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प्रहापनासूत्रे की, मायाप्रत्यया, अप्रत्याख्यानक्रिपा, तत्र खलु येते मिथ्यादृष्टयो ये च सम्यग्मिथ्यादृष्टयस्तेषां खलु नियताः पञ्च क्रियाः क्रियन्ते तद्यथा-आरम्भिकी, पारिग्रहिकी, मायाप्रत्यया, अप्रत्याख्यानक्रिया. मिथ्यादर्शनप्रत्यया, शेषं तच्चैव ॥ सू० ५॥
टीका-अथ पृथिवीका यिकादीनां समाहारादिकमधिकृत्य प्ररूपयितु माह-'पुढविकाइया आहारकम्मवन्न लेस्साहिं जहा नेरइया' पृथिवीकायिकाः आहारकर्मवर्णलेश्याभिर्यथा नैर. यिकाः प्रतिपादिता स्तथा वक्तव्याः, तथा च पृथिवीकायिकानामाहारादिचतुष्टयविषयका अभिलापाः नैरयिकाणामित्र अभिधेयाः, गौतमः पृच्छति-'पुढविकाइया सव्वे समवेयणा ?' परिग्गहिया, मायावत्तिया, अपच्चक्खाणकिरिया) वे इस प्रकार-आरंभिकी, पारिग्रहिकी, मायाप्रत्यया, अप्रत्याख्यान क्रिपा (तत्थ णं जे ते मिच्छादिट्टी) उनमें जो मिथ्यादृष्टि हैं (जे य सम्मामिच्छट्टिी) और जो मिश्रदृष्टि हैं (तेसिणं णियइयाओ) उनको निश्चय से (पंचकिरियाओ कज्जति) पांच क्रियाएं होती है (तं जहा) वे इस प्रकार (आरंभिया) आरंभिकी (परिग्गहिया) पारिग्रहिकी (मायावत्तिया) मायाप्रत्यया (अपच्चक्खाणकिरिया) अप्रत्याख्यानक्रिया (मिच्छादसणवत्तिया) मिथ्यादर्शनप्रत्यया (सेसं तं चेव) शेष वही ।
टीकार्थ-अब पृथ्वीकायिक आदि जीवों के समान आहार आदि की प्ररूपणा की जाती हैं__आहार, कर्म, वर्ण और लेश्या की अपेक्षा जिस प्रकार नारकों का निरूपण किया गया है, उसी प्रकार पृथ्वीकायिकों की प्ररूपणा समझलेनी चाहिए। अतएय नारकों के आहार आदि चारों के संबंध में जैसा कथन है, वैसा ही पृथ्वीकायिकों का कथन करना चाहिए। __ गौतमस्वामी-हे भगवन् ! क्या सभी पृथ्वीकायिक समान वेदनायाले हैं ? त्तिया-अपच्चक्खाणकिरिया) ते २0 प्रार-मार मिश्री, पारिवाधि, भायाप्रत्यय, अप्रत्याभ्यान या (तत्थणं जे ते मिच्छादिदी) तेसोमा २ मिथ्याट छे (जे य सम्मामिच्छा दिदी) मर मिश्र ष्टि छ (तेसिणं णियइयाओ) तमने निश्चयथा (पंचकिरियाओ कजंति) पांय या थाय छे (तं जहा) ते ॥ ४॥२ (आरंभिया) मा मिश्री (परिग्ग हिया) पारिवाडिसी. (मायावत्तिया) भाया प्रत्यय। (अपच्चक्खाण किरिया) अप्रत्याभयान या (मिच्छादसणवत्तिया) मिथ्या ४शन प्रत्यया (सेसं तं चेव) शेष तेभा ટીકાઈ–હવે પૃથ્વીકાયિક આદિ જીવની સમાન આહાર આદિની પ્રરૂપણ કરાય છે
આહાર, કર્મ, વર્ણ અને લેસ્થાની અપેક્ષાએ જે પ્રકારે નારકોનું નિરૂપણ કર્યું છે, તેજ પ્રકારે પૃથ્વીકાયિકેની પ્રરૂપણું સમજી લેવી જોઈએ તેથી જ નારના આહાર આદિ ચારના સમ્બન્યમાં જેવું કથન છે, તેવું જ પૃથ્વીકાયિકોનું કથન કરવું જોઈએ.
શ્રી ગૌતમસ્વામી-હે ભગવન ! શું બધા પૃથ્વીકાયિક સમવેદનાવાળા છે?
श्री. प्रशान। सूत्र:४