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________________ प्रमेोधिनी टीका पद २१ सू० १ शरीरमे दननिरूपणम् ५९३ खेचर तिर्यग्योनिकपञ्चेन्द्रियौदा दिकशरीरच, जलचर तिर्यग्योनिकपञ्चेन्द्रियौदारिकशरीरं खलु भदन्त ! कतिविधं प्रज्ञप्तम् ? गौतम ! द्विविधं प्रज्ञप्तम्, तद्यथा-संमुहिमजलचरपञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकौदारिकशरीरञ्च, गर्भव्युत्क्रान्तिक जलचरपञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकौदारिकशरीरञ्च, संमूर्च्छिप जलचर तिर्यग्योनिकपञ्चेन्द्रियौदा रिकशरीरं खलु भदन्त ! कतिविधं प्रज्ञप्तम् ? गौतम ! द्विविधं प्रज्ञप्तम्, तद्यथा पर्याप्तकसंमूमि पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकौदारिकशरीरश्चअपर्याप्त संमूच्छिमपञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकौदारिकशरीरञ्च, एवं गर्भव्युत्क्रान्तिकमपि, स्थलचरपंचेन्द्रिय औदारिकशरीर हे भगवन् ! कितने प्रकार का कहा है ? ( गोयमा ! तिविहे पण्णत्ते) हे गौतम! तीन प्रकार का कहा है (तं जहा) वह इस प्रकार (जलयर तिरिक्ख जोणिय पंचिदिय ओरालिय सरीरे य थलयर तिरिक्खजोणिय पंचिदिय ओरालियासरीरे य, खहयर तिरिक्खजोणिय पंचिदिय ओरालियासरीरे य) जलचर तिर्यग्योनिक पंचेन्द्रिय औदारिक शरीर, स्थलचर पचेन्द्रिय तिर्यग - योनिक औदारिक शरीर और खेचर पंचेन्द्रिय तिर्यग्योनिक औदारिक शरीर (जलयर तिरिक्ख जोणिय पंचिदिय ओरालियसरीरे णं भंते ! कतिविहे पण्णत्ते ?) हे भगवन् ! जलचरतिर्यग्योनिक पंचेन्द्रिय औदारिक शरीर कितने प्रकार का कहा है ? (गोमा ! दुविहे पण्णत्ते) हे गौतम ! दो प्रकारका कहा है (तं जहा वह इस प्रकार (संच्छिमजल पर निरिक्ख जोणिय पंचिदिय ओरालियसरीरे य, Torers तियजलयर पंचिदियतिरिक्ख जोणिय ओरालियसरीरे य) संमूर्छिम जलचर तिर्यग्योनिक पंचेन्द्रिय औदारिक शरीर और गर्भज जलचर पंचेन्द्रिय तिर्यग्योनिक औदारिक शरीर (समुच्छिमजल परतिरिक्ख जोणिय पंचिंदिय ओरालिसरीरे णं भंते ! कतिथिहे पण्णत्ते ?) संमूर्छिम जलचरतिर्यग्योनिक गौतम ! ऋणु प्रभारना उद्यां (तं जहा) ते या प्रकारे (जलयर तिरिक्खजोणिय पंचिंदिय ओरालियसरीरे य थलयर तिरिक्खजोणिय पंबिंदिय ओरालियसरीरे य, खयर तिरिक्खजोणिय पंचिंदिय ओरालिग्रसरोरे य) सयर तिर्यग्योनिः पथेन्द्रिय मोहारिएशरीर स्थलयर पथेन्द्रिय તિય ચૈનિક ઔદઃરિકશરીર અને ખેચર પચેન્દ્રિય તિય ચૈાનિક ઔદારિકશરીર (ઊચર तिरिक्खजोणिय पंचिंदिय ओरालियसरीरे णं भंते ! कतिविहे पण्णत्ते ?) हे भगवन् ! ४सयर तिर्यग्योनि यथेन्द्रिय मोहारिएशरीर डेंटला अारना उद्यां छे ? (गोयमा ! दुविहे पण्णत्ते) हे गौतम! मे प्रहारना ह्या छे (तं जहा ) ते या अहारे (समुच्छिम जलयर तिरिक्खजोणिय पंचिदिय ओरालियसरीरे य, गव्भवक्कति य जलयर पंचिंदिय तिरिक्खजोणिय ओरालियसरे) संभूभि सयर तिर्यग्योनिः पथेन्द्रिय सौहारशरीर भने गर्ल सयर यथेन्द्रिय तिर्यग्योनि औहारि४शरीर ( संमुच्छिम जलयर तिरिक्खजोणिय पंचिदिय ओरालियसरीरे णं भंते ! इविहे पण्णत्ते ?) भूमि र तिर्यग्योनि यथेन्द्रिय सहारिम्शरीर डेंटला प्रारना उद्यां छे ? (गोयमा ! दुविहे पण्णत्ते) हे गौतम! मे अारना उझां म० ७५ श्री प्रज्ञापना सूत्र : ४ WEINS
SR No.006349
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1978
Total Pages841
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size58 MB
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