए । भुजपरिसर्प पंचेन्द्रिय तिर्थयों के औदारिकशरीर संबंधी नौ सूत्र हैं। उन्हें भी पूर्वोक्त प्रकार से समझलेना चाहिए । खेचर पंचेन्द्रिय तिर्यचों के भी औदारिक शरीर संबंधी नौ सूत्र पूर्वोक्त प्रकार से समझने चाहिए । इस तरह समुच्चय तिर्यचयोनिकों के नव, जलचरों के नव, स्थलचरों के छत्तीस, खेचरों के नव ये सब मिलकर त्रेसठ सूत्र तिर्यचों के औदारिकशरीर के विषय में समझने चाहिए। इनके आलापक २७३ होते हैं, इस अभिप्राय से कहते हैं- विशेषता यह है कि तिर्यंचों के औदारिकशरीर के विषय में संमूर्छिम तिर्यग्योनिक केवल हुंड संस्थान वाले એજ પ્રકારે ઉરપરિસ સ્થલચીના નવ સૂત્ર છે-સમુચ્ચય ઉરપરિસર્પ, તેમના પર્યાપ્ત તેમજ અપર્યાપ્ત, સમૂઈિમ, તેમના પર્યાપ્ત તેમજ અપર્યાપ્ત, ગજ તેમના પર્યાપ્ત અને અપર્યાપ્ત એમ નવ સૂત્ર જાણવાં જોઇએ. ભુજપરિસ` પંચેન્દ્રિય તિય ચાના ઔદારિકશરીર સંબધી નવ સૂત્ર છે તેમને પણ પૂર્વોક્ત પ્રકારથી સમજી લેવા જોઇએ. ખેચર ૫ ચેન્દ્રિયતિય ચેાના પણ ઔદારિકશરીર સંખ'ધી નવ સૂત્ર પૂર્ણાંકત પ્રકારથી સમજવાં જોઇએ. આ રીતે સમુચ્ચય તિય ચયેાનિકાના નવ, જલચરૅાનાં નવ, સ્થલચરાના નવ, સ્થલચરોના છત્રીસ, ખેચાનાં નવ, આ બધાં મળીને ત્રેસઠ સૂત્ર તિર્યંચાના ઓટારિકશરીરના વિષયમાં સમજવા જોઈએ. તેમના આલાપક २७३ था के. श्री प्रज्ञापना सूत्र : ४
SR No.006349
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1978
Total Pages841
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size58 MB
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