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प्रमेयबोधिनी टीका पद २१ २० २ औदारिकशरीरसंस्थाननिरूपणम् प्रज्ञप्तम् एवं सूक्ष्मबादरपर्याप्तापर्याप्तानामपि, तेजस्कायिकैकेन्द्रियौदारिकशरीर खलु भदन्त । किं संस्थानसंस्थितं प्रज्ञप्तम् ? गौतम ! सूचीकलापसंस्थानसंस्थित प्रज्ञप्तम्, एवं सूक्ष्मवादरपर्यासपर्याप्तानामपि, वायुकायिकानामपि पताकासंस्थानसंस्थितम्, एवं सूक्ष्मबादरपर्याप्तापर्यासानामपि, वनस्पतिकायिकानां नानासंस्थान संस्थितं प्रज्ञप्तम्, एवं सूक्ष्मबादरपर्याप्ता पर्याप्ताना मपि, द्वीन्द्रियौदारिकशरीरं खलु भदन्त ! किं संस्थानसंस्थितं प्रज्ञप्तम् ? गौतम ! हुण्ड
(आउक्काइयएगिदियओरालियसरीरे णं भंते ! कि संठिए पण्णत्ते ?) हे भगवन् ! अप्कायिक एकेन्द्रिय औदारिक शरीर कैसे आकार का है ? (गोयमा! थिबुकबिंदुसंठाणसंठिए पण्णत्ते) हे गौतम (स्तिबुक बिदु के आकार का कहा है (एवं सुहुम बादर पजत्तापजत्ताण वि) इसी प्रकार सूक्ष्म, बादर पर्याप्त और अपर्याप्त का भी
(तेउकाइय एगिदिय ओरालिय सरीरे णं भंते! किंसंठिए पण्णत्ते १) हे भगवन् ! तेजस्कायिक एकेन्द्रिय औदारिकशरीर कैसे आकार का कहा है? (गोयमा! सूईकलावसंठाणसंठिए पण्णत्ते) हे गौतम ! सुइयों के समूह के आकार का कहा है (एवं सुहम बादर पजत्तापज्जत्ताण वि) इसी प्रकार सूक्ष्म, बादर, पर्याप्त और अपर्याप्त का भी
(वाउक्काइयाण वि पडागाठाणसंठिए) वायुकायिकों का भी पताका जैसे आकार का है (एवं सुहुम बादपज्जत्तापजाताण वि) इसी प्रकार सूक्ष्म, बादर, पर्याप्त और अपर्याप्त का भी
(वणस्सइकाइयाण णाणासंठाणसंठिए पण्णत्ते) वनस्पतिकायिकों का शरीर नाना आकारों वाला कहा है (एवं सुहुम बादर पज्जत्तापजत्ताण वि) इसी प्रकार
(आउक्काइय एगिदिय ओरालियसरीरे णं भंते ! कि संठिए पण्णत्ते १) हे भगवन् ! ५५. यि मेन्द्रिय मोह४ि२१२ १२॥ हा छ ? (गोरमा ! थिबुकविंदुस'ठाणसलिए पण्णते) हे गौतम ! स्तिमु मी-हुना मारना छ (एवं सुहुम बायर पज्जत्त पज्जत्ताण વિ) એજ પ્રકારે સૂમ, બાદર, પર્યાપ્ત અને અપર્યાપ્તના સંસ્થાન પણ એમ જ છે.
(तेउकाइय एगिदिय ओरालियसरीरे णं भंते ! किं सठिए पण्णत्ते ?) , मापन् ! २४४ मेन्द्रिय महा४िशरी२ ॥ ॥२॥ ४i छ ? (गोयमा ! सूईकलावसठाणसंठिए पण्णत्ते) है गौतम ! सोयोना समूडना २२ii Bai छ (एवं सुहुम बायर पज्जत्ता पज्जत्ताण वि) मे ५४२ सू६५, ६२ यात अने ५५ तना ५४,
(वाउक्काइयाण वि पडागास ठाणसठिए) वायुयाना ५५ जनाको १२ ह्यो छे (एवं सहुम बायरपज्जत्तापज्जत्ताण वि) मे रे सूक्ष्म, मा४२, परत અને અપર્યાપ્તના પણ.
(वणस्सइ काइयाण वि णाणास ठाणसहिए पण्णत्ते) वनस्पति विना शरीर नाना प्र०७८
श्री. प्रशान। सूत्र:४