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________________ ४८६ प्रज्ञापनासूत्रे न्तरागता अन्तक्रियां कुर्वन्ति ? परम्परागता अन्तक्रियां कुर्वन्ति ? गौतम ! अनन्तरागता अपि अन्तक्रियां कुर्वन्ति परम्परागता अपि अन्तक्रियां कुर्वन्ति एवं रत्नप्रमापृथिवी नैरयिका अपि यावत् पङ्कप्रभा पृथिवी नैरयिकाः धूमप्रमापृथिवी नैरयिकाः खलु पृच्छा, गौतम ! नो अनन्तरागता अन्तक्रियां प्रकुर्वन्ति, परम्पकागता अन्तक्रियां प्रकुर्वन्ति एवं यावदधः सप्तमपृथिवीयिकाः, असुरकुमारा यावत् स्तनितकुमाराः पृथिव्यववनस्पतिकायिकाच अनन्तरागता अपि अन्तक्रियां प्रकुर्वन्ति परम्परागता अपि अन्तक्रियां प्रकुर्वन्ति, तेजोवायु द्वीन्द्रिय (नेरइया णं भंते! किं अनंतरागया अंतकिरियं करेंति ?) हे भगवन् ! क्या अनन्तरागत नारक अन्तक्रिया करते हैं ? ( परंपरागया अंतकिरियं करेति ) अथवा परम्परागत नारक अन्तक्रिया करते हैं ? (गोयमा ! अनंतरागया वि अंतकिरिथं करेति, परंपरागया वि अंतकिरियं करेति ?) हे गौतम! अनन्तरागत भी - अन्तक्रिया करते हैं, परम्परागत भी अन्तक्रिया करते हैं ( एवं रयणप्पभापुढवि नेरइया वि) इसी प्रकार रत्नप्रभापृथ्वी के नारक भी (जाय पंकप्पभापुढवि नेरइया) यावत् पंकप्रभा पृथ्वी के नारक (धूमप्पभापुढवि नेरइया णं पुच्छा ?) धूमप्रभा पृथ्वी के नारक, इत्यादि विषयक प्रश्न (गोधमा ! णो अनंतरागया अंतकिरिये पकरे ति) हे गौतम! अनन्तरागत अन्तक्रिया नहीं करते (परंपरागया अंत किरियं पकरे ति) परम्परागत अन्तक्रिया करते हैं (एवं जाव अहेसत्तमापुढवि desar) इसी प्रकार सातवीं पृथ्वी के नारक (असुरकुमारा जाव श्रणियकुमारा) असुकुमार यावर स्तनितकुमार ( पुढवी - आउ-वणस्सइकाइया य अनंतरागया चि अंत किरियं पकरे ति) पृथ्वीकायिक, अप्रकायिक, वनस्पतिकायिक अनन्तरागत भी अन्तक्रिया करते हैं (परंपरागया वि अंतकिरिथं पकरेंति) परम्परागत भी (नेरहयाणं भंते! कि अनंतरागया अंतकरिये करेंति ?) हे भगवन् ! शु अनंतरागत ना२४ अन्तड़िया रे छे (परंपरागया अंतकिरियं करेति) अथवा पराम्परागत नारड अनन्तडिया पुरे छे ? (गोयमा ! अनंतरागया वि अंतकिरियं करेंति, परंपरागया वि अंतकिरियं करें ति ? ) हे गौतम! अनन्तरागत पशु-अन्तडिया रे छे, परंपरागत पशु अन्तडिपारे छे ( एवं रमणभा पुढवि नेरइया वि) प्रारे रत्नप्रभा पृथ्वीना नार (जाय पंपा पुढविनेरड्या) यावत् प्रभा पृथ्वीता नार (धूमप्पभा पुढवि नेरइयाणं पुच्छा १) धूमप्रला पृथ्वीना नार हत्याहिविषे प्रश्न ? (गोयमा ! णोअनंतरागया अंत किरिय पकरे ति) हे गौतम! अनन्तरगत अन्तडिया नथी उस्ता (परंपरागया अंत किरियं पकरे ति) परंपरागत अन्त दया रे छे (पवं जाव अहे सत्तना पुढवि नेरइया) से प्रारे सातभी पृथ्वीना ना२४ (असुरकुमारा जाव थणियकुमार ) असुरकुमार यावत् स्तनितकुमार ( पुढवीआउ-वणस्सइ काइयाय अनंतरागया वि अंतकिरियं पकरे ति) पृथ्वीभयिए, मायि, वनस्पतिशायिक अनन्तरागत पशु अन्तडिया १२ छे (परंपरा गया वि अंतकिरियं पकरे ति) श्री प्रज्ञापना सूत्र : ४
SR No.006349
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1978
Total Pages841
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size58 MB
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