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________________ प्रमेययोधिनी टीका पद १८ सू.० ६ वेदद्वारनिरूपणम् कानि २, एकेन आदेशेन जघन्येन एक समयम् उत्कृष्टेन चतुर्दशपल्योपमाणि पूर्वकोटिपृथक्त्वाभ्यधिकानि ३, एकेन आदेशेन जघन्येन एक समयम्, उत्कृष्टेन पल्योपमशतं पूर्वकोटिपृथक्त्वम् ४, एकेन आदेशेन जघन्येन एक समयम् उत्कृष्टेन पल्योपमपृथवत्वम् पूर्वकोटि पृथक्त्वाभ्यधिकम् ५, पुरुषवेदः खलु भदन्त ! 'पुरुषवेद' इति पृच्छा, गौतम ! जघन्येन अन्तर्मुहूर्तम्, उत्कृष्टेन सागरोपमशतपृथक्त्वं सातिरेकम्, नपुंसकवेदः खलु भदन्त ! नपुं. सकवेद इति पृच्छा, गौतम ! जघन्येन एकं समयम्, उत्कृष्टेन वनस्पति कालः, अवेदकः पुहुत्तमभहियाई) पूर्वकोटि पृथक्त्व अधिक अठारह पल्योपम तक (एगेणं आदेसेणं) एक अपेक्षा से (जहण्णेगं एणं समयं) जघन्य एक समय (उकोसेणं चउद्दसपलिओवमाई पुज्यकोडिपुहुत्तमभहियाई) उत्कृष्ट पूर्वकोटि पृथक्त्व अधिक चौदह पल्योपम तक (एगेणं आदेसेणं जहण्णेणं एगं समयं, उक्कोसेणं पलिओवमसतं पुश्वकोडिपुहत्तम महियं) जघन्य एक समय, उत्कृष्ट सौ पल्योपम पृथक्त्वकोटिपूर्व अधिक (एगेणं आदेणं जहणणेणं एगं समय, उक्कोसेणं पलिओ वमपुहुतं) एक अपेक्षा से जघन्य एक समय, उत्कृष्ट पल्योपम पृथक्त्व (पुव्यकोडि पुहुत्तमन्भहियं) पूर्वकोटि पृथक्त्व अधिक ___(पुरिसवेदे णं भंते ! पुरिसवेदेत्ति कालओ केवच्चिरं होइ ?) हे भगवन् ! पुरुषवेदी कितने काल तक पुरुषवेदी रहता है ? गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहुतं, उकोसेणं सागरोवमसतपुहुतं सातिरेग) हे गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त, उत्कृष्ट सौ सागरोपम पृथक्त्व से कुछ अधिक ___(नपुंसगवेए णं भंते ! नपुंसगवेए त्ति पुच्छा ?) हैं भगवन् ! नपुंसकवेदी कितने काल तक नपुंसकवेदी रहता है, ऐसा प्रश्न (गोयमा ! जहण्णेणं एगं मब्भहियाई) पू' पृथ५५ म4ि3 २५८०२ ५६२।५म सुधी (एगेणं आदेसेणं) मे गधेक्षाथी (जहण्णेणं एगं समर्थ) ४३न्य २४ समय (उक्कोसेगं चउद्दसपलिओवमाइं पुवकोडि पुहुत्तमब्भहियाई) उत्कृष्ट पूटि पृथ४.५ अघि यौह ५८।५५ सुधी (एगेणं आदेसेणं जहण्णेणं एगं समय, उक्कोसेणं पलिओवमसतं पुवकोडि पुहुत्तमभहिय) धन्य मे समय, मन कृष्ट से ५८या५म पृथत्योट पूर्व मधि४ (एगेणं आदेसेणं जहण्णेणं एग समय, उक्कोसेणं पलिओवमपुहुत्तं) मे अपेक्षाथी धन्य से, समय, उत्कृष्ट पक्ष्यो५म ५५ (पुवकोडि पुहुत्तमब्भहियं) पू ट पृथ.१ पि. __ (पुरिसवेदे णं भंते ! पुरिसवेदेत्ति कालओ केवच्चिरं होइ ?) हे लन् ! ५३५२४ी डेट। ४॥ सुधा ५३५३वी. ५९मा २३ छ ? (गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं सागरोवमस यपुहुत्तं सांतिरेग) ३ गौतम! धन्य स-तमुत, उत्कृष्ट से सागरी५म पृथयथा xisil. (नपुंसगवेदए णं भंते ! नपुंसगवेएन्ति पुच्छा ?) यन्! नधुसयेही हेटदा समय सुधा नसय २९ छ, मेवो प्रश्न (गोयमा ! जहण्णेण एगं समय, उक्कोसेणं वणस्सइकालो) श्री प्रापनसूत्र:४
SR No.006349
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1978
Total Pages841
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size58 MB
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