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________________ प्रमेयबोधिनी टीका पद २० सू. ९ उपपातविशेषनिरूपणम् ५७३ shy, असंज्ञिनां जघन्येन भवनवासिषु उत्कृष्टेन वानव्यन्तरेषु, तापसानां जघन्येन भवनवासिषु उत्कृष्टेन ज्योतिष्केषु कान्दर्पिकाणां जघन्येन भवनवासिषु उत्कृष्टेन सौधर्मे कल्पे चरकपरिव्राजकानां जघन्येन भवनवासिषु उत्कृष्टेन ब्रह्मलोके कल्पे, किल्बिषिकाणां जघन्येन सौधर्मे कल्पे, उत्कृष्टेन लान्त के कल्पे, तिरिथिां जघन्येन भवनवासिषु उत्कृष्टेन सहस्रारे कल्पे, आजीविकानां जघन्येन भवनवासिषु उत्कृष्टेन अच्युते कल्पे, एवम् आभियोगिकानामपि, सलिङ्गिनाँ दर्शनव्यापन्नकानां जघन्येन भवनवासिषु उत्कृष्टेन उपरितग्रैवेयकेषु ॥ ० ९ ॥ उत्कृष्ट सौधर्म कल्प में (अविराहिय संजमा संजमाण) संयमासंयम की विराधना न करने वालों का ( जहणेणं सोहम्मे कप्पे ) जघन्य सौधर्म कल्प में (उकोसेणं अच्चुए कप्पे ) उत्कृष्ट अच्युत कल्प में (विराहियसंजमा संजमा णं) संयम संयम की विराधना करने वालों का ( जहणणेण भवणवासीसु, उक्कोसेगं जोइसिएस) जघन्य भवनवासियों में, उत्कृष्ट ज्योतिष्कों में (असण्णीणं जहणणं भवणवा सीसु, उक्कोसेणं वाणमंतरेसु) असंज्ञियों का जघन्य भवनवासियों में, उत्कृष्ट वानव्यन्तरों में (तावसाणं जहणणेणं भवणवासीसु, उक्कोसेणं जोइसिएस) तापसों का जघन्य भवनवासियों में, उत्कृष्ट ज्योतिष्कों में (कंदप्पियाणं जहण्जेणं भवणवासीसु, उक्को सेणं बंभलोए कप्पे ) कांदर्पिकों का जघन्य भवनवासियों में, उत्कृष्ट ब्रह्मलोक कल्प में (किन्विसियाणं जहणेणं सोहम्मे कप्पे, उक्कोसेणं ine कप्पे ) किfoषिकों का जघन्य सौधर्म कल्प में, उत्कृष्ट लान्तक कल्प में (तिरिच्छियाणं जहणणेणं भवणवासीसु, उक्कोसेणं सहस्सारे कप्पे ) देशविरत तिर्यचो का जघन्य भवनवासियों में, उत्कृष्ट सहस्त्रार कल्प में (आजीवियाणं जहणणं भवणवासीसु, उक्कोसेणं अच्चुए कप्पे ) आजीवकों का जघन्य भवन भीनी विरोधना न ४२नारायाना (जहणेणं सोहम्मे कप्पे ) धन्य सौधर्म मां (उक्कोसेणं अच्चुए कप्पे ) उत्सृष्ट अभ्युत उपमा (विराहिय संजमा संजमार्ग ) संयमांसयभनी विराधना ४२नारायाना (जहण्णेणं भवणवासिसु, उक्कोसेणं जोइसिएस) धन्य भवनवासियोभां उत्कृष्ट ज्योतिष्ामां (असण्गीणं जहणणं भवणवासिसु उक्कोसेणं वाणमंतरेसु) अस ज्ञीयोना धन्य भवनवासियोमां, उत्कृष्ट वानव्यन्तराभां (तावसाणं जहणणेणं भाणवासिसु, उक्कोसेणं जोइ - सिएस) तापसोना धन्य भवनयतियोमा उत्कृष्ट ज्योतिष्ठामां (कंदप्पियाणं जहणणेणं भवणवासिसु, उक्कोसेणं बंभलोर कप्पे ) पिनु धन्य लवनवासियोमा उत्कृष्ट प्रोष्ठ *५भ (किल्विसियाणं जहणेगं सोहम्मे पे उच्कोसे लंतर कप्पे ) विषिता नान्य सौधर्भ ४५भां उत्कृष्ट सान्त उपमा (तिरिच्छियाणं जहण्गेणं भवणवासिसु, उकासेणं सहस्सारे कप्पे ) देश विरत तिर्यथाना धन्य भवनवासी, उत्सृष्ट सहसार નામના ૪૫માં ( आजीवियाणं जहणणं भवणवासिसु, उक्कोसेणं अच्चुए कपे) आलविना भवन्य लवनवासियोमा उत्कृष्ट अभ्युत भा ( एवं आभिओगाण वि) भेन प्रहारे अभियोगिना श्री प्रज्ञापना सूत्र : ४
SR No.006349
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1978
Total Pages841
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size58 MB
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