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प्रबोधिनी टीका पद २० स० ७ तीर्थकरोत्पाद निरूपणम्
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यस्य खल रत्नप्रभा पृथिवी नैरयिकस्य तीर्थकर नामगोत्राणि नो बद्धानि यावत् नो उदीर्णानि उपशान्तानि भवन्ति स खलु रत्नप्रभापृथिवी नैरयिको रत्नप्रभापृथिवी नैरयिकेभ्योऽनन्तरमुच्य तीर्थरत्वं नो लभेत, स तेनार्थेन गौतम ! एवमुच्यते - अस्त्येको लभेत, अस्त्येको नौ लभेत, एवं शर्कराप्रभा यावद् वालुकाप्रभापृथिवी नैरयिकेभ्य स्तीर्थकरत्वं लभेत, पङ्कप्रभापृथिवी नैरयिकः खलु भदन्त ! पङ्कप्रभापृथिवी नैरयिकेभ्योऽनन्तरमुद्वृत्त तीर्थकत्वं गरतं लभेज्जा) तीर्थंकरत्वको प्राप्त करता है (जस्स णं रयणप्पभापुढवी नेरइ यस्स) रत्नप्रभ पृथ्वी के जिस नारक ( तित्थगर नामगोयाई गो बद्धाई) तीर्थकर नामगोत्र कर्म नही बंधा है (जाव नो उदिन्नाई) यावत् उदय में नहीं आया है (वसंताई हवंति) उपशान्त हैं ( से णं रयणप्पभापुढवीनेरइए) वह रन्तप्रभा पृथ्वी का नारक ( रयणप्पभापुढवीनेरइएहिंतो) रत्नप्रभा पृथ्वी के नारकों से (अनंतरं उब्वहिता) अनन्तर उदवर्त्तन करके (तिथगरत्तं णो लभेज्जा) तीर्थकर त्व प्राप्त नहीं करता (से तेणट्ठेणं गोयमा ! एवं बुच्चइ-अत्थेगइए लभेज्जा, अत्थेगइए नो लभेज्जा) हे गौतम ! इस हेतुसे ऐसा कहा जाता है कि कोई प्राप्त करता है, कोई प्राप्त नहीं करता
(एवं सक्करप्पभा जाव वालुयप्पभा पुढवी नेरइए हितो) इसी प्रकार शर्करा - प्रभा यावत् वालुका प्रभा पृथ्वी के नारकों से (तिस्थगरत्तं लभेजा) तीर्थकर पन पाता है
(पंकप्पापुढची नेरइए णं भंते! पंकप्पभा पुढवी नेरइए हितो) भगवन् ! पकप्रभा पृथ्वी का नारक पंकप्रभा पृथ्वी के नारक में से (अनंतरं उचट्टित्ता) अनन्तर उद्वर्त्तन करके (तित्थगरत्तं लभेजा ?) तीर्थकरत्व प्राप्त करता है ? ने रत्नप्रभा पृथ्वीना नारना (तित्थगर नामगोयाइं णो बद्धाई) तीर्थ ४२ नामगोत्र उर्भ नथी धाता (जाव नो उदिन्नाई) यावत् उदयभां नथी आव्या ( उवसंताई हवंति ) उपशान्त (सेणं रयणप्पा पुढवी नेरइए) ते रत्नअला पृथ्वीना ना२३ ( रयणप्पभा पुढवी नेरइए हिंतो ) रत्नप्रभा पृथ्वीना नारथी (अनंतर उच्चट्टित्ता) अनन्तर उहूपर्तन हरीने (तित्थगरतं णो लभेज्जा) तीर्थ ४२त्व प्राप्त नथी कुरता (से तेणट्ठेणं गोयमा ! एवं बुच्चइ - अत्थेाइए भेज्जा, अत्थेiइए नो लभेज्जा) डे गौतम ! मे हेतुथी अभ उपाय छे है आरत કરે છે, કૈાઈ પ્રાપ્ત નથી કરતા.
( एवं सकरपभा जाव वालुयपभापुढवि नेरइए हितो) मे बाहुप्रला पृथ्वीना नारथी (तित्थगरत्तं लभेज्जा) तीर्थ ४२५ (पंप भापुढवी नेरइणं भंते! पंकष्पभापुढवी ने एहितो ) हे लगवन् ! पशुप्रभा पृथ्वीना नार पप्रला पृथ्वीना नापाथी (अनंतर उच्चट्टित्ता) अनन्तर उद्वर्तन उरीने (तित्थगरतं लभेज्जा ) तीर्थ स्व प्राप्त रे छे ? ( गोयमा ! जो इणटुढे समठे) हे गौतम !
श्री प्रज्ञापना सूत्र : ४
अरे शशला यात् भेजवे छे.