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________________ ६१४ प्रज्ञापनासूत्रे खेचरतियायोनिकपश्चेन्द्रियौदारिकशरीरं संमूच्छिमगर्भव्युत्क्रान्तिकभेदाद् द्विप्रकारकम्, तदुभयमपि प्रत्येकं पर्याप्तापर्याप्तभेदाद द्विविधम्, इति चत्वारि सर्वसंकलनया तिर्यग्योनिकपश्चेन्द्रियौदारिकशरीर विंशतिविधम्, मनुष्यपश्चन्द्रियौदारिकशरीरंतु समूच्छिमगर्भव्युस्क्रान्तिभेदाद् द्विविधम्, तदुभयमपि पुनरेकैकं पर्याप्तापर्याप्तभेदाद् द्विप्रकारकमिति चत्वारि, सर्वसंख्यया तु ५०, पश्चाशद्भेदा अबसेया औदारिकशरीराणामित्यवधेयम् ॥ सू० १॥ ॥औदारिकशरीरसंस्थानवक्तव्यता ॥ मूलम्-ओरालियसरीरे णं भंते ! कि संठिए पण्णत्ते ? गोयमा ! णाणासंठाणसंठिए पपणत्ते, एगिदियओरालियसरीरे णं भंते ! किं संठिए पपणत्ते ? गोयमा! णाणा संठाणसंठिए पण्णते पण्णत्ते, पुढविकाइय एगिदिय ओरालियसरीरे णं भंते ! किं संठिए पण्णत्ते ? गोयमा ! मसूरचंदसंठाणसंठिए पण्णत्ते ? एवं सुहुमपुढविकाइयाण वि बायराणवि एवं चेत्र, पजत्तापजत्ताण वि एवं चेव आउकाइय एगिदियओरालियसरीरे णं भंते ! किं संठिए पण्णत्ते ? गोयमा! थिबुकबिंदुसंठाण संठिए पण्णत्ते, एवं सुहुम बायरपजत्तापजत्ताण वि, तेउकाइय एगिन्द्रिय औदारिकशरीर के सब भेदों की गणना आठ है। खेचर तिर्यग्योनिक पंचेन्द्रिय औदारिकशरीर संमूर्छिम और गर्भज के भेद से दो प्रकार का है और इन दोनों के भी पर्याप्त तथा अपर्याप्त के भेद से दो-दो भेद होते हैं। इस प्रकार चार भेद हुए सब मिलकर तिर्यग्योनिक पंचेन्द्रिय औदारिकशरीर वीस प्रकारका है मनुष्य पंचेन्द्रिय औदारिकशरीर संमूर्छिम और गर्भज के भेद से दो प्रकार का है और उनके भो पर्याप्त तथा अपर्यास के भेद से दो-दो भेद होते हैं। यों चार भेद हुए सब मिलकर औदारिकशरीर के पचास भेदों का यहां उल्लेख किया गया है। ઔદારિક શરીરના બધા ભેદની ગણના આઠ થાય છે. બેચર તિર્યનિક પંચેન્દ્રિય દારિક શરીર સંમૂછિમ અને ગર્ભજના ભેદથી બે પ્રકારના છે અને તે બન્નેના પણ પર્યાપ્ત તથા અપર્યાપ્તના ભેદથી બે-બે ભેદ થાય છે. એ પ્રકારે ચાર ભેદ થયા. બધા મળીને તિર્યનિક પંચેન્દ્રિય ઔદારિક શરીર વીસ પ્રકારનાં છે. મનુષ્ય પંચેન્દ્રિય દારિકશરીર સંમૂર્ણિમ અને ગર્ભજન ભેદથી બે પ્રકારના છે અને તેમના પણ પર્યાપ્ત તથા અપર્યાપ્તના ભેદથી બે-બે ભેટ થાય છે, આમ ચાર ભેદ થયા. બધા મળીને દારિક શરીરના પચાસ ભેદોને અહીં ઉલ્લેખ કરાયેલ છે. श्री प्रशानसूत्र:४
SR No.006349
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1978
Total Pages841
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size58 MB
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